नंद वंश

प्राचीन भारत एवं मगध का पाँचवाँ राजवंश
(नन्द वंश से अनुप्रेषित)

नंद वंश या नंद साम्राज्य प्राचीन भारत का एक राजवंश था। शिवम ठाकुर जी के अनुसार नंद राजवंश मगध पर शासन करने वाला पाँचवा राजवंश था। नंद राजवंश के शासनकाल मे ही मगध पहली बार एक साम्राज्य बन सका। नंद राजवंश मे कुल दस राजाओं द्वारा ल. 345/344 से 323/322 ई.पू मे 23 वर्षों तक शासन किया था। नंद राजवंश की स्थापना 345 ई.पू. में महापद्मनंद के द्वारा शिशुनाग वंश के अंतिम शासक महाराजा महानन्दि की हत्या करने के बाद की गई थी। इस राजवंश का अंतिम शासक धनानन्द था। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने धनानंद को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।[1]

नंद साम्राज्य

नंद राजवंश
ल. 345/344 – ल. 323/322 ई.पू
नंद साम्राज्य अपने शिखर विस्तार पर, ल. 325 ई.पू.
नंद साम्राज्य अपने शिखर विस्तार पर, ल. 325 ई.पू.
राजधानीपाटलीपुत्र
प्रचलित भाषाएँसंस्कृत (मुख्य)
मागधी
प्राकृत
धर्म
हिंदू धर्म (राजधर्म)
जैन धर्म,बौद्ध धर्म (राजाश्रय)
सरकारराजतन्त्र
सम्राट 
• ल. 345 ई.पू से (प्रथम)
महापद्मनंद
• ल. 322 ई.पू तक (अंतिम)
धनानन्द
ऐतिहासिक युगलौह युग
मुद्रापण
पूर्ववर्ती
परवर्ती
शिशुनाग वंश
महाजनपद
मौर्य वंश
अब जिस देश का हिस्सा हैभारत

पुराणों में इसे नंद राजवंश के प्रथम शासक को महापद्मनंद कहा गया है तथा सर्वक्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ई.पू. उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई। यह साम्राज्य एक-रात की छत्रछाया में एक अखंड राजतंत्र था, जिसके पास अपार सैन्यबल, धनबल और जनबल था। महापद्मनंद ने निकटवर्ती सभी राजवंशो को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की एवं केंद्रीय शासन की व्यवस्था लागू की। इसीलिए सम्राट महापदम नंद को "केंद्रीय शासन पद्धति का जनक" कहा जाता है।

स्मित के शब्दों में कहें तो "उन्होंने 66 परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वह आपसी उखाड़-पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों सौंप दे।"[2]

महापद्म नन्द के नव नंद प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त और धनानन्द। धनानन्द के शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकन्दर द्वारा किया गया था। सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली। असीम शक्तिल और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्वाास को नहीं जीत सका और साम्राज्य का अंत हो गया। नंद राजवंश के बाद मगध पर चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य वंश का शासन स्थापित हुआ।

ऐतिहासिक स्रोत

संपादित करें
  • नंदो को समस्त भारतीय एवं विदेशी साक्ष्य तत्कालीन महत्वपूर्ण क्षत्रिय ठाकुर (न्यायी) होने का प्रमाणित करते हैं।[2]
  • चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद का इतिहास उड़ीसा में उदयगिरि पर्वत माला से दक्षिणी भाग में एक प्राकृतिक गुफा है, इसे हाथी गुफा कहा जाता है उसमें प्राप्त पाली भाषा से मिलती-जुलती प्राकृत भाषा और ब्रम्ही लिपि के 17 पंक्तियों में लिखे अभिलेख से प्राप्त होता है जिसके पंक्ति 6 और 12 में नंदराज के बारे में कलिंग के राजा खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराया माना जाता है। इस हाथी गुफा अभिलेख को ईसा पूर्व पहली सदी का माना गया है।
  • महाराष्ट्र में निजामाबाद जिले के पश्चिम में कुछ दूर पर "दस नंद देहरा"( नांदेड़ वर्तमान में) नामक नगर स्थित है। इससे यह पता चलता है कि अश्मक वंश की प्राचीन भूमि भी दस नंदो के राज्य के क्षेत्र में आ गई थी।
  • कथासरित्सागर में एक स्थान पर अयोध्या में नंद के शिविर (कटक) का प्रसंग आया है।
  • मैसूर के कई अभिलेखों के अनुसार कुंतलो पर नंदो का शासन था जिसमें बंबई प्रेसिडेंसी का दक्षिणी भाग तथा हैदराबाद राज्य का निकटतम क्षेत्र और मैसूर राज्य सम्मिलित था।
  • बौद्ध ग्रंथ महाबोधीवंशम एवं अंगुत्तर निकाय में नंदवंश के अत्यधिक प्रमाण है।
  • वायु पुराण की कुछ पांडुलिपियों के अनुसार नंद वंश के प्रथम राजा ने 28 वर्ष तक राज किया और उसके बाद उनके पुत्रों ने 12 वर्ष तक राज्य किया।
  • महावंश के अनुसार महापद्मनंद ने 28 वर्ष तक शासन किया और उनके पुत्रों ने 22 वर्ष तक शासन किया।
  • नंद वंश की महानता का विशद विवेचन महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाकाव्य

