नागौर जिला

राजस्थान का ज़िला
(नागौर ज़िले से अनुप्रेषित)

नागौर भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय नागौर है।[1][2]

नागौर ज़िला
नागाणो
Nagaur district

राजस्थान में नागौर ज़िले की अवस्थिति
राज्य राजस्थान
 भारत
प्रभाग अजमेर मंडल
मुख्यालय नागौर
क्षेत्रफल 17,718 कि॰मी2 (6,841 वर्ग मील)
जनसंख्या 3300000 (2011)
जनघनत्व 185/किमी2 (480/मील2)
साक्षरता 66%
तहसीलें नागौर, खीवंसर, जायल, मुंंडवा, मेड़ता, डेगाना, रियांबड़ी, डेह, सांजू
ज़िलाधिकारी अरुण कुमार पुरोहित
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र नागौर
विधानसभा सीटें 05
राजमार्ग 62
औसत वार्षिक वर्षण 250-400mm मिमी
आधिकारिक जालस्थल
  • नागौर जिला 26°25' और 27°40' उत्तरी अक्षांश और 73°.10' और 75°.15' पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। यह सात जिलों बीकानेर , चुरू , सीकर , जयपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर के बीच स्थित है । नागौर राजस्थान का पाँचवाँ सबसे बड़ा जिला है, जिसका विशाल भूभाग १७,७१८ वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसका भौगोलिक विस्तार मैदान, पहाड़ियों, रेत के टीलों का एक अच्छा संयोजन है और इस तरह यह महान भारतीय थार रेगिस्तान का एक हिस्सा है।
  • नागौर का वर्तमान जिला राजस्थान राज्य के केंद्र में एक स्थान पाता है। यदि हम राजस्थान के मानचित्र पर एक क्रॉस बनाते हैं तो इस क्रॉस का केंद्र नागौर जिले में पड़ता है। राज्यों के विलय से पहले, नागौर तत्कालीन जोधपुर राज्य का हिस्सा था।
  • स्वतंत्रता के बाद, नागौर को देश में उस स्थान के रूप में चुने जाने का सम्मान मिला, जहां से 2 अक्टूबर 1959 को भारत के पहले प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण प्रक्रिया शुरू की गई थी।
  • नागौर जिला राजस्थान के सबसे बड़े जिले में से एक है। जिला कलेक्टर जिला प्रशासन का प्रमुख होता है। जिला प्रशासन में 3 अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (नागौर,डीडवाना कुचामन और डीडवाना) प्रशासनिक कर्तव्यों के निर्वहन में उनकी मदद करते हैं।
  • स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक सहायता प्रदान करने के लिए उप मंडल में बारह उप मंडल अधिकारी (एसडीओ) काम करते हैं। नागौर जिले में बारह उप-मंडल हैं।
  • इस जिले में सोलह तहसील मुख्यालय हैं। प्रत्येक के पास प्रशासनिक अधिकारी के रूप में एक तहसीलदार होता है, जो ग्रामीण किसानों और भूमि-धारकों की सेवा के लिए भूमि-अभिलेख प्रणाली के अनुसार काम करता है।
  • नागौर एक लोकसभा क्षेत्र भी है।
  • नागौर विशेष रूप में प्रत्येक वर्ष लगने वाले पशु मेले के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस मेले में हर साल काफी संख्या में पर्यटक भी आते हैं।
  • इसके अतिरिक्त यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर और स्मारक भी है।
  • यहां के लोग ज्यादातर खेती करते है। यहाँ मूंग, बाजरी, तिलहन तथा कपास और मसाला मेथी की खेती होती है।
  • यह जिला मेथी के लिये प्रसिद्ध है।
  • नागौर के मकराना मे विश्व प्रसिद्ध मार्बल निकलता है। यहाँ के मार्बल पत्थर से ही शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण करवाया था। उत्तर भारत मे इतिहासिक मन्दिरों, गुरूद्वारो मे इसी नागौर के पत्थर का उपयोग किया है। पंजाब के स्वर्ण मंदिर मे भी मकराना नागौर के मार्बल का उपयोग किया है।
  • नागौर जाट बाहुल्य क्षैत्र है। राजनैतिक दृष्टि से नागौर राजस्थान की राजनीति का केन्द्र है। यहाँ हमेंशा जाटों ने भारत व राजस्थान की राजनीति मे अपना वर्चस्व रखा।

यह क्षेत्र प्राकऐतिहासिक है, किंतु नागौर की प्रसिद्धि मध्ययुगीन है। सपादलक्ष अर्थात् सांभर एवं नागौर चौहानों के मूल स्थान थे।

