पाली जिला

राजस्थान
(पाली ज़िला से अनुप्रेषित)
सिरोही ज़िला
मानचित्र जिसमें सिरोही ज़िला हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : पाली, राजस्थान
क्षेत्रफल : 12,387 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
20,38,533
 165/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: 10 (जैतारण, रायपुर, सोजत, मारवाड़ जंक्शन, रोहट, पाली, रानी, देसूरी, सुमेरपुर, बाली)
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी, राजस्थानी, मारवाड़ी


पाली ज़िला भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय पाली है।[1][2] ज़िले की पूर्वी सीमाएं अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़ी हैं। इसी सीमाएं उत्तर में नागौर और पश्चिम में जालौर से मिलती हैं। पाली शहर पालीवाल ब्राह्मणों का निवास स्थान था जब मुगलों ने कत्लेआम मचा दिया तो उन्हें यह शहर छोड़ कर जाना पड़ा। वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म पाली के पास कुम्भलगढ़ किले में हुआ था। यह नगर तीन बार उजड़ा और बसा। यहां के प्रसिद्ध जैन मंदिर भक्तों के साथ-साथ इतिहासवेत्ताओं को भी आकर्षित करते हैं। [3] [4]

भूवैज्ञानिकों और पुरातत्ववेत्ताओं ने पाली और आसपास के क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल में आदिमानव के में बसने का पता लगा लिया है और उनकी यह स्थापना है कि पाली और इसके आसपास का इलाका भी एक समय विशाल पश्चिमी समुद्र से निकला था। प्राचीन ‘अर्बुदा’ प्रांत के एक भाग के रूप में, इस क्षेत्र को कभी ‘बल्ल’-देश के नाम से भी जाना जाता था शायद इसलिए कि वैदिक युग में, महर्षि जाबाली वेदों की व्याख्या और अवगाहन के लिए इसी पाली क्षेत्र में रहे थे । कहते हैं- महाभारत युग में, पांडव भी अज्ञातवास (गोपनीय वनवास) के दौरान कुछ समय यहाँ की एक तहसील बाली के पास छिपे थे ।


लिखा मिलता है सन 120 ईस्वी में, कुषाण युग के दौरान, राजा कनिष्क ने रोहट और जैतारण क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी, जो आज पाली के भाग हैं । सातवीं शताब्दी ईस्वी के अंत तक वर्तमान राजस्थान राज्य के अन्य हिस्सों सहित पाली पर भी चालुक्य राजा हर्षवर्धन के साथ का शासन था।10 वीं से 15 वीं शताब्दी की अवधि के दौरान, पाली की सीमाएं मेवाड़, गोडवाड़ और मारवाड़ से मिली  हुई थीं। नाडोल क़स्बा  चौहान-वंश की राजधानी थी। सभी राजपूत शासकों ने समय समय पर होने वाले विदेशी आक्रमणकारियों का विरोध किया लेकिन व्यक्तिगत रूप से वे एक-दूसरे की भूमि के लिए भी आपस में लड़े। पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद, मोहम्मद गौरी के खिलाफ, इस क्षेत्र में राजपूत सत्ता छिन्न-भिन्न हो गई। पाली का गोडवाड़ क्षेत्र, मेवाड़ के तत्कालीन यशस्वी शासक महाराणा कुंभा के अधीन हो गया; हालाँकि पाली शहर- जिस पर पालीवाल ब्राह्मण शासकों का शासन था, अन्य पड़ोसी राजपूत शासकों के संरक्षण के कारण शांतिपूर्ण और प्रगतिशील बना रहा। पालीवाल ब्राह्मणों की आबादी अधिक होने से इसे उनका  जातिसूचक नाम –पाली मिला !