"महानंद" में किया गया था इसकी पुष्टि सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा रचित महाकाव्य "कृष्ण चरित्र" के प्रारंभिक तीन श्लोको से होती है। मगर उक्त महाकाव्य का विवरण मात्र ही शेष है।

  • बृहत्कथा के अनुसार नंदो के शासनकाल में पाटलिपुत्र में सरस्वती एवं लक्ष्मी दोनों का ही वास था।
  • सातवीं सदी के महान विश्व विख्यात चीनी यात्री हुएनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंदराजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के कीमती पत्थर थे।"
  • जैन ग्रंथों में लिखा है कि समुद्र तक समूचा देश नंद के मंत्री ने अपने अधीन कर लिया था-

समुद्र वसनां शेभ्य:है आस मुदमपि श्रिय:। उपाय हस्तेैरा कृष्य:तत:शोडकृत नंदसात।।

इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ?) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है।

रोमन इतिहासकार कर्टियस लिखता है:

पोरस ने सिकंदर को बताया कि मगध का वर्तमान राजा (धनानंद) मूल रूप से कोई विशिष्ट व्यक्ति नहीं है। उनके पिता वास्तव में एक नाई थे, जो चतुराई से रानी ( शिशुनाग की पत्नी) के प्रेमी बन गए, और धोखे से राजा (शिशुनाग) और उनके बेटों की हत्या कर दी।

-कर्टियस[3]

ग्रीक इतिहासकर प्लुटार्क लिखते है:

चंद्रगुप्त जब अलेक्जेंडर (सिकंदर) से मिले तब चंद्रगुप्त ने सिकंदर से कहा की वो चाहे तो पूरे देश को जीत सकता है क्योंकि यहां का राजा (धनानंद) के नीच होने के कारण सब उसे नफरत करते है ।

-प्लुटार्क , लाइफ ऑफ अलेक्जेंडर 62:9[4]

पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती है

जैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैं

पुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं। वहाँ उनके नाम मिलते हैं

(1) उग्रसेन, (2) पंडुक, (3) पंडुगति, (4) भूतपाल, (5) राष्ट्रपाल, (6) गोविषाणक, (7) दशसिद्धक, (8) कैवर्त और (9) धननन्द।

कुशवंशी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द वंश के धननन्द का वध कर राजा हुए जिनके डर से सिकन्दर भी भाग गया था।

पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित महापद्म के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किंतु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नहीं। पुराणों में उन सबका राज्यकाल 100 वर्षों तक बताया गया है - 88 वर्षों तक महापद्मनंद का और 12 वर्षों तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षों तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षों तक ही राज्य करें, यह बुद्धिग्राह्य नहीं प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदों का राज्यकाल 40 वर्षों का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते हैं। तदनुसार नवनंदों ने लगभग 364 ई. पू. से 324 ई. पू. तक शासन किया। इतना निश्चित है कि उनमें अंतिम राजा अग्रमस् (औग्रसैन्य (?) अर्थात् उग्रसेन का पुत्र) सिकंदर के आक्रमण के समय मगधा (प्रसाई-प्राची) का सम्राट् था, जिसकी विशाल और शक्तिशाली सेनाओं के भय से यूनानी सिपाहियों ने पोरस से हुए युद्ध के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। "महावंशटीका" से ज्ञात होता है कि अंतिम नंद कठोर शासक तथा लोभी और कृपण स्वभाव का व्यक्ति था। संभवत: इस लोभी प्रकृति के कारण ही उसे धननंद कहा गया। उसने चाणक्य का अपमान भी किया था। इसकी पुष्टि मुद्राराक्षस नाटक से होती है, जिससे ज्ञात होता है कि चाणक्य अपने पद से हटा दिया गया था। अपमानित होकर उसने नंद साम्राज्य के उन्मूलन की शपथ ली और कुशवंशी चंद्रगुप्त मौर्य के सहयोग से उसे उस कार्य में सफलता मिली। उन दोनों ने उस कार्य के लिए पंजाब के क्षेत्रों से एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें संभवत: कुछ विदेशी तत्व और लुटेरे व्यक्ति भी शामिल थे। यह भी ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने धननंद को उखाड़ फेंकने में पर्वतक (पोरस) से भी संधि की थी। उसने मगध पर दो आक्रमण किए, यह सही प्रतीत होता है, परंतु "दिव्यावदान" की यह अनुश्रुति कि पहले उसने सीधे मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर ही धावा बोल दिया तथा असफल होकर उसे और चाणक्य को अपने प्राण बचाने के लिए वेष बनाकर भागना पड़ा। उन दोनों के बीच संभवत: 324 ई. पू. में युद्ध हुआ, जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त ने मौर्यवंश का प्रारंभ किया।

सैन्य शक्ति

संपादित करें

नंदो का साम्राज्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संपन्नता एवं सैन्य संगठन का चरम बिंदु था। इनकी विशालतम सुसंगठित सेना में 200000 पैदल, 80000 अश्वारोही, 8000 संग्राम रथ, 6000 हाथी थे। जिसकी सहायता से सम्राट महापद्मनंद ने उत्तर पश्चिम, दक्षिण पूर्व दिशा में बहुत बड़ी सैनिक विजय प्राप्त की और उस समय के लगभग सभी आस पड़ोस के साम्राज्यो का अंत कर के उन का नामोनिशान मिटा दिया। इसी कारण इन्हें पुराणों में सर्वक्षत्रांतक अथवा दूसरा परशुराम कहा गया है।

  • कर्टियस के अनुसार महापद्म की सेना में 20,000 घुड़सवार दो लाख पैदल 2000 रथ एवं 3000 हाथी थे।

नंदो की विजय

संपादित करें

सम्राट महापद्मनंद ने तत्कालीन भारत की विस्तृत सभी 16 महाजनपदों काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल,चेदि,वत्स,अंक, मगध, अवनीत, कुरु, पांचाल, गंधार कंबोज, शूरसेन, अश्मक, एवं कलिंग को जीतकर एवं सुसंगठित कर प्रथम बार सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नीव डाली तथा आगे आने वाली पीढ़ी के शासकों को शासन करने की उत्कृष्ट पद्धति सिखलाई जिसका प्रभाव आधुनिक शासन पद्धति में भी दिखाई पड़ता है। इसीलिए महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक कहा जाता है।

सम्राट महापदम नंद अभी तक मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुए। उनकी विजयों के विषय में हमें पुराणों से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है। उसके पास अतुल संपत्ति तथा असंख्य सेना थी वह कल्कि का अंश' सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला 'दूसरे परशुराम का अवतार'था। जिसने अपने समय के सभी प्रमुख राजवंशों की विजय की उसने एकछत्र शासन की स्थापना किया तथा 18 की उपाधि ग्रहण कि उसके द्वारा उन्मूलन उन्मूलन कुछ राजवंश के नाम इस प्रकार मिलते हैं तो आप इस वंश के लोग कौशल में शासन करते थे वर्तमान अवध क्षेत्र किस राज्य के अंतर्गत था मापदंड द्वारा कौशल विजय की पोस्ट सोमदेव कथासरित्सागर से भी होती है तदनुसार अध्यक्षों का एक सैनिक शिविर था दूसरा पांचाल इस राजवंश के लोग वर्तमान रुहेलखंड में शासन करते थे ऐसा लगता है कि महापद्मनंद के पहले उनका मदद से कोई संघर्ष नहीं हुआ था तीसरा काशी इससे तात्पर्य काशी के वंशजों से पसार के समय से ही काशी मगध का 1 पुराणों में मिलता है जिस समय को अपनी राजधानी बनाई उसने अपने पुत्र को बनारस का नियुक्त किया था ऐसा लगता है कि वंश के उत्तराधिकारी की हत्या को प्राप्त किया