भारत में तुर्को के आगमन के साथ ही नागौर उनकी शक्ति का केन्द्र बन गया। नागौर महाराणा कुम्भा के अधीन भी रहा। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में गुजरात के मुस्लिम शासकों की नागौर की राजनीति में दिलचस्पी रही। सन् 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह द्वितीय ने नागौर पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था।

सम्राट अकबर के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।

राजस्थान में अजमेर के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा। यहाँ पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख हमीदुद्दीन नागौरी (1192-1274 ई.) ने अपने गुरु के आदेशानुसार सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया। यद्यपि इनका जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन इनका अधिकांश समय नागौर में ही बीता। इन्होंने अपना जीवन एक आत्मनिर्भर किसान की तरह गुजारा और नागौर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति सुवाल नामक गाँव में खेती की। वे पूर्णतः शाकाहारी थे एवं अपने शिष्यों से भी शाकाहारी रहने को कहते थे। इनकी ग़रीबी को देखकर नागौर के प्रशासक ने इन्हें कुछ नकद एवं ज़मीन देने की पेशकश की, जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया।

हमीदुद्दीन नागौरी समंवयवादी थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुरूप सूफी आन्दोलन को आगे को आगे बढ़ाया। नागौर में चिश्ती सम्प्रदाय के इस सूफी संत की मजार आज भी याद दिला रही है। इस मजार पर मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने एक गुम्बद का निर्माण करवाया था जो 1330 ई. में बनकर पूर्ण हुआ।

नागौर को सूफी मत के केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में यहाँ के सूफी संत ख्वाजा मखदूम हुसैन नागौरी (15वीं शताब्दी) का नाम उल्लेखनीय है। 16 वीं शताब्दी में नागौर में राजपूत शाक्ति के उदय के बावजूद भी नागौर सूफी सम्प्रदाय का केन्द्र बना रहा। अकबर के दरबारी शेख मुबारक के पिता एवं अबुल फ़जल के दादा शेख ख़िज़्र नागौर में ही आकर बस गये थे।

नागौर की प्राचीन इमारतों में अतारिकिन का विशाल दरवाज़ा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में इल्तुतमिश ने बनवाया था।

जाटों का रोम

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नागौर को जाटों का रोम(Rome,Italy) कहा जाता है । यह मुख्य रूप से नागवंशी , और महान संतों और सुधारकों से बड़ी संख्या में जाट कुलों की उत्पत्ति का स्थान है ।

  • कई जाट कुलों का उद्गम स्थल होने के कारण जाट इतिहास के मामले में नागौर जिले का विशेष महत्व है ।
  • नागौर के पास खरनाल में पैदा हुए तेजाजी (1074- 1103) को लोक-देवता माना जाता है, और सभी समुदायों द्वारा पूरे राजस्थान , उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पूजा की जाती है । एक ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में तेजाजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल दशमी दिनांक 29 जनवरी 1074 को राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल के एक सरदार, धौल्या गोत्र जाट, चौधरी तहरजी (थिरराज) के परिवार में हुआ था ।
  • कर्माबाई (१६१५ - १६३४) एक प्रसिद्ध जाट महिला थीं, जिन्हें भक्त शिरोमणि कर्माबाई के नाम से जाना जाता था। इनका जन्म 20 जनवरी 1615 में नागौर जिले में स्थित डूडी गांव में जीवणजी के परिवार में हुआ था
  • फूलबाई (1664 - 1682) (फुलाबाई भी) एक प्रसिद्ध जाट महिला थीं, जिन्हें भक्त शिरोमणि फूलबाई के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म 1664 ई. में मंजू गोत्र के जाट सरदार के परिवार में नागौर से 20 किमी की दूरी पर स्थित मंजुवास गांव में हुआ था ।
  • रानाबाई (10 अप्रैल 1504-1516 मार्च 1570), राजस्थान की दूसरी मीरा कही जाती है, इनका जन्म नागौर में परबतसर तहसील के हरनावा गांव में चोधरी यालाम सिंह घाना जाट के परिवार में हुआ था।
  • मुगल काल में नागौर एक प्रसिद्ध नगर था. अकबर के दरबार के रत्न अबुल फजल और फैजी के पिता शेख मुबारक नागौर के ही रहने वाले थे और नागोरी कहलाते थे.

