भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्थापत्य की सूची
भारत में, राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, भारत में स्थित वे ऐतिहासिक, प्राचीन अथवा पुरातात्विक संरचनाएँ, स्थल या स्थान हैं, जोकि, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अधीन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से भारत की संघीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा संरक्षिक होते हैं। ऐसे स्मारकों को "राष्ट्रीय महत्व का स्मारक" होने के मापदंड, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा परिभाषित किये गए हैं।[1] ऐसे स्मारकों को इस अधिनियम के मापदंडों पर खरा उतरने पर, एक वैधिक प्रक्रिया के तहत पहले "राष्ट्रीय महत्व" का घोषित किया जाता है, और फिर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संसाक्षणाधीन कर दिया जाता है, ताकि उनकी ऐतिहासिक महत्वता के मद्देनज़र, उनकी उचित देखभाल की जा सके।
वर्त्तमान समय में, राष्ट्रीय महत्व के कुल 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष देश भर में विद्यमान हैं। ये स्मारक विभिन्न अवधियों से संबंधित है जो प्रागैतिहासिक अवधि से उपनिवेशी काल तक के हैं, जोकि विभिन्न भूगोलीय स्थितियों में स्थित हैं। इनमें मंदिर, मस्जिद, मकबरे, चर्च, कब्रिस्तान, किले, महल, सीढ़ीदार कुएं, शैलकृत गुफाएं, दीर्घकालिक वास्तुकला तथा साथ ही प्राचीन टीले तथा प्राचीन आवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थल शामिल हैं।[1]
इन स्मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं।
स्मारक की आधिकारिक परिभाषा
संपादित करेंप्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 ‘प्राचीन स्मारक’ को इस प्रकार परिभाषित करता है "प्राचीन स्मारक" से कोई संरचना, राचन या संस्मारक या कोई स्तूप या दफ़नगाह, या कोई गुफा, शैल-रूपकृति, उत्कीर्ण लेख या एकाश्मक जो ऐतिहासिक, पुरातत्वीय या कलात्मक रुचि का है और जो कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान है, अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत है:
- किसी प्राचीन संस्मारक के अवशेष।
- किसी प्राचीन संस्मारक का स्थल।
- किसी प्राचीन संस्मारक के स्थल से लगी हुई भूमि का ऐसा प्रभाग जो ऐसे संस्मारक को बाड़ से घेरने या आच्छादित करने या अन्यथा परिरक्षित करने के लिए अपेक्षित हो।
- किसी प्राचीन संस्मारक तक पहुँचने और उसके सुविधापूर्ण निरीक्षण के साधन;
धारा 2 (घ) पुरातत्वीय स्थल और अवशेष को इस प्रकार परिभाषित करती है:[1]
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संरक्षणाधीन करने की प्रक्रिया
संपादित करेंभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थलों तथा अवशेषों के संरक्षण के संबंध में आपत्तियाँ, यदि कोई हो, आमंत्रित करते हुए दो महीने का नोटिस देता है। दो माह की निर्दिष्ट अवधि के पश्चात् तथा इस संबंध में आपत्तियाँ यदि कोई प्राप्त होती है, की छानबीन करने के पश्चात् भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण किसी स्मारक को अपने संरक्षणाधीन लेने का निर्णय करता है।[1]
इन स्मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं। प्रमंडलीय कार्यालय इन स्मारकों के अनुसंधान तथा संरक्षण कार्यों को देखते हैं जबकि पुरातात्विक सर्वेक्षण की विज्ञान शाखा, जिसका मुख्यालय देहरादून में है, रासायनिक परिरक्षण करते हैं तथा सर्वेक्षण की उद्यान शाखा, जिसका मुख्यालय आगरा में है, को बगीचे लगाने तथा पर्यावरणीय विकास का कार्य सौंपा गया है।
स्मारकों की राज्यानुसार-वर्गीकृत सूची
संपादित करेंराष्ट्रीय महत्व के स्मारकों को भा॰पु॰स॰ घोषित करती है, परंतु रखरखाव-करता के आधार पर इन्हें दो श्रेणियों में रखा जाता सकता है:राष्ट्रिय स्मारक-जिन्हें केंद्र सरकार देखती है, और राज्य के स्मारक, जिन्हें संबंधित राज्य की सरकार देखती है।
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इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ इ ई "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 सितंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 सितंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 सितंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 सितंबर 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 सितंबर 2016.