नरवानर गण

स्तनधारियों का क्रम
(नरवानर से अनुप्रेषित)

नरवानर या प्राइमेट (Primate) स्तनधारी प्राणियों का एक महत्वपूर्ण जीववैज्ञानिक गण है। इनका क्रमविकास (इवोल्यूशन) सर्वप्रथम 8.5–5.5 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। इसके अंतर्गत टार्सियर, लीमर, लोरिस, बंदर, कपि और मानव आते हैं।[1][2][3][4]

नरवानर
Primate
Aye-ayeRing-tailed lemurCapuchin monkeySpider monkeyGibbonTarsierRed slender lorisLion tamarinHamadryas baboonCommon chimpanzee
कुछ नरवानर कुल
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी (Chordata)
वर्ग: स्तनधारी (Mammal)
गण: नरवानर (Primate)
लीनियस, 1758
उपगण

संरचना तथा स्वभाव

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नरवानर अधिकांश वृक्षवासी प्राणी हैं, जिनके हाथ-पैर वृक्षारोहण के उपयुक्त होते हैं। हाथ स्वतंत्रतापूर्वक घुमाए और ऊपर नीचे किए जा सकते हैं। हस्तांगुलियों और पादांगुलियों में नख होते हैं, किंतु कुछ नर वानरों में नखर भी पाए जाते हैं। पादांगुष्ठ कुछ कुछ अपसारी होते हैं और उनसे टहनियों का पकड़ने का काम लिया जाता है। वृक्षवासी प्राणियों में घ्राणशक्ति की अपेक्षा श्रवण शक्ति तथा दृष्टि अधिक प्रबल होती है। दंतरचना, मिश्रित भोजन और विशेषत: फल तथा वनस्पति सेवन के अनुकूल होती है।

वर्गीकरण

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विद्यमान नर वानरों को दो बड़े उपगणों में विभाजित किया गया है : प्रॉसिमिई (Prosimiae) और ऐंथ्रोपोइडिया (Anthropoidea)।

प्रॉसिमिई

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इस उपगण के सभी नरवानर इस अर्थ में 'आद्य' कहलाते हैं कि इनमें कीटभक्षियों की विशेषताएँ - लंबा मुख, पाश्ववर्ती आँखें तथा क्षुद्र मस्तिष्क - पाई जाती हैं। इस गण में निशाकपि और कूर्चमर्कट आते हैं।

निशाकपि या लीमर

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यह नरवानरों में सबसे अधिक आद्य है और प्रमुखत: मैडागास्टर द्वीप में पाया जाता है। यह घने बालोंवाला, सामान्यत: छोटा, रात्रिचर तथा वृक्षवासी प्राणी है। इसके हाथ पैर मध्यमान से कुछ अधिक लंबे, कान नुकीले, बड़े और चलायमान तथा आँखे बहुत बड़ी होती हैं। इसका मुख अपेक्षाकृत लंबा और शृंगाल के समान थूथनवाला होता है। पूँछ लंबी, किंतु अपरिग्राही (nonprehensile), होती है। दाँत गणना में नरवानरों की लाक्षणिक संख्या के अनुसार ही होते हैं। इंद्री (Indri) नामक लीमर सबसे बड़ा है। इसकी लंबाई तीन फुट के लगभग होती है। अन्य निशाकपियों के नाम आई-आई (Aye-aye) तथा लोरिस (Loris) हैं, जिनमें थोड़े बहुत अंतर के साथ उपर्युक्त विशेषताएँ पाई जाती हैं।

कूर्चमर्कट

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यह मलाया तथा उसके आसपास के द्वीपों का निवासी है। यह विचित्र पशु छोटे कद का रात्रिचर है। उल्लू के समान बड़ी आँखों के कारण वह ऐसा दिखाई देता है मानो ऐनक लगाए हो। पूँछ लंबी और सिरे पर गुच्छेदार होती है। यह मुख्यत: कीटभक्षी है। इसमें अपने सिर को 180 अंश तक घुमाने की विलक्षण शक्ति है, जिससे यह पीठ पीछे भी देख सकता है। इसके बाह्य कर्ण बड़े, गतिशील तथा श्रवण शक्ति अत्यधिक तीव्र होती है। कूर्चमर्कट की सबसे बड़ी विशेषता है इसके टाँगों की कुछ अस्थियों का अधिक फैलाव, जो उसके नामकरण का कारण है।