जाट इतिहास

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संत श्री कान्हाराम ने लिखा है कि.... नागौर नागों की मूल राजधानी रही है। प्राचीन काल में यहाँ पानी की झील थी। जिसमें नागवंशियों का जलमहल था। पहले शिशुनाग (शेषनाग) और बाद में वासुकि नाग यहाँ राजा था। शिशुनाग जलमहल में निवास करता था। ईसा की चौथी शताब्दी में यहाँ नागों द्वारा दुर्ग का निर्माण किया गया था। इस दुर्ग का नाम नागदुर्ग। कालांतर में नागदुर्ग शब्द ही नागौर बना।

मध्यकाल में नागौर के चारों ओर तीन सौ से चार सौ किमी के क्षेत्र में नाग गणों के गणराज्य फैले हुये थे। नाग+गण = नागाणा । इस क्षेत्र को नागाणा बोला गया। इन गण राज्यों में 99 प्रतिशत नागवंश से निकली जाट शाखा के थे। आज नागौर के चारों और 400-500 किमी तक फैली जाट जाति अकारण नहीं है। इसका ठोस कारण प्राचीन गणराज्य है।

नागौर कई बार बसा और उजड़ा, उजड़ने के कारण इसका नाम नापट्टन भी पड़ा। नागौर किले का माही दरवाजा भी नागवंशी परंपरा का उदाहरण है। इसके प्रस्तर खंडों पर नाग-छत्र बना हुआ है। नागौर का एक नाम अहिछत्रपुर भी है जिसका उल्लेख महाभारत में है। महाभारत युद्ध में अहिछत्रपुर के राजाओं ने भी भाग लिया था। अहिछत्रपुर का अर्थ है 'नागों की छत्रछाया में बसा हुआ पुर (नगर)'। यहाँ नागौर की धरती पर नाग वंश की जाट शाखा के राव पदवी धारी जाटों ने 200 वर्ष तक राज किया था।