चौथा है इस राजवंश के लोग नर्मदा नदी के 1 भाग प्रशासन करते थे उनकी राजधानी माहिष्मती थी पांचवा कलिंग यह राजवंश उड़ीसा प्रांत में शासन करता था खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है कि किसी नंद राजा की कलिंग के एक भाग को जीता था छठा अस्मत इस वंश के लोग आंध्र प्रदेश की गोदावरी सरिता के तट पर शासन करते थे आंध्र प्रदेश के निजामाबाद के समीप नवरा नामक एक स्थित है कुछ विद्वानों के अनुसार वह इस प्रदेश में नंदू के आधिपत्य का सूचक है परंतु इस विषय में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते सातवां रूप मेरठ दिल्ली थानेश्वर के राजवंश का शासन था इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ में थी आठवां मैथिली मैथिली मिथिला के निवासी थे मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित वर्तमान जनकपुर से की गई है शूरसेन आधुनिक शूरसेन राजवंश का शासन था उसकी राजधानी मथुरा में थी सूत्रों के अनुसार धर्म से संबंधित थे इन्हीं दोनों के बीच हुआ

अपार धन दौलत

संपादित करें

नंदो का राजकोष धन से भरा रहता था, जिसमें 99 करोड़ की अपार स्वर्ण मुद्राएं थी ।इनकी आर्थिक संपन्नता का मुख्य कारण सुव्यवस्थित लाभों उन्मुखी विदेशी एवं आंतरिक व्यापार था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंद राजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के बहुमूल्य कीमती पत्थर थे"।

नंद वंश के शासक

संपादित करें

1.पंडुक अथवा सहलिन (बंगाल का सेन वंश) — नंदराज महापद्मनंद के जेष्ट पुत्र पंडुक जिनको पुराणों में सहल्य अथवा सहलिन कहा गया है ।नंदराज के शासनकाल में उत्तर बिहार में स्थित वैशाली के कुमार थे ।तथा उनकी मृत्यु के बाद भी उनके वंशज मगध साम्राज्य के प्रशासक के रूप में रहकर शासन करते रहे। इन के वंशज आगे चलकर पूरब दक्षिण की ओर बंगाल चले गए हो और अपने पूर्वज चक्रवर्ती सम्राट महापदम नंद के नाम पर सेन नामांतरण कर शासन करने लगे हो और उसी कुल से बंगाल के आज सूर्य राजा वीरसेन हुई जो मथुरा सुकेत स्थल एवं मंडी के सेन वंश के जनक बन गए जो 330 ईसवी पूर्व से 1290 ईस्वी पूर्व तक शासन किए।

2.पंडू गति अथवा सुकल्प (अयोध्या का देव वंश) — आनंद राज के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति तथा पुराणों में संकल्प कहा गया है ।कथासरित्सागर के अनुसार अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां संकल्प एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे तथा कौशल को अवध राज्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई अवध राज्य आणि वह राज्य जहां किसी भी प्रकार की हिंसा या बलि पूजा नहीं होती हो जबकि इसके पूर्व यहां पूजा में पशुबलि अनिवार्य होने का विवरण प्राचीन ग्रंथों में मिलता है जिस को पूर्णतया समाप्त कराया और यही कारण है कि उन्हें सुकल्प तक कहा गया है यानी अच्छा रहने योग्य स्थान बनाने वाला इन्हीं के उत्तराधिकारी 185 ईस्वी पूर्व के बाद मूल्य वायु देव देव के रूप में हुए जिनके सिक्के अल्मोड़ा के पास से प्राप्त हुए हैं

3.भूत पाल अथवा भूत नंदी (विदिशा का नंदी वंश) — चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के तृतीय पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार अथवा प्रकाशक थे।नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे। विदिशा के यह शासक कालांतर में पद्मावती एवं मथुरा के भी शासक रहे तथा बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार की इतिहासकारों ने भूतनंदी के शासनकाल को 150 वर्ष पूर्व से मानते हैं।

4.राष्ट्रपाल (महाराष्ट्र का सातवाहन कलिंग का मेघ वाहन वंश) — महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज के चौथे पुत्र राष्ट्रपाल थे। राष्ट्रपाल के कुशल प्रशासक एवं प्रतापी होने से इस राज्य का नाम राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा यह गोदावरी नदी के उत्तर तट पर पैठन अथवा प्रतिष्ठान नामक नगर को अपनी राजधानी बनाई थी। राष्ट्रपाल द्वारा ही मैसूर के क्षेत्र, अश्मक राज्य एवं महाराष्ट्र के राज्यों की देखभाल प्रशासक के रूप में की जाती थी जिसकी केंद्रीय व्यवस्था नंदराज महापद्मनंद के हाथों में रहती थी। राष्ट्रपाल के पुत्र ही सातवाहन एवं मेघवाल थे ।जो बाद में पूर्वी घाट उड़ीसा क्षेत्र पश्चिमी घाट महाराष्ट्र क्षेत्र के अलग-अलग शासक बन गए। ब्राहमणी ग्रंथों पुराणों में इन्हें आंध्र भृत्य कहा गया है।