ऐंथ्रोपोइडिया

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यह उपगण निशाकपि की अपेक्षा अधिक चिकसिंतेद्रिय है। इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं : दाँत 32 से 36 तक, अक्षिकूप सर्वथा बंद और स्तन कंधे के समीप होते है। प्रमस्तिष्कगोलार्ध, अत्यधिक परिवलयित और अनुमस्तिष्क को ढके रहता है। इस उपगण को दो कुलों, चिपिटनासा (Platyrrhina), अर्थात्‌ पाताल वानर, एवं अधोनासा अर्थात्‌ पातालेतर वानर (लंगूर और मनुष्य), में विभाजित किया गया है।

चिपिटनासा कुल

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पातालीय वानर की विशेषताएँ निम्नांकित हैं : इसकी नासापटी चौड़ी होती है और अंगुष्ठ अपरिसारी, अवशिष्ट मात्र रह गया है। पूँछ लंबी और परिग्राही (prehensile) होती है। न कपोलधान (Cheek pouch) होते हैं और न नितंब पर किण (callosity) ही। द्वितीय प्रचर्वण दंत अभी सुरक्षित हैं। इस कुल को भी दो उपकुलों में विभाजित किया गया है :

कैलिट्रिकिडी (Callitrichidae)
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इस उपकुल में नखरकपि आते हैं। नखरकपि बड़ी गिलहरी के बराबर होता है। फल, अंडे और कीड़े खाता है। इसकी अंगुलियों पर नख के स्थान पर नखर होते हैं। इसके तीन प्रचर्वण और दो चर्वण दंत होते हैं। इसकी मादा एक बार में दो तीन बच्चे पैदा करती है, जो सामान्य ऐं्थ्राोपोइडिया की प्रकृति के प्रतिकूल है। यह दक्षिण अमरीका के विषुवत प्रदेशों में पाया जाता है।

कपि उपकुल
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दक्षिण अमरीका के अधिकांश बंदर इसी उपकुल के अंतर्गत आते हैं। इनकी पूँछ विशेष रूप से लंबी और अपरिग्राही होती है। भिक्षुकपि इस वंश का आदर्श प्रतिनिधि है। इसी उपकुल के कुछ कपि, जैसे मर्कटिका, अत्यधिक चतुर नर्तक हैं। अमरीका के कपियों में सबसे बड़े शरीरवाला रावि वानर है।

अधोनासा कुल (पातालेतर वानर, लंगूर और मानव)

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इस वंश वालों की नासापटी सँकरी और नथुने नीचे की ओर का होते हैं। मानव के समान सबके 32 दाँत और अपरिग्राही पूँछ होती है। शरीर पर अविरल वाल और मुख लोमरहित होता है। इनको तीन उपकुलों में विभाजित किया गया है- पुच्छकपि, गोरिल्ला और मानव।

पुच्छकपि उपकुल (श्ववानर, नरकीश, लंगूर)
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ये सब चतुष्पद की भाँति चलते हैं। इनके नितंब पर किण होते हैं। ये संकीर्णवक्ष, लंबे भेदक दंत तथा कपोलधानयुक्त सर्वभक्षी होते हैं। इनके कुछ अवयवों पर विचित्र रंगों की आभा पाई जाती है। ये युद्धप्रवीण होते हैं और एशिया तथा अफ्रीका के वनों में रहनेवाले हिंस्र पशुओं का सामना सफलतापूर्वक करते हैं।

गोरिल्ला उपकुल (पुरुषाभ वानर)
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ये मानव के दूर के संभ्राता माने जाते हैं। इनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं : ये कपोलधानरहित होते हैं और इनकी पूँछ प्रारंभिक मात्र है। इनमें से शाखा वानरों को छोड़कर किसी के भी नितंब पर किण नहीं होते। हाथ पैरों की अपेक्षा अधिक लंबे होते हैं। इनमें कुछ-कुछ द्विपाद प्रवृत्ति पाई जाती है। शरीर के अग्रभाग और हाथ पैरों पर लोग पाए जाते हैं। इस वंश में शाखावानर, वनमानुष, मध्यवानर तथा भीमवानर आते हैं।