  • नागौर 5000 वर्ष पुराना है । यहां के प्रतापी राजा चंद्रसेन, राव चूड़ामणि , राव अमरसिंह राठौड़ ने राज किया । इस गढ़ के राजा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की ।  १२वीं शताब्दी की शुरुआत में निर्मित और बाद की शताब्दियों में बार-बार बदल दिया गया, इसने कई लड़ाई देखी। २००७ में प्रमुख जीर्णोद्धार किया गया।  ९० फव्वारे अब बगीचों और इमारतों में चल रहे हैं। किले की इमारतें और स्थान, दोनों बाहरी और आंतरिक, एक सूफी संगीत समारोह के स्थल, मंच और घर के रूप में काम करते हैं।
  • Rol , भी रूप में जाना जाता Rol शरीफ में एक गांव है जायल की तहसील नागौर जिले में भारतीय राज्य की राजस्थान । गांव में शाही जामा मस्जिद समेत कई मस्जिदें हैं। मुहम्मद का जुब्बा मुबारक है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके पास बुखारा, रूस से काजी हमीदुद्दीन नागौरी द्वारा लाए गए पवित्र अवशेष हैं। देश के विभिन्न भागों से भक्तों पर इकट्ठा उर्स की Quazi साहब अवसर को मनाने के। गांव मेंएक वार्षिक उर्स मेला (उर्स मेला) आयोजित किया जाता है।
  • लाडनूं - 10वीं सदी के जैन मंदिर ऐतिहासिक आकर्षण से भरपूर हैं। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय - जैन धर्म का केंद्र; विचार का एक स्कूल; आध्यात्मिकता और शुद्धि का केंद्र; अहिंसा का एक समाज ।राजस्थान के नागौर जिले में दधिमती माता मंदिर ।
  • बैराथल कल्लं - बैराथल कल्लं गांव की स्थापना करीब 700-750 साल पहले हुई थी।
  • खिनवसर शहर - खिमसर किला - नागौर से 42 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 62 पर जोधपुर की ओर स्थित है । भगवान महावीर स्वामी ने यहां चातुर्मास किया था उस समय इस गांव का नाम अस्थिग्राम था । थार रेगिस्तान के बीच में बना 500 साल पुराना किला; आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होटल में बदल गया। यहां रहा करता था मुगल बादशाह औरंगजेब ; खिनवसर शहर में 25 छोटे मंदिर हैं; झुंड में घूमते काले हिरण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।
  • डेह - दधिमती माता मंदिर गोठ-मांगलोद तहसील डेह; नागौर से 40 किमी; गुप्त वंश (चौथी शताब्दी) के दौरान निर्मित जिले का सबसे पुराना मंदिर ; दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी ।
  • मेड़ता - मीरा बाई मंदिर - चारभुजा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है; 400 साल पुराना; सबूत है कि कैसे पूर्ण समर्पण ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करने में मदद करता है; कितनी गहरी आस्था जहर को 'अमृत' में बदल देती है।
  • कुचामन शहर - कुचामन किला - राजस्थान के सबसे पुराने और सबसे दुर्गम किलों में से एक ; एक सीधी पहाड़ी की चोटी पर स्थित; अद्वितीय जल संचयन प्रणाली; जोधपुर के शासक यहां अपनी सोने-चांदी की मुद्रा ढालते थे; शहर के दृश्य प्रदान करता है; किला एक होटल में परिवर्तित हो गया।
  • खाटू - खाटू का पुराना नाम शतकूप (छह कुएं) था। जब शक शासक भारत आए तो वे अपने साथ दो नए कुएं लाए जिन्हें शकंधु (बाड़ी) और कलंध (राहत) कहा जाता था। पृथ्वीराज रासो के अनुसार खाटू का पुराना नाम खटवान था। पुराना खाटू लगभग नष्ट हो चुका है। अब दो गाँव हैं, एक को बारी खाटू और दूसरे को छोटी खाटू कहा जाता है। बड़ी खाटू की पहाड़ी पर एक छोटा सा किला खड़ा है। किले का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था । छोटी खाटू में एक पुराना बावड़ी स्थित है, जिसे फूल बावड़ी के नाम से जाना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण गुर्जर प्रतिहार काल में किया गया था। यह बावड़ी अपनी स्थापत्य शैली में कलात्मक है।
  • कुड़की - कुड़की , नागौर जिले की मेड़ता तहसील के पास जैतारण तहसील के जिला पाली का एक छोटा सा कस्बा है । यह मेड़ता से लगभग 42 किमी दूर राजकुमारी और कवि मीरा बाई का जन्मस्थान है ।मेड़ता के राव दूदा की पौती मींरा बाई का यहां ननीहाल था । प्रथम पुत्र के पैदा होने के समय मारवाड़ की महिलाए अक्सर अपने पीहर में प्रसव करवाती हैं।
  • खरनाल - यह नागौर से लगभग 15 किमी दूर नागौर-जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यह लोक देवता वीर तेजाजी का जन्मस्थान है । ऐसा माना जाता है कि खरनाल की स्थापना धवल खिची ने की थी जो जयल राज्य के चौहान शासक गुंडल राव खिची की 5वीं पीढ़ी में थे । वीर तेजाजी का जन्म जाट के धोलिया गोत्र में हुआ था ।
  • उन्तवालिया - यह नागौर से 15 किमी और अलाई से 10 किमी दूर स्थित है।
  • झोरदा - यह लगभग 30 किमी दूर नागौर के उत्तर में स्थित है। यह महान संत बाबा हरिराम का जन्मस्थान है ।
  • डेह - यह नागौर से 20 किमी दूर NH-58 पर स्थित एक तहसील मुख्यालय है। यहां प्रसिद्ध मंदिर 'कुंजल माता' का मंदिर भी है।

नागौर जिले में धार्मिक स्थल

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  • गुरु जम्भशेवर महाराज मन्दिर पिंपासर
  • वीर तेजाजी का मन्दिर खरनाल गाँव
  • श्री बाबा रामदेव जी का प्राचीन मंदिर "बसवाणी धाम"
  • पशुपतिनाथ मंदिर, मांझवास, नागौर
  • चतुरदासजी महाराज मंदिर बुटाटी गाँव
  • गुरु जम्भशेवर महाराज मन्दिर रोटू धाम जायल नागौर
  • हरीराम जी महाराज मंदिर झोरङा गाँव
  • मीरा बाई मन्दिर मेड़ता सिटी।
  • दधिमती माता मंदिर, गोठ-मांगलोद
  • सूफी हमीदुद्दीन नागौरी दरगाह
  • बड़े पीर साहब गोस पाक की दरगाह
  • संत लिखमीदास जी महाराज मंदिर अमरपुरा गाँव
  • कुंजल माता मंदिर, डेह
  • संत शिरोमणि श्री रानाबाईजी महाराज की धाम हरनावा
  • संत शिरोमणि श्री फुलांबाई का मंदिर मंझवास
  • श्री भंवाल माता का मंदिर भंवाल
  • अनंत विभूषित श्री श्री 1008 श्री दरियाव जी महाराज की धाम रेण
  • रामस्नेही संतों की धाम टालनपुर
  • श्री बंशीवाला का मंदिर नागौर
  • करंट बालाजी का मंदिर कुचेरा
  • श्री भैरूंजी महाराज का मंदिर कुचेरा
  • श्री गणेश मंदिर मुंदियाड़
  • श्री कैवाय माता का मंदिर, किंसरिया ( परबत्तसर)
  • श्री किशनदास जी का रामद्वारा ,रामधाम टांकला( नागौर)
  • नाथो की छतरी, बड़ली ( नागौर)
  • नवलराम जी का जन्म स्थान हरसोलाव ( नागौर)
  • नखत बन्ना की धाम जानेवा पूर्व (नागौर)


