महापरिनिब्बाण सुत्त (संस्कृत: महापरिनिर्वाण सूत्र) थेरवाद बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्तपिटक का प्रथम निकाय दीघनिकाय का १६वाँ सूत्र है। यह महात्मा बुद्ध के देहान्त व परिनिर्वाण से सम्बन्धित है और त्रिपिटक का सबसे लम्बा सूत्र है। अपने विस्तृत विवरण के कारण इसे भगवान बुद्ध की मृत्यु के बारे में जानकारी का प्राथमिक स्रोत माना जाता है।[1]
सूत्र के आरम्भ में सावन शुरु होने में कुछ दिन बचे हैं। मगध के हर्यक वंश के राजा अजातशत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार (संस्कृत: वर्षकार) को भगवान बुद्ध को राजगीर में जाकर मिलने का निर्देश दिया। वस्सकार बुद्ध के पास गए और उन्हें अजातशत्रु के समाचार व योजनाओं की जानकारी देते हुए धार्मिक सीख ली। वहाँ आनंद, महात्मा बुद्ध के दस प्रमुख शिष्यों में से एक और बुद्ध के चचेरे भाई, भी उपस्थित थे। महापरिनिब्बाण में महात्मा बुद्ध द्वारा किया गया संवाद अक्सर आनंद को सम्बोधित है। वर्णन में सावन का अंत, उसके बाद का काल और फिर बुद्ध का देहांत बताया गया है। उन्होंने शरीर-त्याग से पहले आंनद को सम्बोधित किया और कहा कि: "यह सम्भव है कि कुछ अब सोचें कि 'हमारे शिक्षक अब अतीत में चले गए हैं और अब अब हमारा कोई शिक्षक नहीं।' लेकिन ऐसा नहीं सोचना चाहिए, आनंद, जो भी प्रशिक्षण या मार्गदर्शन मैंने दिया है, मेरे मरणोपरांत अब वही तुम्हारा शिक्षक है।" कुछ समय में उनका देहांत हुआ और फिर उनके शरीर को देह-संस्कार के लिये तैयार किया गया। दाह-संस्कार के बाद वस्तुओं को (जिन्हें धातु कहा जाता है) आठ स्मारकों में (जिन्हें चैत्य कहते हैं) स्थापित करा गया।[2]
महापरिनिर्वाण सूत्र में महात्मा बुद्ध के शरीर-धातु के आठ दावेदारों के नाम निम्न मिलते हैं –
- पावा और कुशीनारा के मल्ल
- कपिलवस्तु के शाक्य
- वैशाली के लिच्छवि
- अलकप्प के बुलि
- रामगाम के कोलिय
- पिप्पलिवन के मोरिय
- मगधराज अजातशत्रु
- वेठद्वीप के ब्राह्मण
इन आठों दावेदारों ने महात्मा बुद्ध के धातु अवशेषों पर आठ स्थानों पर स्तूपों का निर्वाण करवाया।
- ↑ Buddhism: Critical Concepts in Religious Studies, Paul Williams, Published by Taylor & Francis, 2005. page 190
- ↑ "The Mission Accomplished Archived 2016-03-03 at the वेबैक मशीन" (PDF), Venerable Pategama Gnanarama Ph.D., Ti-Sarana Buddhist Association, 1997, Singapore