डॉ प्रभाकर माचवे (1917 - 1991) हिन्दी के साहित्यकार थे। साहित्य अकादमी की स्थापना से लेकर सत्तर के दशक तक प्रभाकर माचवे इसके उपसचिव और सचिव के रूप में इससे संबद्ध रहे। साहित्य अकादमी की अनेक कार्ययोजनाओं को मूर्त रूप देने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। माचवे जी ने अपने बहुविध एवं सक्रिय व्यक्तित्व से भारतीय भाषाओं के अनेक रचनाकारों को साहित्य सृजन के लिए प्रेरित किया था। वह बहुभाषाविद् थे। भारत की बहुत सी भाषाएँ समझ और बोल लेते थे। अपने इस भाषाज्ञान का उपयोग उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किया।

जीवनवृत्त

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प्रभाकर माचवे का जन्म ग्वालियर में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा इंदौर में हुई। दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर के बाद उन्होंने ‘हिंदी-मराठी निर्गुण संत काव्य’ विषय पर आगरा विश्वविद्यालय से शोध पूरा किया। देश-विदेश में प्राध्यापन के साथ ही वह संघ लोक सेवा आयोग में विशेष भाषाधिकारी और साहित्य अकादमी के सचिव के रूप में कार्यरत रहे। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में मानद फेलो और भारतीय भाषा परिषद्, कलकत्ता में निदेशक रहे। बाद में ‘चौथा संसार’ (इंदौर) के संस्थापक संपादक बने।

विद्यार्थी जीवन से ही वे कविताएँ लिखने लगे थे। उनकी पहली कविता 1934 में माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ में छपी। 1935 में मुंशी प्रेमचंद ने ‘हंस’ में उनकी पहली कहानी प्रकाशित की। इसी तरह निराला द्वारा 1936 में ‘सुधा’ में उनका पहला लेख छापा। 1937 में उन्होंने जैनेन्द्र के दार्शनिक विचारों वाले निबंधों का संपादन किया जो ‘जैनेंद्र के विचार’ नाम से प्रकाशित हुआ। 1938 में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने ‘विशाल भारत’ में उनकी दो कविताएँ छापीं।

प्रभाकर माचवे द्वारा लिखित, अनूदित, संपादित पुस्तकों की संख्या सवा सौ से अधिक है। ‘स्वप्न भंग’, ‘अनुक्षण’ और ‘विश्वकर्मा’ उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी में समान अधिकार से लिखा है। वह बहुभाषाविद् थे। भारत की बहुत सी भाषाएँ समझ और बोल लेते थे। अपने इस भाषाज्ञान का उपयोग उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किया। चित्रकला में भी उनकी रुचि थी और उन्होंने इसकी शिक्षा ली थी। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इनके कविता-संग्रह हैं : 'स्वप्न भंग, 'अनुक्षण, 'तेल की पकौडियां तथा 'विश्वकर्मा आदि। इन्होंने उपन्यास, निबंध, समालोचना, अनुवाद आदि मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी में 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

इन्हें 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सम्मान प्राप्त हुआ है। इन्हें सन् १९८९ में सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार भी प्रदान किया गया।