वन, वनस्पति और जीव

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नागौर जिला वन संसाधनों में गरीब है। पहाड़ियों सहित कुल क्षेत्रफल 240.92 किमी 2 बताया गया है , जो जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.3 प्रतिशत है। कम वर्षा और अन्य भौगोलिक बाधाएं इसके लिए जिम्मेदार हैं। कम रेत के टीलों पर उगने वाली कम जड़ी-बूटियों और घास को छोड़कर जिले का पश्चिमी भाग प्राकृतिक वनस्पति आवरण से विभाजित है। हालाँकि, जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग और लाडनूं और डीडवाना की उत्तरी तहसील के हिस्से में जिले के उत्तर-पश्चिम भाग की तुलना में बहुत अधिक हरियाली है। खेज्रीकपेड़ आमतौर पर जिले में पाए जाते हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग चारे के रूप में किया जाता है। यह गोंद भी देता है। व्यावसायिक महत्व के अलावा इस पेड़ को पवित्र माना जाता है। मिट्टी के कटाव को रोकने में भी पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिले में पाई जाने वाली अन्य सामान्य प्रजातियाँ बाबुल , नीम , शीशम , पीपल , रोहिरा , कलसी, धनगूड, अकरा आदि हैं। रोहिरा और शीशम के पेड़ लकड़ी प्रदान करते हैं और फर्नीचर बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। धनगूड का प्रयोग आमतौर पर चारपाई बनाने के लिए किया जाता है। एक सामान्य झाड़ी-कोहरा इसकी जड़ों और टहनियों से निर्माण सामग्री प्रदान करता है।

नागौर 27.2°N 73.73°E पर स्थित है ।  इसकी औसत ऊंचाई ३०२ मीटर (९९० फीट) है। नागौर सात जिलों बीकानेर, चुरू, सीकर, जयपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर के बीच स्थित है। नागौर 17,718 किमी 2 (6,841 वर्ग मील) में फैले विशाल भूभाग के साथ राजस्थान का पांचवा सबसे बड़ा जिला है, इसका भौगोलिक विस्तार मैदान, पहाड़ियों, रेत के टीले का एक अच्छा संयोजन है और इस तरह यह महान भारतीय थार रेगिस्तान का एक हिस्सा है।

गर्म गर्मी के साथ नागौर का मौसम शुष्क रहता है। गर्मियों में रेत के तूफान आम हैं। जिले की जलवायु अत्यधिक शुष्कता, तापमान के बड़े बदलाव और अत्यधिक अनियमित वर्षा पैटर्न द्वारा चिह्नित है। जिले में अधिकतम तापमान 117F दर्ज किया गया है जिसमें 32F न्यूनतम दर्ज किया गया तापमान है। जिले का औसत तापमान 74 °F (23 °C) है। सर्दियों का मौसम नवंबर के मध्य से मार्च की शुरुआत तक रहता है। बारिश का मौसम अपेक्षाकृत छोटा होता है, जो जुलाई से मध्य सितंबर तक होता है। जिले में दस रैंगेज स्टेशन हैं, अर्थात् - नागौर, खिनवसर, डीडवाना, मेड़ता, पर्वतसर, मकराना, नवा, जयल, डेगाना और लाडनूं।

जिले में औसत वर्षा 36.16 सेमी और 59% सापेक्ष आर्द्रता है।

जनसंख्या और क्षेत्र

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जिले में 1624 राजस्व सम्पदा (गांव) शामिल हैं, जिनमें से मेड़ता, डीडवाना, मकराना, परबतसर और कुचामन जिले के प्रमुख शहर हैं। जिले का कुल क्षेत्रफल 17,718 वर्ग किमी है, जिसमें से 17,448.5 वर्ग किमी ग्रामीण और 269.5 वर्ग किमी शहरी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले की जनसंख्या 33,07,743 (6,37,204 शहरी और 26,70,539 ग्रामीण आबादी) है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 4.82% है और जनसंख्या की दशकीय वृद्धि 19.20% (2001-2011) है। ) पूरे राजस्थान के 200 के मुकाबले जिले में जनसंख्या का घनत्व 187 है। जिले के 17,58,624 व्यक्ति साक्षर हैं, जिनमें से 13,75,421 ग्रामीण और 3,83,203 शहरी हैं, जो इसे कुल जनसंख्या का 62.80% बनाता है। इस साक्षर जनसंख्या में 77.20% पुरुष और 47.80% महिलाएं हैं।

कुल जनसंख्या ३३४०२३४
पुरुष १६७९५७०
महिला १६६०४७४
% दशकीय वृद्धि (2001-11) 19.25
लिंग अनुपात 948
घनत्व १८७
बाल जनसंख्या (0-6) 498585
साक्षरता दर (कुल) ९४.०८
साक्षरता दर (पुरुष) 88.90
साक्षरता दर (महिला) 98.63

नागौर मेला

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नागौर पशु मेला-

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यह पशु मेले के दौरान भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है जिसे नागौर पशु मेला, नागौर के नाम से जाना जाता है।

  • नागौर पशु मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है। मेला आठ दिनों तक चलता है।
  • राजस्थान का नागौर मेला हर साल आमतौर पर माघ के हिंदू महीने में होता है, जिसमें अंग्रेजी के जनवरी और फरवरी महीने शामिल होते हैं।
  • यह नागौर के पशु मेले के रूप में लोकप्रिय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नागौर मेला मुख्य रूप से जानवरों के व्यापार के बारे में है। इस मेले में हर साल लगभग 70,000 बैल, ऊंट और घोड़ों का व्यापार होता है। जानवरों को भव्य रूप से सजाया जाता है और यहां तक ​​कि उनके मालिक भी रंगीन पगड़ी और लंबी मूंछें पहनकर तैयार होते हैं। भारत में नागौर मेले में अन्य व्यापार में भेड़ से लेकर मारवाड़ी घोड़ों से लेकर मसाले तक शामिल हैं। कुछ अन्य आकर्षणों में मिर्ची बाजार (भारत का सबसे बड़ा लाल मिर्च बाजार), लकड़ी के सामान, लौह-शिल्प और ऊंट चमड़े के सामान शामिल हैं।
  • मेले में व्यवसाय करने के अलावा, आगंतुकों को विभिन्न प्रकार की आकर्षक गतिविधियों का आनंद लेने का उत्कृष्ट अवसर मिलता है। मेले में आयोजित होने वाले प्रमुख खेलों में रस्साकशी, ऊंट दौड़, बैल दौड़ और मुर्गों की लड़ाई शामिल हैं। जबकि बाजीगर; कठपुतली, कहानीकार और कैम्प फायर शाम इसे जीवन भर का अनुभव बनाते हैं; जोधपुर के लोक संगीत द्वारा निर्मित मनमोहक वातावरण के बीच रेगिस्तान की रेत की शांति को महसूस कर सकते हैं।
हवाई अड्डा

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर विमानक्षेत्र है। यह जगह नागौर से 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग

नागौर का सबसे बङा रेल्वे स्टेशन मेड़तारोड़ का है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन नागौर में है।

सड़क मार्ग

नागौर के लिए सीधी बस-सेवा है। दिल्ली, अहमदाबाद, अजमेर, आगरा, जयपुर, जैसलमैर और उदयपुर से बस-सेवा की सुविधा उपलब्ध है।

पुरातत्व रुचि के स्थान

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  • खरनाल - यह नागौर से लगभग 15 किलोमीटर दूर नागौर- जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्गपर स्थित है। यह लोक देवता वीर तेजाजी का जन्म स्थान है। ऐसा माना जाता है कि खरनाल की स्थापना धोलिया जाटों ने की थी। तेजाजी को लोक-देवता माना जाता है और सभी समुदायों द्वारा पूरे राजस्थान और मध्य प्रदेश में मालवा में पूजा की जाती है। उनका जन्म भाद्रपद शुक्ल दशमी दिनांक 29 जनवरी 1074 को धौल्या गोत्र जाटोंके परिवार में हुआ था । उनके पिता चौधरी तहरजी, खिरनाल के एक सरदार थे।
  • हरनावा - रानाबाई धाम - यह रानाबाई का जन्म स्थान है। राणाबाई (रानाबाई) (1504-1570) धूम गोत्रकी एक जाट योद्धा लड़की और कवयित्री थीं, जिनकी रचनाएँ राजस्थान, भारत के मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। उन्हें ' राजस्थान की दूसरी मीरा' के रूप में जाना जाता है। वह संत चतुरदासजी की शिष्या थीं। राणाबाई ने राजस्थानी भाषा में कई कविताओं (पदों ) की रचना की।
  • जुंजाला - गुसाईंजी धाम, नागौर से लगभग 40 किमी दूर मेड़ता-नागौर मार्ग पर स्थित है। गुसाईंजी मंदिर जुंजाला गांव में स्थित है। यह मंदिर बहुत प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व का है। यहां दो बार चैत्र सुदी 1-2 और अश्विन सुदी 1-2 पर मेलों का आयोजन किया जाता है। अनुयायी राजस्थान , पंजाब , हरियाणा , गुजरात , मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आते हैं. यहां हिंदू और मुसलमान दोनों पूजा के लिए आते हैं। हिंदू देवता को गुसाईंजी महाराज और मुसलमान बाबा कदम रसूल कहते हैं
  • पीपासर- पीपासर नागौर जिले की नागौर तहसील का एक छोटा सा गाँव है। यह विश्नोई समुदाय के संस्थापक महान संत जंभोजी का जन्म स्थान है।
  • मांगलोद - गोठ -मांगलोद दधिमती मंदिर। दधिमती को ऋषि दधीचि की बहन कहा जाता है। देवी दधिमती का दधिमती मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है। और गोठ-मंगलोद गांवों से घिरा हुआ है। यह उत्तर भारत के सबसे पुराने जीवित मंदिरों में से एक है। पुरातत्व की दृष्टि से इसका निर्माण चौथी शताब्दी में हुआ था और यह गुप्त काल का है।
  • फलौदी- नागौर जिले की मेड़ता तहसील में मेड़ता रोड रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। ब्राह्मणी माता का एक पुराना मंदिर जिसे फलवर्धिका माता के नाम से जाना जाता है जो १०वीं शताब्दी या उससे भी पहले की है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि मंदिर का निर्माण प्रतिहार काल के दौरान किया गया था और यह मेड़ता शहर से 11 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • खाटू' - खाटू का पुराना नाम शतकूप (छह कुएं) था। जब शक शासक भारत आए तो वे अपने साथ दो नए कुएं लाए जिन्हें शकंधु (बाड़ी) और कलांध (राहत) कहा जाता था। पृथ्वीराज रासो के अनुसार खाटू का पुराना नाम खटवान था। पुराना खाटू लगभग नष्ट हो चुका है। अब दो गाँव हैं, एक को बड़ी खाटू और दूसरे को छोटी खाटू कहा जाता है। बड़ी खाटू की पहाड़ी पर एक छोटा सा किला' खड़ा है। किले का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था। छोटी खाटू में एक पुराना बावड़ी स्थित है, जिसे फूल बावड़ी के नाम से जाना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण गुर्जर प्रतिहार काल में किया गया था। यह बावड़ी अपनी स्थापत्य शैली में कलात्मक है।
  • हरसोलाव - माना जाता है कि यह गांव कई सदियों पुराना है। इसमें एक पुराना किला, एक गणेश मंदिर, एक जैन मंदिर और रामचंद्र गुर्जर का एक स्मारक है जो देखने लायक है। इमारत में पत्थर की खूबसूरत नक्काशी देखी जा सकती है। गांव नागौर जिले की मेड़ता तहसील में गोथन - जोधपुर मार्ग पर स्थित है।
  • मुंडियाड - यह नागौर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर स्थित है। नागौर तहसील में गांव सदियों पुराना है, ऐसा माना जाता है कि गांव की स्थापना मुंद्रा माहेश्वरी ने की थी, इसलिए इसे मुंडियाड कहा जाता है। यहाँ एक पुराना माताजी मंदिर और मध्ययुगीन काल के जागीरदारों और चरणों के स्मारक हैं। यहां एक छोटा गणेश मंदिर भी है जो आसपास के लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।
