बटेश्वर आगरा जिले में स्थित एक गांव है,जोकि आगरा से 70 किलोमीटर पूर्व दिशा में बाह नामक स्थान है जो जिला आगरा की पूर्वी और आखिरी तहसील है।

बटेश्वर के मंदिर समूह ( पुनर्निर्माण के बाद लिया गया चित्र )
बटेश्वर
—  तहसील  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य उत्तर प्रदेश
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• 160 मीटर (525 फी॰)

निर्देशांक: 26°29′N 78°26′E / 26.49°N 78.43°E / 26.49; 78.43

बटेश्वर के मंदिर खण्डहरों का एक दृश्य

बाह से दस किलोमीटर उत्तर में यमुना नदी के किनारे बाबा भोले नाथ का प्रसिद्ध स्थान बटेश्वर धाम है। यहां पर हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से बहुत बड़ा मेला लगता है, और भगवान शिव के एक सौ एक मन्दिर यमुना नदी के किनारे पर यहां के तत्कालीन राजा महाराज भदावर ने बनवाये थे। बटेश्वर धाम के लिये एक कथा कही जाती है, कि राजा भदावर के और तत्कालीन राजा परमार के यहां उनकी रानियो ने गर्भ धारण किया, और दोनो राजा एक अच्छे मित्र थे, दोनो के बीच समझौता हुआ कि जिसके भी कन्या होगी, वह दूसरे के पुत्र से शादी करेगा, राजा परमार और राजा भदावर दोनो के ही कन्या पैदा हो गई, और राजा भदावर ने परमार को सूचित कर दिया कि उनके पुत्र पैदा हुआ है, उनकी झूठी बात का परमार राजा को पता नहीं था, वे अपनी कन्या को पालते रहे और राजा भदावर के पुत्र से अपनी कन्या का विवाह करने के लिये बाट जोहते रहे। जब राजा भदावर की कन्या को पता लगा कि उसके पिता ने झूठ बोलकर राजा परमार को उसकी लडकी से शादी का वचन दिया हुआ है, तो वह अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिये भगवान शिव की आराधना यहीं बटेश्वर नामक स्थान पर करने लगी। जब राजा परमार की खबरें राजा भदावर के पास आने लगीं कि अब शादी जल्दी की जाये, उधर राजा भदावर की कन्या अपने पिता की लाज रखने के लिये तपस्या करने लगी, और उसकी विनती न सुनी जाने के कारण उसने अपने पिता की लाज को बचाने हेतु यमुना नदी में आत्महत्या के लिये छलांग लगा दी। भगवान शिव की की गई आराधना का चम्त्कार हुआ, और वह कन्या पुरुष रूप में इसी स्थान पर उत्पन हुई, राजा भदावर ने उसी कारण से इस स्थान पर एक सौ एक मन्दिरों का निर्माण करवाया, जो आज बटेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पर यमुना नदी चार किलोमीटर तक उल्टी धारा के रूप में बही हैं।

अकबर के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो यहाँ के तत्कालीन शासक थे, अकबर से मिलने आए और उसे बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में यमुना को नहीं पार करना पड़ता, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था। घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल मालूम हुई, क्योंकि आगरे से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुँचा जा सकता था। राजा बदनसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झुठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वा कर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया और इसलिए की नगर को यमुना की धारा से हानि न पहुँचे, एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवाया।

बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें बनारस की भाँति बीच-बीच में रिक्त नहीं दिखलाई पड़ता। बटेश्वर के घाटों पर स्थित मन्दिरों की संख्या 101 है। यमुना की धारा को मोड़ देने के कारण 19 मील का चक्कर पड़ गया है। भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में संस्कृत विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर भी बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। शौरीपुर के सिद्धि क्षेत्र की खुदाई में अनेक वैष्णव और जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ के वर्तमान शिव मन्दिर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। एक मन्दिर में स्वर्णाभूषणों से अलंकृत पार्वती की 6 फुट ऊँची मूर्ति है, जिसकी गणना भारत की सुन्दरतम मूर्तियों में की जाती है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें