पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है[1] जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात पांडवकथा, यानी महाभारत की कथा। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार धुमन्तू जाति है। इन दोनों जातियों की बोली, वाद्यों में अन्तर है। परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में "किंकनी" होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू होता है। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया। तीजन बाई ने पंडवानी को आज के संदर्भ में ख्याति दिलाई, न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में।

तीजनबाई भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान

गायकों के प्रकार

संपादित करें

गोंड जनजाति के लोग पूरे छत्तीसगढ़ में फैले हैं।

देवार जाति

ऐसा भी कहते हैं कि देवार जाति, गोंड बैगा भूमिया जातियों से बनी है। देवता के पुजारी को भी बैगा कहा जाता है। वैसे बैगा भी एक जाति ही होती है। ये बैगा झाड़ फूँक में माहिर होते हैं तथा जड़ी बूटियों के बारे में उनका ज्ञान गहरा होता है। मण्डला क्षेत्र में जो ग्राम पुजारी होते हैं, वे अपने आपको बैगा नहीं कहते हैं। वे अपने आप को देवार कहते हैं। देवार गायक भी पंडवानी रामायणी महाकाव्य गाते हैं। देवार लोगों ने कैसे घुमन्तु जीवन अपना लिया, इसके बारे में अलग अलग मत है।

परधान जाति

परधान जाति के गायक अपने यजमानों के घर में जाकर पंडवानी सुनाते थे। इसी प्रकार पंडवानी शनैः शनैः छत्तीसगढ़ के लोगों के दिलों में बसती चली गई। परधान गायक हमेशा गोंड राजाओं की स्तुतियां और वीरगाथाएं ही गाया करते थे। उनके गीतों के माध्यम से गोंडों के अतीत जीवित रही है। कुछ लोग परधान को गोंडों के कवि कहते हैं। उनके गोंडवानी और करम सैनी गोंड जनजाति के अतीत के बारे में है जिसमें इतिहास एवं मिथकों की झलके हैं।

परधान जाति की पण्डवानी महाभारत पर आधारित होने के साथ-साथ गोंड मिथकों का मिश्रण है। जहां महाभारत का नायक अर्जुन है, वहीं पण्डवानी का नायक भीम है। भीम ही पाण्डवों की सभी विपत्तियों से रक्षा करता है। पण्डवानी में कुन्ती को माता कोतमा कहा गया है और गान्धारी को गन्धारिन। गन्धारिन के इक्कीस बेटे बताए गए हैं। पण्डवानी में जिस क्षेत्र को दिखाया गया है, वह छत्तीसगढ़ ही है। पाण्डव जहाँ रहते थे उसे जैतनगरी कहा गया है। कौरवों के निवास स्थान को हसना नगरी कहा गया है। पण्डवानी में पाण्डव तथा कौरव - दोनों पशुपालक है। पाण्डव और कौरव पशुओं को लेकर चराने जाते थे। पशुओं में गाय, बकरियाँ और हाथी थे। कौरव हमेशा अर्जुन को तंग किया करते थे और भीम ही थे जो कौरवों को सबक सिखाते थे।

पण्डवानी में कौरवों ने एक बार भीम को भोजन के साथ विष खिलाकर समुद्र में डुबा दिया। भीम जब पाताल लोक में पहुँचता है, सनजोगना उसे अमृत खिलाकर पुनर्जीवित करती है। सनजोगना नाग कन्या थी, जो पाताल लोक में भीम और सनजोगना का विवाह होता है। कुछ दिन के बाद भीम छटपटाने लगता है, अपनी माँ और भाईयों को देखना चाहता है, तब सनजोगना भीम को पाताल लोक से समुद्र तट पर ले आती है। भीम अपनी माता कोतमा और चार भाईयों के पास पहुँचकर बहुत खुश हो जाता है। जब कौरवों ने लख महल में पाण्डवो को मारना चाहा, तब भीम पाताल लोक तक एक पथ का निर्माण करता है और सबकी सुरक्षा करता है। इस घटना के बाद भीम अपनी माँ और भाईयों को लेकर बैराट नगर पहुँचता है। विराट नगर (पंडवानी में बैराट नगर) के राजा का नाम संग्राम सिंह है। उसी विराट नगर में कीचक का भीम वध करता है। पण्डवानी में महाभारत के युद्ध को महाधान की लड़ाई बताया गया है। इस युद्ध के संदर्भ में द्रौपदी की सोच बहुत ही अलग दिखाई गई है।