5.गोविशाणक(उत्तराखंड का कुलिंद वंश) — महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक थे। नंदराज ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था। महापद्मनंद द्वारा गोविशाणक को प्रशासक बनाते समय एक नए नगर को बसाया गया था ।वहां उसके लिए किला भी बनवाया गया। इसका नामकरण गोविशाणक नगर रखा गया।उनके उत्तराधिकारी क्रमशः विश्वदेव,धन मुहूर्त,वृहतपाल,विश्व शिवदत्त,हरिदत्त, शिवपाल,चेतेश्वर,भानु रावण,हुई जो लगभग 232 ईसवी पूर्व से 290 ईसवी तक शासन किया।

6. दस सिद्धक — चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक थे। नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक मे थी जहां दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया। किंतु इनके पिता महा नंदिवर्धन के नाम पर नंदराज द्वारा बताए गए सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी इन्होंने अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम विंध क्षेत्र में अपनी शक्ति का संवर्धन किया इसलिए उन्हें विंध्य शक्ति भी कहा गया। जिन्होंने 250 ईसवी पूर्व से 510 ईसवी तक शासन किया।

7. कैवर्त — नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है ।यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे। अन्य पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक ना होकर बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे ।तथा सम्राट महापद्मनंद जहां कहीं भी जाते थे, मुख्य अंगरक्षक के रूप में उनके साथ साथ रहते थे। कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही विषयुक्त भोजन करने से हो गई जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।

8. सम्राट घनानंद — सम्राट महापद्मनंद की पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था। घनानंद जब युवराज था तब आनेको शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन करा दिया। नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना। नंदराज एवं भाई कैवर्त की मृत्यु के बाद यह बहादुर योद्धा शोकग्रस्त रहने लगा। फिर भी इसकी बहादुरी की चर्चा से कोई भी इसके साम्राज्य की तरफ आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका। विश्वविजेता सिकंदर ने भी नंद साम्राज्य की सैन्यशक्ति एवं समृद्धि देख कर ही भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की।

नंद वंश की उपलब्धियां और महत्त्व

संपादित करें

नंद वंश के संस्थापक सम्राट महापदम नंद ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया । भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई इसकी सीमाएं गंगा घाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विंध्य पर्वत के दक्षिण में विजय वैजयंती फहराने वाला पहला मगध का शासक महापद्मनंद ही था, खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख से भी कलिंग विजय सूचित होती है। इसके अनुसार नंद राजा जिनसेन की एक प्रतिमा उठा ले ले गए थे तथा उन्होंने कलिंग में तनसुली नहर का भी निर्माण कराया था। मैसूर के 12वीं शती के लेखों में भी नंदो द्वारा कुंतल जीते जाने का विवरण सुरक्षित है क्लासिकल लेखकों के विवरण से पता चलता है की अग्रिम इज का राज्य पश्चिम में व्यास नदी तक फैला था यह भूभाग महापद्मनंद द्वारा ही जीता गया था क्योंकि अगर 20 को किसी भी विजय का श्रेय नहीं प्रदान किया गया है उसकी विजयों के साथ ही क्षत्रियों का राजनीतिक प्रवृत्ति समाप्त हुआ इस विशाल साम्राज्य में एकतंत्रत्मक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई।

नंद राजाओं का शासन काल भारतीय इतिहास के प्रश्न में अपना एक अलग महत्व रखता है। यह भारत के सामाजिक राजनीतिक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सामाजिक दृष्टि से इसे निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है। उसका राजनीतिक महत्व इस तथ्य में निहित है किस वंश के राजाओं ने उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र शासन की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसी सेना तैयार कि जिसका उपयोग परवर्ती मगध राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने तथा भारतीय सीमा में अपने राज्य का विस्तार करने में किया।

