बिंदराय मानकी

भारतीय क्रांतिकारी


बिंदराय मानकी एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने 1831-32 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ छोटानागपुर में कोल विद्रोह का नेतृत्व किया था।[1] उन्होंने 1831 मेंं सिंगराय मानकी और सुर्गा मुंडा के साथ मिलकर कोल आदिवासियों को मिलाकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी।[2][3]

बिंदराय मानकी
Bindrai Manki
-
जन्मस्थल : बंदगांव, सिंहभूम, ब्रिटिश भारत (अब झारखण्ड)
मृत्युस्थल: हजारीबाग जेल, ब्रिटिश भारत (अब झारखण्ड)
आन्दोलन: कोल विद्रोह (1831-32)
राष्ट्रीयता: भारतीय

बिंदराय का जन्म बंदगांव के ईचागुटू गांव में एक भूमिज जनजाति के मानकी परिवार में हुआ था। उनके बड़े भाई सिंगराय भूमिज बंदगांव में 12 गांवों के मानकी थे। उनकी दो बहनें भी थी।[4][5]

छोटानागपुर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के बाद से ही आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ने लगा। कंपनी ने पुराने जमींदारों (मानकी) को हटाकर नए गैर-आदिवासी जमींदारों को नियुक्त किया। इन्हीं मानकी-मुंडाओं में से दो भाई - सिंगराय और बिंदराय भी थे। इसके साथ ही छोटानागपुर में दिकुओं (बाहरी लोगों) खासकर सिख और मुसलमान लोगों का आगमन बढ़ने लगा। सिख और मुसलमान लोग आदिवासी गांवों में बस गए और आदिवासी किसानों तथा महिलाओं पर अत्याचार करने लगे।

छोटानागपुर के राजा के भाई हरिनाथ शाही ने बंदगांव के मानकी सिंदराय और बिंदराय की जमीन छीनकर एक सिखों और मुसलमानों को दे दिया। इसपर छोटानागपुर के राजा ने भी उनकी कोई सहायता नहीं की। सिखों ने उनके दो बहनों के साथ बलात्कार और बिंदराय की पत्नी का अपमान भी किया।[6] सिखों और मुसलमानों अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर कोल महिलाओं को अगवा कर लेते थे।[7] इन्हीं कारणों से नाराज़ सिंगराय मानकी, बिंदराय मानकी और सुर्गा मुंडा ने बंदगांव और रांची के सभी कोल (हो, भूमिज और मुण्डा) आदिवासियों को एकत्रित कर 11 दिसंबर 1831 को विद्रोह किया।[8] यह विद्रोह बाहरी लोगों के विरुद्ध हुआ; सिख, मुसलमान, हिन्दू और अंग्रेजकोल आदिवासियों ने सिखों और मुसलमानों के साथ साथ हिन्दूओं पर भी हमला किया, उनको मारकर उनके घरों को जला दिया गया। सोनपुर, बंदगांव, तमाड़, लंका और रांची में विद्रोह ने विध्वंसकारी रूप ले लिया।[9] बिंदराय ने 1832 में खरसावां के ठाकुर चैतन सिंह के विरुद्ध लड़ाई में भूमिज विद्रोह के नायक गंगा नारायण सिंह की भी सहायता की।[10]

19 मार्च 1832 को बिंदराय मानकी और सुर्गा मुंडा ने आत्मसमर्पण कर दिया।[11][12] 1832 में कैप्टन विल्किंसन के नेतृत्व में सेना की टुकडिय़ों ने इस विद्रोह को दबा दिया। 1832 में कोल विद्रोह और भूमिज विद्रोह ने ब्रिटिश कंपनी को हिला कर रख दिया था।

इन्हें भी देखें

संपादित करें
  1. "Bindrai Manki". INDIAN CULTURE (अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 2023-06-29.
  2. Mahto, Shailendra (2021-01-01). Jharkhand Mein Vidroh Ka Itihas: Bestseller Book by Shailendra Mahto: Jharkhand Mein Vidroh Ka Itihas. Prabhat Prakashan. ISBN 978-93-90366-63-7.
  3. बणणवाल, अदर्ण सनी. झारखंड का संपूणण आततहास (प्रागैततहातसक काल से वतणमान तक). Nitya Publications. ISBN 978-93-90390-59-5.
  4. Saha, Sheela; Saha, D. N. (2004). The Company Rule in India: Some Regional Aspects (अंग्रेज़ी भाषा में). Kalpaz Publications. ISBN 978-81-7835-251-0.
  5. Singh, C. P. (1978). The Ho Tribe of Singhbhum (अंग्रेज़ी भाषा में). Classical Publications.
  6. Ranendra (2014-04-30). Gayab Hota Desh (Hindi): (Hindi Edition). Penguin UK. ISBN 978-93-5118-748-6.
  7. Singh, C. P. (1978). The Ho Tribe of Singhbhum (अंग्रेज़ी भाषा में). Classical Publications.
  8. Jha, Jagdish Chandra (1964). The Kol Insurrection of Chota-Nagpur (अंग्रेज़ी भाषा में). Thacker, Spink.
  9. Singh, K. S. (1991). Ulagulāna, Birasā Muṇḍā aura unakā āndolana: saṅkshipta. Ekatā Prakāśana.
  10. टेटे, वंदना. झारखंड: एक अंतहीन समरगाथा. Pyara Kerketta Foundation.
  11. Datta, Kalikinkar (1970). Anti-British Plots and Movements Before 1857 (अंग्रेज़ी भाषा में). Meenakshi Prakashan. ISBN 978-0-8426-0169-6.
  12. Datta, Kalikinkar (1957). Unrest Against British Rule in Bihar, 1831-1859 (अंग्रेज़ी भाषा में). Superintendent, Secretariat Press.