मधेपुरा जिला

बिहार का जिला
(मधेपुरा ज़िला से अनुप्रेषित)

मधेपुरा भारत के बिहार राज्य का जिला है। इसका मुख्यालय मधेपुरा शहर है। सहरसा जिले के एक अनुमंडल के रूप में रहने के उपरांत ९ मई १९८१ को उदाकिशुनगंज अनुमंडल को मिलाकर इसे जिला का दर्जा दे दिया गया। यह जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है। वर्तमान में इसके दो अनुमंडल तथा ११ प्रखंड हैं। मधेपुरा धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। चंडी स्थान, सिंहेश्वर स्थान, बाबा बिशु राउत मंदिर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं। यहाँ का रेल कारखाना पूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैथिली यहाँ की प्रमुख भाषा है।

मधेपुरा
दौराम मधेपुरा
—  जिला  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य बिहार
ज़िला मधेपुरा
निकटतम नगर सुपौल, सहरसा, पूर्णिया, अररिया, खगड़िया और भागलपुर
जनसंख्या
घनत्व
45,015 (2001 के अनुसार )
क्षेत्रफल 1,787 कि.मी² (690 वर्ग मील)
आधिकारिक जालस्थल: madhepura.bih.nic.in

निर्देशांक: 25°33′N 86°30′E / 25.55°N 86.5°E / 25.55; 86.5

मधेपुरा के नामकरण के संबंध में कई कहानियाँ हैं, हालाँकि इतिहासकारों द्वारा इसके नामकरण के संबंध में आम तौर पर दो स्वीकृत सिद्धांत हैं; एक मत यह है कि चूंकि मधेपुरा कोसी घाटी के मध्य में स्थित है, इसलिए इसे मध्यपुरा कहा जाता था, जो बाद में बदलकर मधेपुरा हो गया। दूसरा मत यह है कि कहा जाता है कि इस क्षेत्र में माधववंशियों (यादवों का शाखा) की बहुलता के कारण इसे माधवपुरा कहा जाता था जो कालान्तर में माधवपुरा से मधेपुरा बन गया।[1]

प्राचीन काल में मधेपुरा मिथिला राज्य का हिस्सा था।[2][3] ऐसा माना जाता है कि पौराणिक काल में कोशी नदी के तट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। श्रृंगी ऋषि भगवान शिव के भक्त थे और वह आश्रम में भगवान शिव की प्रतिदिन उपासना किया करता था। श्रृंगी ऋषि के आश्रम स्थल को श्रृंगेश्‍वर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस उस जगह का नाम बदलकर सिंहेश्वर हो गया। महाजनपद काल में मधेपुरा अंग महाजनपद का हिस्सा था। मौर्य वंश का भी यहां शासन रहा। इसका प्रमाण उदा-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ से मिलता है। गुप्त वंश के शासन काल में यह मिथिला प्रांत का हिस्सा रहा। मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से भी सम्बन्धित है। शंकरपुर प्रखंड के बसंतपुर तथा रायभीर गांवों में रहने वाले भांट समुदाय के लोग कुशान वंश के परवर्ती हैं।[4]

मुगल काल में मधेपुरा सरकार तिरहुत के अधीन रहा। उदा-किशुनगंज अंतर्गत सरसंडी गांव में अकबर के समय की एक मस्जिद आज मौजूद है। इसके अतिरिक्त, सिकंदर साह ने भी जिले का दौरा किया था, जो साहुगढ़ गांव से मिले सिक्कों से स्पष्ट होता है।[4]

ऐतिहासिक स्थल

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श्रीनगर

मधेपुरा शहर से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में स्थित श्रीनगर एक गांव है। इस गांव में दो किले हैं। माना जाता है कि इनसे से एक किले का इस्तेमाल राजा श्री देव रहने के लिए किया गया था। किले के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर दो विशाल कुंड स्थित है; पहले कुंड को हरसैइर और दूसर कुंड को घोपा पोखर् के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक मंदिर भी है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में स्थित पत्थरों से बने स्तंभ इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं।[5]

बसन्तपुर

मधेपुरा के दक्षिण से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर बसंतपुर गांव स्थित है। यहां पर एक किला है जो कि पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है। माना जाता है कि यह किला राजा विराट के रहने का स्थान था।[6]

बिराटपुर

सोनबरसा रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर बिराटपुर गांव है। यह गांव देवी चंडिका के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से है। 11वीं शताब्दी में राजा कुमुन्दानंद के सुझाव से इस मंदिर के बाहर पत्थर के स्तम्भ बनवाए गए थे। इन स्तम्भों पर अभिलेख देखे जा सकते हैं। इसके साथ ही यहां पर दो स्तूप भी है। मंदिर के पश्चिम से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा टीला है।

भौगोलिक स्थिति

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कोशी नदी के मैदानों में स्थित इस जिले की स्थिति 25°. 34 - 26°.07’ उत्तरी अक्षांश तथा 86° .19’ से 87°.07’ पूर्वी देशान्तर के बीच है। इसके उत्तर में अररिया जिला तथा सुपौल जिला है तथा इसका उत्तरी छोर नेपाल से सिर्फ ६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। पूर्व की दिशा में पूर्णियां जिला, पश्चिम में सहरसा तथा दक्षिण में खगड़िया तथा भागलपुर हैं।

वायु मार्ग

यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा दरभंगा स्थित दरभंगा हवाई अड्डा है। दरभंगा से मधेपुरा 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग

मधेपुरा रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दौरम मधेपुरा है।

सड़क मार्ग

भारत के कई प्रमुख शहरों शहरों से मधेपुरा सड़कमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 31 से होते हुए मधेपुरा पहुंचा जा सकता है।