गिब्बन (शाखा वानर) - यह दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाया जाता है। यह ऐंथ्रोपोडिया वानरों में से सबसे अधिक आद्य और छोटा है। साधारण गिब्बन खड़ी अवस्था में तीन फुट से अधिक ऊँचा नहीं होता है। यह सर्वथा वृक्षवासी है, किंतु भूमि पर भी सीधा खड़ा होकर चल सकता है। इसकी बाहें बहुत लंबी होती है और सीधा खड़ा होने पर भूमि का स्पर्श कर सकता हैं। यह फलभक्षी है, यद्यपि इसके भेदक दंत पर्याप्त बड़े और आत्मरक्षा के लिए खड्ग का काम देते हैं। इसकी आवाज बहुत भारी होती है।

वनमानुष (औरांग-ऊटान) - यह सुमात्रा और बोर्नियो द्वीपां का वासी है। यह नाटा किंतु स्थूलकाय और हलके लाल बालोंवाला होता है। यद्यपि यह चार फुट ही ऊँचा होता है, तथापि इसकी भुजा सात फुट की ऊँचाई तक पहुँच सकती हैं। सिर छोटा, चौड़ा और आँखें सन्निकट होती हैं। जबड़े गहरे, भारी और फलों को चबाने तथा शत्रु का सामना करने में सहायता पहुँचाते हैं। हाथ ही प्रति रक्षाशस्त्र है और वनमानुष शत्रु से लड़ते समय दाँतों की अपेक्षा उनपर अधिक निर्भर रहता है। इसके आरोहण का ढंग मनुष्य के ही समान है। यह अपना घर वृक्षों पर शाखाओं के बीच में बनाता है। यह सर्वथा फलभक्षी प्राणी है (देखें औरांग-ऊटान)।

मध्यवानर-चिंपैजी (Chimpanzee) - यह अफ्रीका निवासी वनमानुष की अपेक्षा हलके शरीर का होने के कारण आरोहण में अधिक पटु होता है। इसका सिर भी वनमानुष की अपेक्षा बड़ा और भ्रूरेखाएँ स्पष्ट होती हैं। यह अपने रहने का स्थान बहुत कुछ वनमानुष के समान ही बनाता है। यह विशेषत: फलभक्षी है किंतु पूर्णत: नहीं।

गोरिल्ला (Gorilla) भीमवानर - यह अफ्रीका के विषुवत्‌ प्रदेशों के वनों का निवासी है। यह ऐंथ्रोपोडिया वानरों में सबसे बड़ा और सबसे अधिक भयंकर भी होता है। यह सामान्यत: पाँच फुट ऊँचा और भारी शरीरवाला है। शरीर का भार डेढ़ सौ से लेकर दो सौ किलोग्राम तक होता है। इसके जबड़े अत्यंत शक्तिशाली और भेदक दंत बड़े होते हैं। इसका चमड़ा काला होता है जिसपर मोटे काले बाल होते हैं। यह यूथ में रहनेवाला प्राणी है और बड़े झुँड बनाकर रहता है। प्रत्येक झुंड का मुखिया एक वृद्ध नर भीमवानर होता है। यह झुंड मानव या अन्य किसी प्राणी से भयभीत नहीं होता, प्रत्युत डटकर सामना करता है। भीमवानर हाथों और दाँतों से भयंकरता से लड़ता है।

मानव सर्वभक्षी, स्थलवासी, द्विपदगामी प्राणी है। यह दो पैरों पर सीधा खड़ा होकर चलता तथा दौड़ता है और प्रधानत: खुले स्थान पर रहता है।

इन्हें भी देखें

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  1. Benton, Michael J. (2005). "Chapter 3: Primate evolution". Vertebrate palaeontology. Wiley-Blackwell. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-632-05637-8. अभिगमन तिथि 2011-07-10.
  2. Cartmill, M. (2010). "Primate Classification and Diversity". प्रकाशित Platt, M.; Ghazanfar, A (संपा॰). Primate Neuroethology. Oxford University Press. पपृ॰ 10–30. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-532659-8.
  3. Hartwig, W. (2011). "Chapter 3: Primate evolution". प्रकाशित Campbell, C. J.; Fuentes, A.; MacKinnon, K. C.; Bearder, S. K. (संपा॰). Primates in Perspective (2nd संस्करण). Oxford University Press. पपृ॰ 19–31. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-539043-8.
  4. Szalay, F.S.; Delson, E. (1980). Evolutionary History of the Primates. Academic Press. OCLC 893740473. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0126801507.