प्रवेशद्वार:खगोलशास्त्र/चयनित लेख/5
कृष्ण विवर या ब्लैक होल, सामान्य सापेक्षता (जनरल रिलेटिविटि) में, इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र वाली कोई ऐसी खगोलीय वस्तु है, जिसके खिंचाव से प्रकाश-सहित कुछ भी नहीं बच सकता। कृष्ण विवर के चारों ओर घटना क्षितिज नामक एक सीमा होती है जिसमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर नहीं आ सकती। इसे "काला" (कृष्ण) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता। यह ऊष्मागतिकी में ठीक एक आदर्श कृष्णिका की तरह है। कृष्ण विवर का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। मसलन ब्लैक होल का पता तारों के किसी समूह की गति से लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से की परिक्रमा कर रहे हों। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे द्वारा आप अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस गिराते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, उनके स्वयं न दिखने के बावजूद, हमारे ब्रह्मांड में कृष्ण विवर अस्तित्व रखते है। इन्हीं विधियों से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग, के केन्द्र में स्थित धनु ए* नामक रेडियो स्रोत में एक विशालकाय कालाछिद्र स्थित है जिसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान से 43 लाख गुना है। अधिक पढ़ें…