दर्शनीय स्थल

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सिंहेश्वर स्थान

यहाँ स्थित प्राचीन शिव मंदिर इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, श्रृंगी ऋषि के आश्रम में एक प्राकृतिक शिवलिंग उत्पन्न हुई थी। उस स्थान पर बाद में एक अतिसुंदर मंदिर बना। एक व्यापारी जिसका नाम हरि चरण चौधरी था, ने वर्तमान मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व करवाया था। यह शिवलिंग एक विशाल चट्टान पर स्थित है, जो कि करीबन 15-16 फीट ऊंचा है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दिन और श्रावण माह में भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

बाबा बिशु राउत मंदिर

मधेपुरा के चौसा प्रखंड सबसे अंतिम छोर पर अवस्थित बाबा बिशु राउत पचरासी धाम लोगो की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर मधेपुरा से ६५ किलोमीटर व चौसा प्रखंड मुख्यालय से 7 किलोमीटर की दुरी पर है।

लोकदेव के रूप में चर्चित बाबा बिशु राउत का मंदिर पशु पलकों के लिए पूजन का महत्पूर्ण केंद्र माना जाता है। पचरासी धाम में भव्य मेला का आयोजन लगभग २०० (अनुमानित ) वर्षों से किया जा रहा है। वर्ष 2015 में सूबे के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार मेला का उद्घाटन कर लोक देवता बाबा विशु की प्रतिमा पर दुधाभिषेक किया था। तत्कालीन पर्यटन मंत्री अशोक कुमार सिंह ने भी इसे पर्यटन का दर्जा देने की घोषणा की थी। इसके पूर्व लालू प्रसाद ने भी अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में कई बार इस मेला में पहुंच कर बाबा विशु राउत की प्रतिमा पर दुधाभिषेक करने के बाद आयोजित आम सभा में पचरासी स्थल को पर्यटन दर्जा देने की घोषणा किया था।

दुर्गा मंदिर, उदाकिशुनगंज

मनोकामना शक्ति पीठ के रुप में ख्याति प्राप्त उदाकिशुनगंज सार्वजनिक दुर्गा मंदिर न केवल धार्मिक और अध्यात्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है। यहां सदियों से पारंपरिक तरीके से दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा के दौरान कई देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। मंदिर कमिटी और प्रशासन के सहयोग से विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है। अध्यात्म की स्वर्णिम छटा बिखेर रही सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि करीब 250 वर्षों से भी अधिक समय से यहां मां दुर्गा की पूजा की जा रही है। बड़े-बुजूर्गो का कहना है कि करीब 250 वर्ष पूर्व 18 वीं शताब्दी में चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशुन सिंह के प्रयास से इस स्थान पर मां दुर्गा की पूजा शुरू की गयी थी। तब से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहा है। उन्होंने कहा कि कोशी की धारा बदलने के बाद आनंदपुरा गांव के हजारमनी मिश्र ने दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान दी थी। उन्हीं के प्रयास से श्रद्धालुओं के लिए एक कुएं का निर्माण कराया गया था, जो आज भी मौजूद है। उदाकिशुनगंज निवासी प्रसादी मिश्र मंदिर के पुजारी के रुप में 1768 ई में पहली बार कलश स्थापित किया था। उन्हीं के पांचवीं पीढ़ी के वंशज परमेश्वर मिश्र उर्फ पारो मिश्र वर्तमान में दुर्गा मंदिर के पुजारी हैं ।प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

महर्षि मेंही अवतरण भूमि, मझुआ

यहाँ स्थित भव्य सत्संग आश्रम इस जिले का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। यहाँ एक भव्य सत्संग आश्रम बना है, जो कि अत्यंत सुन्दर है. यहाँ संत शिशु सूरज जी बड़ी लगन से आश्रम का निर्माण करवाया।

२०वी सदी के महान संत महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का जन्म मझुआ नामक गांव में हुआ था। इनका जन्म २८-०४-१८८५ ईस्वी को नानाजी के यहाँ हुआ. इनकी माता जी का नाम जनकवती देवी था. स्व श्री चुमन लाल जी व् स्व श्री जय कुमार लाल दास जी इनके मामा जी थे. श्री कामेश्वर लाल दास जी इनके ममेरे भाई हैं, जो की जयकुमार लाल दास जी के सुपुत्र है।

प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्दसी के दिन भक्तों तथा श्रद्धालुओं की यहाँ अपार भीड़ रहती है।

प्रमुख व्यक्ति

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बाहरी कड़ियाँ

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इन्हें भी देखें

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  1. "History of Madhepura, Historical Aspect of Madhepura, Madhepura Origin". madhepura.biharonline.in. अभिगमन तिथि 2023-08-21.
  2. https://books.google.co.in/books?id=0hbA4A--9HcC&pg=PA74&dq=madhepura+Mithila&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwjQj5DXwvCAAxWVfGwGHdt5DWoQ6AF6BAgIEAM#v=onepage&q=madhepura%20Mithila&f=false
  3. Jha, M. (1997). "Hindu Kingdoms at contextual level". Anthropology of Ancient Hindu Kingdoms: A Study in Civilizational Perspective. New Delhi: M.D. Publications Pvt. Ltd. पपृ॰ 27–42. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788175330344.
  4. "History | Madhepura | India" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-21.
  5. Śrīvāstava, Lakshmī Prasāda (1990). Bihāra loka saṃskrti kośa: Mithilā khanḍạ. Sītārāma Prakāśana.
  6. "संस्कृति और विरासत | Madhepura | India". अभिगमन तिथि 2023-08-21.