अमरकंटक (Amarkantak) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अनूपपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह विंध्य पर्वतमालासतपुड़ा पर्वतमाला के मिलनक्षेत्र पर मैकल पर्वतमाला में स्थित है। यहाँ से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी (सोन की उपनदी) का उद्गम होता है। यह एक हिन्दू तीर्थस्थल है।[1][2]पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में सती के कूदकर देह त्याग के पश्चात शिव जी के द्वारा उनकी देह को लेकर ताँडव करना और श्री विष्णु जी के द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से देह के 51 टुकड़े करने के बाद उनके दो अंग इस क्षेत्र में गिरे थे। अतः यह क्षेत्र दो शक्तिपीठों का क्षेत्र भी है। उन दो स्थानों में से एक स्थान सोन मूढ़ा पर सोन नदी के उद्गम के पास है और दूसरा स्थान नर्मदा जी के उद्गम के पास जो पार्वती जी का मंदिर है वहीं है।

अमरकंटक , अमरकोट
अमरकंटक एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ है।
अमरकंटक एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ है।
अमरकंटक is located in मध्य प्रदेश
अमरकंटक
अमरकंटक
मध्य प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 22°49′19″N 81°45′12″E / 22.822°N 81.7532°E / 22.822; 81.7532निर्देशांक: 22°49′19″N 81°45′12″E / 22.822°N 81.7532°E / 22.822; 81.7532
देश भारत
राज्यमध्य प्रदेश
जिलाअनूपपुर ज़िला
ऊँचाई1048 मी (3,438 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल8,416
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड484886
 
अमरकंटक का एक दृश्य
 
नर्मदा कुण्ड और मंदिर, नर्मदा नदी का उद्गम यहीं है
 
माई की बगिया में गुलबकावली के पौधे
 
प्राचीन मन्दिर
 
अमरकंटक की औषधीय वनस्पतियाँ

अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान है। यह हिंदुओं का पवित्र स्थल है। मैकाल की पहाडि़यों में स्थित अमरकंटक मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय हिन्‍दू तीर्थस्‍थल है।

,पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सती के दो अंग इस क्षेत्र में गिरे थे अतः यह क्षेत्र दो शक्तिपीठों का क्षेत्र होने के कारण अति पवित्र है। उन दो स्थानों में से एक सोनमूढ़ा पर सोन नदी के उद्गम स्थल के पास है एवं दूसरा माँ नर्मदा के उद्गम के पास स्थित देवी पार्वती जी का मंदिर है । समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्‍थान पर ही मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी की उत्‍पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है। अमरकंटक का बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से संबंध रहा है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी के रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं, जिन्‍हें दुर्गा की प्रतिमूर्ति माना जाता है। अमरकंटक बहुत से आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी प्रसिद्ध है‍, जिन्‍हें किंवदंतियों के अनुसार जीवनदायी गुणों से भरपूर माना जाता है।

इसके अलावा महादेव पहाड़ियाँ भारत की नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच स्थित हैं। ये २,००० से ३,००० फुट तक की ऊँचाई वाले पठार हैं, जो दक्कन के लावा से ढँके हैं। ये पहाड़ियाँ आद्य महाकल्प (Archaean Era) तथा गोंडवाना काल के लाल बलुआ पत्थरों द्वारा निर्मित हुई हैं। महादेव पहाड़ी के दक्षिण की ढालों पर मैंगनीज़ तथा छिंदवाड़ा के निकट पेंच घाटी से कुछ कोयला प्राप्त होता है। वेनगंगा एवं पेंच घाटी के थोड़े से चौड़े मैदानों में गेहूँ, ज्वार तथा कपास पैदा किए जाते हैं। यहाँ आदिवासी गोंड जाति निवास करती है। घासवाले क्षेत्रों में पशुचारण होता है। यहाँ का प्रसिद्ध पहाड़ी क्षेत्र मैकल पर्वत दूधधारा है। अमरकंटक छोटा नगर है।

मुख्य आकर्षण

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यहाँ अनेक रमणीय स्थल है जिनका विवरण क्रमशः आगे दिया गया है।

नर्मदाकुंड और मंदिर

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नर्मदाकुंड नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल है। इसके चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्‍नपूर्णा मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्‍वर महादेव मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्‍वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्‍ण मंदिर और ग्‍यारह रूद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे। माना जाता है कि नर्मदा उदगम की उत्‍पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर कहा जाता है। माना जाता है कि पहले इस स्थान पर बॉस का झुण्ड था माँ नर्मदा निकलती थीं बाद में बाद में रेवा नायक द्वारा इस स्थान पर कुंड और मंदिर का निर्माण करवाया गया | स्नान कुंड के पास ही रेवा नायक की प्रतिमा है | रेवा नायक के कई सदी पश्चात् नागपुर के भोंसले राजाओं ने उद्गम कुंड और कपड़े धोने के कुंड का निर्माण करवाया था | इसके बाद 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने माँ नर्मदा उद्गम कुंड ,स्नान कुंड और परिसर के चारों ओर घेराव और जीर्णोद्धार करवाया |  

धुनी पानी

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अमरकंटक का यह गर्म पानी का झरना है। कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से संपन्‍न है और इसमें स्‍नान करने शरीर के असाध्‍य रोग ठीक हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग इस झरने के पवित्र पानी में स्‍नान करने के उद्देश्‍य से आते हैं, ताकि उनके तमाम दुखों का निवारण हो ॐ।

अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना काफी लो‍कप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है। यह अनूपपुर जिले में है।

कल्चुरी काल के मंदिर

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नर्मदाकुंड के दक्षिण में कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पातालेश्‍वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।

सोनमुड़ा

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सोनमुड़ा सोन नदी का उद्गम स्‍थल है। यहां से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्‍य देखे जा सकते हैं। सोनमुड़ा नर्मदाकुंड से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर मैकाल पहाडियों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन नदी कहा जाता है।

मां की बगिया

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मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्‍थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्‍पों को चुनती थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम, केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किलोमीटर की दूरी पर है।

कपिलधारा

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नर्मदा नदी पर बनने वाला पहला प्रपात है, जो उद्गम स्थल के 8 किमी की दूरी पर स्थित है। लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरने वाला कपिलधारा झरना बहुत सुंदर और लोकप्रिय है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मुनि ने यहाँ वर्षो तक तपस्या की थी घने जंगलों, पर्वतों और प्रकृति के सुंदर नजारे यहां से देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि कपिल मुनि ने सांख्‍य दर्शन की रचना इसी स्‍थान पर की थी। कपिलधारा के निकट की कपिलेश्‍वर मंदिर भी बना हुआ है। कपिलधारा के आसपास अनेक गुफाएं है जहां साधु संत ध्‍यानमग्‍न मुद्रा में देखे जा सकते हैं।

कबीर चबूतरा

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कबीरपंथियों के लिए इस स्थान का बहुत महत्‍व है। कहा जाता है कि संत कबीर संवत 1569 में बांधव गढ़ से जगन्नाथ पुरी प्रवास के समय यहां लंबे समय तक रहे थे। यहां पर ध्‍यान लगाया था। ऐसी मान्यता है कि इस स्‍थान पर कबीर दास जी और सिक्खों पहली पातशाही गुरु नानकदेव जी प्रवास के दौरान आए थे और तब दोनों यहां मिले था और उन्होंने यहां अध्‍यात्‍म व धर्म की बातों के साथ मानव कल्‍याण पर चर्चाएं की। कबीर चबूतरे के निकट ही रानी झरना (कबीर झरना) भी है। अमरकंटक यहां से मात्र 5 किलोमीटर है। मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर और डिंडोरी जिले के साथ छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की सीमाएं यहां मिलती हैं।

सर्वोदय जैन मंदिर

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यह मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्‍थान रखता है। इस मंदिर को बनाने में सीमेंट और लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर में स्‍थापित मूर्ति का वज़न 24 टन के करीब है। भगवान आदिनाथ अष्ट धातु के कमल सिँहासन पर विराजमान है कमल सिंहासन का वज़न 17 टन  है इस प्रकार इस प्रकार प्रतिमा और कमल सिंहासन का कुल वज़न 41 टन है | प्रतिमा को मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज ने 06 नवम्बर 2006 को विधि विधान से स्थापित किया, मन्दिर का निर्माण कार्य अभी भी सुचारू रूप से कार्यरत है।

श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर

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श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर अमरकंटक से 8 किलोमीटर दूर शहडोल रोड पर स्थित है। यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्‍पत्ति होती है। विन्‍ध्‍य वैभव के अनुसार भगवान शिव ने यहां स्‍वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्‍थापित किया था और मैकाल की पह‍ाडि़यों में असंख्‍य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। पुराणों में इस स्‍थान को 'महा रूद्र मेरु' कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। मंदिर के निकट की ओर सनसेट प्‍वाइंट है।

  • वायु मार्ग- अमरकंटक का निकटतम एयरपोर्ट जबलपुर में है, जो लगभग 245 किलोमीटरकी दूरी पर है।
  • रेल मार्ग- पेंड्रा रोड अमरकंटक का नजदीकी रेलवे स्‍टेशन है जो लगभग 35 किलोमीटर दूर है। सुविधा के लिहाज से अनूपपुर रेलवे स्‍टेशन अधिक बेहतर है जो अमरकंटक से 72 किलोमीटर दूर है।
  • सड़क मार्ग- अमरकंटक मध्‍य प्रदेश और निकटवर्ती शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। पेंड्रा रोड, बिलासपुर और शहडोल से यहां के लिए नियमित बसों की व्‍यवस्‍था है।

नर्मदा परिक्रमा

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नर्मदा परिक्रमा विधि विधान नियम से की जावे तो 1300 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बी परिक्रमा होती है जो कि 3 साल 3 महीने 13 दिन में पूरी होती है लेकिन आज के समय में मोटरसाइकिल या चौपहिया वाहन के द्वारा यात्रा को जल्द पूरा कर लिया जाता है नर्मदा परिक्रमा में नर्मदा नदी को पार नहीं किया जाता है परिक्रमा में सभी स्थानों पर दर्शनीय स्थल देखने को मिलते है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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