पंडवानी करने के लिए किसी त्यौहार या पर्व की जरुरत नहीं होती है। कभी भी कहीं भी पंडवानी आयोजित कर सकते हैं। कभी-कभी कई रातों तक पंडवानी लगातार चलती रहती है। वर्तमान में पंडवानी गायिका गायक तंबूरे को हाथ में लेकर मंच पर घूमते हुए कहानी प्रस्तुत करते हैं। तंबूरे कभी भीम की गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। संगत के कलाकार पीछे अर्ध चन्द्राकर में बैठते हैं। उनमें से एक "रागी" है, जो हुंकार भरते जाता है और साथ-साथ गाता है और रोचक प्रश्नों के द्वारा कथा को आगे बढ़ाने में मदद करता है।

पंडवानी की दो शैलियाँ हैं - कापालिक और वेदमती

कापालिक शैली जो गायक गायिका के स्मृति में या "कपाल"में विद्यमान है। कापालिक शैली की विख्यात गायिक है तीजनबाई, शांतिबाई चेलकने, उषा बाई बारले।

वेदमती शैली जिसका आधार है शास्र, कापालिक शैली है वाचक परम्परा पर आधारित और वेदमती शैली का आधार है खड़ी भाषा में सबलसिंह चौहान के महाभारत, जो पद्यरुप में हैं। वेदमती शैली के गायक गायिक वीरासन पर बैठकर पंडवानी गायन करते है। श्री झाडूराम देवांगन, जिसके बारे में निरंजन महावर का वक्तव्य है "महाभारत के शांति पर्व को प्रस्तुत करनेवाले निसंदेह वे सर्वश्रेष्ठ कलाकार है।" एवं पुनाराम निषाद तथा पंचूराम रेवाराम पुरुष कलाकारों में है जो वेदमती शैली के अपनाये है। महिला कलाकारों में है लक्ष्मी बाई एवं अन्य कलाकर।

 
तीजनबाई भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान

स्थानीय पारंगत बताते हैं कि वास्तव में सबलसिंह चौहान ग्रन्थ पर आधारित शैली को पंडवानी न कहकर महाभारत की एक शैली कहा जाना चाहिए चूँकि पंडवानी का छत्तीसगढ़ में प्रचार प्रसार ब्राह्मणेत्तर परधान एवं देवार गायकों के पूर्व में ही स्थापित कर दिया था, इसलिये बाद में विकसित हुई वेदमती शैली के ब्राह्मणेत्तर जाति के कलाकारों ने उसी रुढ़ नाम को अपनी शैली के लिये अपना लिया। उसके कारण वे ब्राह्मण एवं अन्य द्विज जाति के लोगों के इस आरोप से भी बचे रहे कि वे अनधिकृत रूप से महाभारत का प्रवचन करते हैं और दूसरी ओर इन्हें पंडवानी नाम की लोकप्रियता का भी लाभ प्राप्त हुआ।

पंडवानी गायक गायिकाएं

संपादित करें

इनकी लम्बी सूची है - जैसे तीजनबाई, ॠतु वर्मा, खुबलाल यादव, रामाधार सिन्हा, फूल सिंह कन्नौजे, लक्ष्मी साहू, प्रभा यादव, सोमे शास्री, पुनिया बाई, जेना बाई, उषा बारले[2]

  1. "pandvani". IGNCA. अभिगमन तिथि 28 March 2024.
  2. कुमार, मुनेश्वर (22 June 2023). "Pandwani Singer Usha Barle: पंडवानी गायिका पद्मश्री उषा बारले कौन? जिनके घर गृह पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह". Navbharat Times. अभिगमन तिथि 28 March 2024.