प्रेमसागर
लल्लू लाल की यह कृति खड़ी बोली गद्य की आरंभिक कृतियों में से एक है। शुक्ल जी इसकी भाषा को पूर्वीपन से युक्त मानते हैं। इसमें भागवत के दशम स्कन्ध की कथा ९० अध्यायों में वर्णित है।
अध्याय
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इतिहास
संपादित करेंसन 1567 ई, में चतर्भुज मिश्र ने ब्रजभाषा में दोहा-चौपाई में भागवत के दशम स्कन्ध का अनुवाद किया था। उसी के आधार पर लल्लूलाल ने 1803 ई. में जॉन गिलक्राइस्ट की प्रेरणा से फोर्ट विलियम कॉलेज के विद्यार्थियों के शिक्षण के लिए 'प्रेमसागर' की रचना की। लल्लूलाल ने इस ग्रंथ को अपने संस्कृत यंत्रालय, कलकत्ता से सन् 1810 ई. में प्रकाशित किया। लल्लूलाल ने अपने प्रकाशित संस्करण की भूमिका में ग्रन्थ की भाषा के सम्बन्ध में लिखा है-
- श्रीयत गुन-गाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सं. 1860 में श्री लल्लूलालजी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र-अवदीच आगरे वाले ने विसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़।
संस्करण
संपादित करें'प्रेमसागर' के प्रमुख संस्करण ये हैं -
- प्रेमसागर : सम्पादक तथा प्रकाशक लल्लूलाल, कलकत्ता 1810 ई.
- प्रेमसागर : कलकत्ता 1842 ई.
- प्रेमसागर : सम्पादक जगन्नाथ सुकुल, कलकत्ता 1867 ई.
- प्रेमसागर : कलकत्ता 1878 ई.
- प्रेमसागर : कलकत्ता 1889 ई.
- प्रेमसागर : कलकत्ता 1907 ई.
- प्रेमसागर : बनारस 1923 ई.
- प्रेमसागर : सम्पादक ब्रजरत्नदास, काशी नागरी प्रचारिणी सभा, 1922 ई. और 'प्रेमसागर : द्वितीय प्रकाशन, 1923 ई.
- प्रेमसागर : सम्पादक कालिकाप्रसाद दीक्षित, प्रयाग 1832 ई.
- प्रेमसागर : सम्पादक बैजनाथ केडिया, कलकत्ता, 1924 ई.
- प्रेमसागर : अंग्रेज़ी में अनूदित अदालत खाँ, कलकत्ता, 1892 ई.
- प्रेमसागर : अनूदित, कैप्टन डब्ल्यू हौलिंग्स, कलकत्ता. 1848 ई.
- प्रेमसागर : सचित्र पंचम संस्करण, सन् 1957 ई. श्रीवेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई।
- अंग्रेज़ी में भी प्रेमसागर के छः संस्करण विभिन्न स्थानों में प्रकाशित हुए हैं।
सन्दर्भ
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करें- लल्लू लाल
- सुखसागर - लगभग उसी काल का एक अन्य खड़ी बोली का ग्रन्थ जो मुंशी सदासुखलाल द्वारा रचित है।