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खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। विस्तार से पढ़ें…

चयनित लेख

एंड्रोमेडा आकाशगंगा या‌ देवयानी आकाशगंगा (अंग्रेज़ी: Andromeda, उच्चारित/ænˈdrɒmədə/) एंड्रोमेडा तारामंडल (देवयानी तारामंडल) में स्थित, पृथ्वी से 2,500,000 प्रकाश वर्ष (1.6×1011 खगोलीय इकाई) दूर मौजूद एक महान तारापुंज है, जो साफ आसमान में नग्न आंखों से देखा जा सकता है। यह मैसीयर ३१, एम३१ या एनजीसी २२४ कहलाता है और अक्सर ग्रंथों में इसका संदर्भ महान एंड्रोमेडा निहारिका के रूप में दिया जाता है। एंड्रोमेडा सर्पिलाकार तारा पुंज, हमारी सबसे निकटतम आकाशगंगा है लेकिन औसत सिरों की दूरी को कुल मिलाकर यह सबसे निकटतम नहीं है। इसे अमावस की रात को धब्बे के रूप में देखा जा सकता है और दूरबीन से शहरी क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। इसके नाम को उस आकाश क्षेत्र से लिया गया है जहां यह प्रकट होता है, एंड्रोमेडा तारामंडल (जिसे हिन्दी में देवयानी तारामंडल कहते हैं) और जिसका नाम पौराणिक राजकुमारी एंड्रोमेडा के नाम पर रखा गया है। एंड्रोमेडा स्थानीय समूह का सबसे बड़ा तारापुंज है जिसमें एंड्रोमेंडा आकाशगंगा, मिल्की वे आकाशगंगा, ट्रियांगुलम आकाशगंगा और ३० अन्य छोटी आकाशगंगाऐं शामिल हैं। हालांकि, इनमें सबसे बड़ा, एंड्रोमेडा, बहुत विशालकाय नहीं है, क्योंकि हाल ही खोजों से पता चला है कि आकाशगंगा में बहुत से ऐसे मामले हैं जिनके उससे भी विशालकाय स्वरूप हो सकते हैं। स्पित्ज़र स्पेस टेलीस्कोप द्वारा २००६ में देखने पर यह पता लगा है कि M३१ में करोड़ों (१०१२) तारे शामिल हैं जिनकी संख्या हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे, जिनकी संख्या लगभग c. २००-४०० अरब है, से कहीं अधिक है। अधिक पढ़ें…


चयनित जीवनी

विक्रम अंबालाल साराभाई (१२ अगस्त, १९१९- ३० दिसंबर, १९७१) भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने ८६ वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं ४० संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन १९६६ में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया। अधिक पढ़ें…


क्या आप जानते हैं?
नोवा का निर्माण
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चयनित चित्र
Jantarmantar jayprakash yantra part1
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जंतर मंतर, जयपुर के जयप्रकाश यंत्र की विवरणात्मक तस्वीर। जंतर मंतर, जयपुर स्थित एक मध्यकालीन खगोलीय वेषशाला है, जो अब एक यूनेस्को विश्व धरोहर है
सम्बंधित लेख व श्रेणियाँ
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