नंद राजाओं के समय में मगध राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यंत समृद्धशाली साम्राज्य बन गया था। नंदो की अतुल संपत्ति को देखते हुए यह अनुमान करना स्वाभाविक है, कि हिमालय पार के देशों के साथ उनका व्यापारिक संबंध था साइबेरिया की ओर से भी स्वर्ण मंगाते थे, पता चलता है कि भारत का एक शक्तिशाली राजा पश्चिमी एशियाई देशों के झगड़ों की मध्यस्थता करने की इच्छा रखता था। इस शासक को अत्यंत धनी व्यक्ति कहा गया है जिसका संकेत नंद वंश के सम्राट धनानंद की ओर ही है सातवीं शती के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी नंदों के अतुल संपत्ति की कहानी सुनी थी उनके अनुसार पाटलिपुत्र में पांच स्तूप थे जो नंद राजा के साथ वह अमूल्य पदार्थ द्वारा संचित कोषागारो का प्रतिनिधित्व करते थे।

मगध की आर्थिक समृद्धि ने राजधानी पाटलिपुत्र को शिक्षा एवं साहित्य का प्रमुख केंद्र बना दिया। व्याकरण आचार्य पाणिनि महापदम नंद के मित्र थे। और उन्होंने पाटलिपुत्र में ही रहकर शिक्षा पाई थी वर्ष, उपवर्ष,कात्यायन जैसे विद्वान भी नंद काल में ही उत्पन्न हुए थे। इस प्रकार नंद राजाओं के काल में मगध साम्राज्य राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ।

३४४ ई. पू. में सम्राट महापद्यनन्द ने नन्द वंश की स्थापना की। सम्राट महापदम नंद को भारत का प्रथम ऐतिहासिक चक्रवर्ती सम्राट होने का गौरव प्राप्त है। सम्राट महापदम नंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है । पुराणों में इन्हें महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है। यह नाई जाति से थे।

सम्राट महापद्म को एकराट, सर्व क्षत्रान्तक, एक छत्र पृथ्वी का राजा,भार्गव आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द। सम्राट घनानंद के शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकंदर द्वारा किया गया। लेकिन मगध के सम्राट धनानंद की विशाल सेना के आगे सिकंदर नतमस्तक हो गया और लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी।(उद्धरण अपेक्षित)

  • सम्राट महापद्मनन्द पहले शासक थे जिन्होंने गंगा घाटी की सीमाओं का अतिक्रमण कर विन्ध्य पर्वत के दक्षिण तक विजय पताका लहराई थी.[5]
  • नन्द वंश के समय मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया।
  • व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के मित्र थे।
  • वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए।
  • शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे।

शासकों की सूची

संपादित करें
नंद राजवंश के शासकों की सूची
क्रम-संख्या शासक शासन अवधि (ई.पू) टिप्पणी
1. सम्राट महापद्म नन्द ल. 345/344 ई.पू. से शासन किया 345 ई.पू मे राजवंश की स्थापना की।
2. सम्राट पंडुकनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
3. सम्राट पंडुगतिनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
4. सम्राट भूतपालनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
5. सम्राट राष्ट्रपालनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
6. सम्राट गोविषाणकनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
7. सम्राट दशसिद्धकनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
8. सम्राट कैवर्तनन्द एक वर्ष शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र
9. सम्राट धनानन्द ल. 322 ई.पू. तक शासन किया महापद्म नन्द का पुत्र और नंद वंश का अंतिम शासक, चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा 322 ई.पू. मगध की गद्दी से हटा दिया गया।

इन्हें भी देखें

संपादित करें
  1. शास्त्री, के ए नीलकंठ. नंद मौर्य युगीन भारत. मूल से 2 दिसंबर 2012 को पुरालेखित.
  2. स्मिथ, वीए. द अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया.
  3. R. K. Mookerji 1966, पृ॰ 5.
  4. "Plutarch 62.9". topostext.org. अभिगमन तिथि 2024-03-25. Alex.62.9 Androcottus, when he was a stripling, saw Alexander himself, and we are told that he often said in later times that Alexander narrowly missed making himself master of the country, since its king was hated and despised on account of his baseness and low birth.
  5. Sharma, Prince Sharma. Nandvansh. Nandvansh.

सन्दर्भ ग्रन्थ

संपादित करें
  • नीलकंठ शास्त्री (संपादित) : एज ऑव दि नंदज़ ऐंड मौर्यज़;
  • एज ऑव इंपीरियल यूनिटी (भारतीय विद्याभवन, बंबई); कैब्रिज हिस्ट्री ऑव इंडिया

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें