नाटी एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के प्रांतीय संस्कृति से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। नाटी नृत्य ऐतिहासिक रूप से कुल्लू, शिमला, सिरमौर, चम्बा, किन्नौर, उत्तरकाशी, देहरादून (जौनसार-बावर) और टिहरी गढ़वाल जिलों में काफ़ी प्रचलित है। यह नृत्य यहाँ के स्थानीय संस्कृति को दर्शाता है। इसका प्रदर्शन मुख्य रूप से यहाँ के प्रमुख त्योहारों और उत्सवों के दौरान किया जाता है। इसकी शैली काफ़ी हद तक श्री कृष्ण और गोपियों के द्वारा किए जाने वाले रासलीला के समान है। आरम्भ में नाटी शब्द का प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप की पश्चिमी और मध्य पहाड़ियों में गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीतों के लिए किया जाता था पर धीरे-धीरे इन लोक गीतों के साथ-साथ लोक नृत्य भी जुड़ता चला गया। वर्तमान समय में मैदानी इलाकों में जातीय पहाड़ी लोगों के उच्च आप्रवासन के कारण यह नृत्य मैदानी इलाकों में भी लोकप्रिय बन गया है। परम्परागत रूप से ढोल-ढमाऊ नामक वाद्ययंत्र के ताल पर इस नृत्य को प्रस्तुत किया जाता है। इस पहाड़ी नृत्य को गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की पुस्तक में सबसे बड़े लोक नृत्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।[1][2][3][4][5][6]

किन्नौर जिला में नाटी नृत्य

बहुरूपता संपादित करें

 
सिरमौरी नाटी

नाटी नृत्य के कई रूप प्रचलित हैं, जैसे- कुल्लवी नाटी, महासुवी नाटी, सिरमौरी नाटी, किन्नौरी नाटी, जौनपुरी नाटी, सेराजी नाटी, करसोगी नाटी, चुहारी नाटी, बरदा नाटी, बंगाणी नाटी

गढ़वाली में नाटी को कभी-कभी तांदी भी कहा जाता है, विशेषकर टिहरी गढ़वाल में। लाहौल और स्पीति जिले के लोगों के बीच नाटी का एक अलग ही रूप प्रचलित है, जिसे "गार्फी" कहा जाता है। इसके नाटी से बहुत अधिक भिन्न होने का कारण यह है कि नाटी कभी भी लाहौली संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा है। इसी प्रकार किन्नौर में प्रचलित नाटी नृत्य बहुत हद तक मूक अभिनय के समान है, जिसमें कई सुस्त अनुक्रम शामिल होते हैं। नाटी के विभिन्न रूपों में सबसे प्रमुख है लोसर शोन चुकसोम जिसे गढ़वाल में नववर्ष के समय प्रस्तुत किया जाता है, यह नववर्ष फसल बोने और काटने के समय में इस क्षेत्र में मनाया जाता है।[6][7]

वेशभूषा संपादित करें

नाटी नृत्य के दौरान नर्तक और नर्तकियों को समृद्ध और रंगीन वेशभूषा में सुंदर ढंग से तैयार किया जाता है जो प्रदर्शन की जीवंतता को और भी अधिक बढ़ा देता है। नृत्य के लिए पुरुष आमतौर पर चूड़ीदार के साथ ऊनी वस्त्र पहनते हैं और महिलाएँ नर के समान लंबे वस्त्र पहनती हैं। इसके साथ ही पुरुष सिर पर हिमाचली टोपी पहनते हैं, जिस पर फूल लगे होते हैं, जबकि महिलाएँ अपने सिर को स्कार्फ से ढकती हैं। साथ ही महिलाएँ कई पारम्परिक आभूषणों को भी पहनती हैं।[1][6]

रिकॉर्ड्स संपादित करें

नाटी नृत्य के नाम पर कई रिकॉर्ड्स भी शामिल हैं। जैसे जनवरी 2016 के दूसरे सप्ताह में नाटी नृत्य को दुनिया के सबसे बड़े लोक नृत्य के रूप में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की पुस्तक में सूचीबद्ध किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रतिभागियों की संख्या के मामले में भी नाटी को सबसे बड़े लोक नृत्य के रूप में जाना जाता है। 26 अक्टूबर 2015 को अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान लगभग 9892 महिलाओं ने इस लोक नृत्य में भाग लिया था, इस उत्सव के दौरान महिलाओं ने एक पारंपरिक रंगीन पोशाक कुल्लवी पहन रखी थी।[8][9]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Naati Dance". IndiaNetzone.com. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  2. "नाटी नृत्य". नाटी नृत्य. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  3. "हिमाचल प्रदेश के प्रमुख लोक नृत्य(नाटी, डांगी, कयांग माला, राक्षस नृत्य) | Traditional folk dances of Himachal Pradesh in Hindi". Gk Timer (अंग्रेज़ी में). 4 सितम्बर 2021. मूल से 29 जून 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  4. Bell, Reading (19 अक्टूबर 2020). "हिमाचल के लोक नृत्य (Folk Dances of Himachal Pradesh)". Reading Bell. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  5. "नाटी (हिमाचल प्रदेश का लोक नृत्य)". भारतीय संस्कृति. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  6. "Nati Dance Aromatic Folk Dance Of Himachal Pradesh". 8 दिसम्बर 2021. अभिगमन तिथि 29 जून 2023.
  7. "Himachal Pradesh Dances - Folk Dances of Himachal Pradesh, Traditional Dance Himachal Pradesh India". Bharatonline.com. अभिगमन तिथि 2017-01-02.
  8. कुल्लू का नाटी लोक नृत्य गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल
  9. "kullu nati get guinees world record certificate". द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. अभिगमन तिथि 3 February 2016.