16 वीं और 17 वीं शताब्दी में पाली के आसपास के क्षेत्रों में कई युद्ध लड़े गये । अगर शेरशाह सूरी को राजपूत शासकों द्वारा जैतारण के पास गिरि की लड़ाई में हराया गया, तो मुगल सम्राट अकबर की सेना का गोडवाड़ क्षेत्र में महाराणा प्रताप के साथ युद्ध हुआ । मुगलों द्वारा लगभग पूरे राजपूताना पर विजय प्राप्त करने के बाद, मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ ने मुगल सम्राट औरंगजेब से मारवाड़ क्षेत्र को छुड़ाने के लिए संगठित प्रयास किए क्यों कि तब तक पाली मारवाड़ राज्य के राठौड़-वंश के अधीन हो गया था  । पाली का पुनर्वास महाराजा विजयसिंह द्वारा किया गया और जल्द ही एक बार फिर यह एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र बन गया।

ब्रिटिश शासन में पाली

आउवा मारवाड़-जंक्शन के दक्षिण में 12 किमी की दूरी पर स्थित एक क़स्बा है । तब आउवा जोधपुर राज्य के सोजत जिले का एक हिस्सा था। 1857 में भारत में ब्रिटिश काल के दौरान, आउवा के ठाकुर के नेतृत्व में पाली के विभिन्न ठाकुरों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र लड़ाई लड़ी थी । यह स्थान आज भले ही महत्वहीन हो लेकिन इसे 1857 की उथल-पुथल के दौरान बहुत प्रसिद्धि मिली जब इसके जागीरदार ठाकुर कुशलसिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। बागवत की शुरुआत 25 अगस्त 1857 को एरनपुरा छावनी के भारतीय सिपाहियों द्वारा की गयी । सेना के ये सैनिक गांव अपनी छावनी छोड़ कर अपने हथियारों के साथ आउवा पहुंचे। स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए ठाकुर खुशाल सिंह ने उनका नेतृत्व किया। आउवा किला ब्रिटिश सेना ने घेरा हुआ था और यह खूनी संघर्ष कई दिनों तक चला था। इस आंदोलन में मारवाड़ राज्य के ठाकुरों में अशोप, गुलर अलनियावास, भीमलिया, रेड़ावास, लाम्बिया और मेवाड़ राज्य के दूसरे ठाकुरों रूपनगर, लासानी, सलूम्बर, आसींद ने भी ठाकुर खुशाल सिंह की सैनिक मदद की थी ।


अजमेर से जनरल हेनरी लारेंज़ के आदेश से, 7 सितंबर 1857 को किलेदार अनदसिंह जोधपुर, ने आउवा किले  पर आक्रमण किया । 8 सितंबर 1857 को लेफ्टिनेंट हेचकेट भी अनदसिंह के साथ युद्ध में शामिल हो गए। युद्ध के दौरान अधिकांश अंग्रेज सैनिक मौत के घाट उतार दिए गए और आउवा की सेना ने 1857 में स्वतंत्रता की अपनी पहली लड़ाई जीती । इस हार के बाद भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को सबक सिखाने के लिए जनरल लारेन्ज स्वयं ब्यावर से सेना लेकर 18 सितंबर 1857 को आउवा पहुंचा। जनरल लारेंज़ की मदद के लिए, जोधपुर से राजनीतिक-एजेंट कैप्टन मेसन भी अपनी बड़ी सेना के साथ आउवा आ पहुँचा। इस लड़ाई में कैप्टन मेसन मारा गया | उसका सिर काट कर आउवा किले के मुख्य द्वार पर लटका दिया । इस प्रकार अंग्रेजों से दूसरी लड़ाई में भी आउवा के स्वतंत्रता सेनानियों की जीत हुई ।

पाली के समीप ओम बन्ना का स्थान है जो एक आम भारतीय ड्राइवर के विश्वास का प्रतीक है।[5].[6]


इन्हें भी देखें

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  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Pali Online News (पाली समाचार)". मूल से 28 नवंबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-01-30.
  3. http://www.theweekendleader.com/Causes/1289/ready-for-challenge.html
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 फ़रवरी 2015.
  5. http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/11/141122_bullet_temple_rajasthan_rns
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 फ़रवरी 2015.