खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। विस्तार से पढ़ें…
कृष्ण विवर या ब्लैक होल, सामान्य सापेक्षता(जनरल रिलेटिविटि) में, इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र वाली कोई ऐसी खगोलीय वस्तु है, जिसके खिंचाव से प्रकाश-सहित कुछ भी नहीं बच सकता। कृष्ण विवर के चारों ओर घटना क्षितिज नामक एक सीमा होती है जिसमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर नहीं आ सकती। इसे "काला" (कृष्ण) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता। यह ऊष्मागतिकी में ठीक एक आदर्श कृष्णिका की तरह है। कृष्ण विवर का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। मसलन ब्लैक होल का पता तारों के किसी समूह की गति से लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से की परिक्रमा कर रहे हों। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे द्वारा आप अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस गिराते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, उनके स्वयं न दिखने के बावजूद, हमारे ब्रह्मांड में कृष्ण विवर अस्तित्व रखते है। इन्हीं विधियों से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग, के केन्द्र में स्थित धनु ए* नामक रेडियो स्रोत में एक विशालकाय कालाछिद्र स्थित है जिसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान से 43 लाख गुना है। अधिक पढ़ें…
ऍडविन पावल हबल (अंग्रेज़ी: Edwin Powell Hubble, जन्म: २० नवम्बर १८८९, देहांत: २८ सितम्बर १९५३) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे जिन्होनें हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा या मिल्की वे) के अलावा अन्य गैलेक्सियाँ खोज कर हमेशा के लिए मानवजाती की ब्रह्माण्ड के बारे में अवधारणा बदल डाली। उन्होंने यह भी खोज निकाला के कोई गैलेक्सी पृथ्वी से जितनी दूर होती है उस से आने वाले प्रकाश का डॉप्लर प्रभाव उतना ही अधिक होता है, यानि उसमे लालिमा अधिक प्रतीत होती है। इस सच्चाई का नाम "हबल सिद्धांत" रखा गया और इसका सीधा अर्थ यह निकला के हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर बढ़ती हुई गति से फैल रहा है। अधिक पढ़ें…
... कि किसी सफ़ेद बौने(चित्रित) तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने पर होने वाले अनियंत्रित नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) विस्फ़ोट को नोवा केहते हैं?
... गुरू और शनि ग्रहों के चन्द्रमा की तस्वीरें भेजने वाला पहला शोध यान वॉयेजर प्रथम अंतरिक्ष यान पृथ्वी और सूर्य दोनों से दूर अनंत अंतरिक्ष में अभी भी गतिशील है।
... वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोपभारत के पुणे शहर से 80 किलोमीटर उत्तर में खोडाड नामक स्थान पर स्थित रेडियो दूरबीनों की विश्व की सबसे विशाल सारणी है।