  • मांझवास - यह गांव "पशुपति नाथ मंदिर" और " फुलाबाई मंदिर " के लिए प्रसिद्ध है। यह नागौर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर है। पशुपति नाथ मंदिर भारत में अद्वितीय है। फुलाबाई सन् 1664 में मंजू गोत्र जाट परिवारमें पैदा हुई संत थीं । वह बचपन से ही भगवान राम के प्रति अत्यधिक समर्पित थीं और उन्होंने अपना अधिकांश समय श्री राम की "भक्ति" और "कीर्तन" में बिताया।
  • रेण - यह ग्राम नागौर जिले की मेड़ता तहसील में स्थित है। 15 किमी. मेड़ता सिटी से दूर यहाँ राम सनेही समुदाय की एक प्रसिद्ध पीठ है। ऐसा माना जाता है कि राम सनेही समुदाय के आदि आचार्य दरियावजी ने यहां "तपस्या" की थी। हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा को एक बड़ा मेला लगता है।
  • कुड़की-कुड़की पाली जिले की जैतारण तहसील का एक छोटा सा गाँव है । यह लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध राजकुमारी और कवयित्री मीरा बाई का जन्म स्थान है।
  • झोरड़ा - यह नागौर के उत्तर में लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। यह महान संत बाबा हरिराम और कवि कंदन कल्पित का जन्म स्थान है। हर साल भाद्रपद चतुर्थी और पंचमी के महीने में यहां एक बड़ा वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है जिसमें लगभग 1-2 लाख लोग भाग लेते हैं, जो राजस्थान, यूपी, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब से आते हैं।
  • सोन नगर - यह जिले की उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित है और विदेशी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा जगह है जो यहां की रेगिस्तानी जीवन शैली का आनंद ले सकते हैं। गाँव में एक छोटा सा संग्रहालय है जहाँ राजस्थानी जीवन शैली के सामान एकत्र और प्रदर्शित किए जाते हैं। (यह गांव अपनी कलात्मक "काठी" - ऊंटों और घोड़ों के लिए के लिए भी प्रसिद्ध है।)
  • गोगोलाव - इस गांव की स्थापना लोक देवता गोगाजी के नाम से हुई थी और माना जाता है कि गोगाजी की बारात-विवाह पार्टी यहीं रुकी थी। गाँव के निवासी मुख्य रूप से ओसवाल महाजन हैं और उनसे संबंधित सुंदर और बड़ी हवेलियाँ हैं। अधिकांश प्रमुख ओसवाल महाजन परिवार यहां से कोलकाता, चेन्नई और भारत के अन्य बड़े शहरों में चले गए हैं और इनमें से कुछ परिवार व्यापारिक उद्देश्यों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, दुबई, जर्मनी और ईरान में बस गए हैं।
  • मेड़ता सिटी -जोधपुर के संस्थापक राव जौधा के पुत्र राव दूदा ने यहॉ राज कायम कर शासन किया,राव दूदा के पुत्र राव रतन सिंह का ससुराल कुड़की था, पत्नी का नाम वीर कॅवर था,वीर कॅवर का प्रथम प्रसव अपने पीहर कुड़की गॉव(तहसील जैतारण जिला पाली) के गढ में मींरा बाई का जन्म हुआ था । मींरा बाई का बचपन मेंड़ता व अपने ननीहाल कुड़की में बीता था। मेड़ता में मींरा बाई का व कृष्ण भगवान का मन्दिर है। देश भर के लोग यहॉ दर्शन करने के लिए आते रहते हैं। मींरा का सुसराल गढ चित्तोड़ में उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ मीराबाई का विवाह हो गया। परन्तु मीराबाई के जीवन में खुशियाँ ज्यादा दिनों तक न रह पाई और कुछ ही वर्षों के बाद भोजराज की मुगलों के साथ युद्ध में मृत्यु हो गई। भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई विधवा हो गई। खानवा के युद्ध में लड़ते हुए इनके पिता रतनसिंह भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। पिता और पति की मृत्यु के कुछ समय पश्चात् ही राणा सांगा की भी हत्या हो गई। मीराबाई ने सतीप्रथा व पर्दाप्रथा का विरोध किया। मीरा के गुरु रैदास थे। मीराबाई बचपन से ही श्रीकृष्ण के प्रति अत्यन्त प्रेम रखती थी। पिता, पति और ससुर की मृत्यु के बाद मीराबाई अपना अधिक समय श्रीकृष्ण की भक्ति में गुजारने लगी। मीराबाई लोक लज्जा को त्याग कर भजनों पर नाचने और गाने लगी। मीराबाई का इस प्रकार नाचना गाना राजवंश परिवार वालों को अच्छा नहीं लगा इसलिए, उन्होंने बहुत बार मीराबाई को जहर देकर मारने का भी प्रयत्न किया। जहर भी पीया,माया काया तो अलग थी। परिवार वालों के व्यवहार से मीराबाई परेशान हो गई और वो वृंदावन चली गई।

बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990