माधवाचार्य की ज्या सारणी
केरलीय गणित सम्प्रदाय के गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री माधवाचार्य ने चौदहवीं शताब्दी में विभिन्न कोणों के ज्या के मानों की एक सारणी निर्मित की थी। इस सारणी में चौबीस कोणों के ज्या के मान दिए गये हैं। जिन कोणों के ज्या के मान दिए गये हैं वे हैं:
- 3.75°, 7.50°, 11.25°, ..., तथा 90.00° (अर्थात् 3.75°= 1/24 समकोण के पूर्णांक गुणक)।
यह सारणी एक संस्कृत श्लोक के रूप में है जिसमें संख्यात्मक मानों को कटपयादि पद्धति का उपयोग करके निरूपित किया गया है।
इससे सम्बन्धित माधव के मूल कार्य प्राप्त नहीं होते हैं किन्तु नीलकण्ठ सोमयाजि (1444–1544) के 'आर्यभटीयभाष्य' तथा शंकर वरियार (सन् 1500-1560) द्वारा रचित तन्त्रसंग्रह की 'युक्तिदीपिका/लघुवृत्ति' नामक टीका में भी हैं।[1]
माधव की सारणी
संपादित करेंनिम्नांकित श्लोक में माधव की ज्या सारणी दिखायी गयी है। जो चन्द्रकान्त राजू द्वारा लिखित कल्चरल फाउण्डेशन्स ऑफ मैथमेटिक्स नामक पुस्तक से लिया गया है।[1]
- श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां हिमाद्रिर्वेदभावनः।
- तपनो भानुसूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं॥
- धिगाज्यो नाशनं कष्टं छत्रभोगाशयाम्बिका।
- म्रिगाहारो नरेशोऽयं वीरोरनजयोत्सुकः॥
- मूलं विशुद्धं नालस्य गानेषु विरला नराः।
- अशुद्धिगुप्ताचोरश्रीः शंकुकर्णो नगेश्वरः॥
- तनुजो गर्भजो मित्रं श्रीमानत्र सुखी सखे!।
- शशी रात्रौ हिमाहारो वेगल्पः पथि सिन्धुरः॥
- छायालयो गजो नीलो निर्मलो नास्ति सत्कुले।
- रात्रौ दर्पणमभ्रांगं नागस्तुंगनखो बली॥
- धीरो युवा कथालोलः पूज्यो नारीजरैर्भगः।
- कन्यागारे नागवल्ली देवो विश्वस्थली भृगुः॥
- तत्परादिकलान्तास्तु महाज्या माधवोदिताः।
- स्वस्वपूर्वविशुद्धे तु शिष्टास्तत्खण्डमौर्विकाः॥ २.९.५
माधव द्वारा दिए गये ज्या मान
संपादित करेंमाधव द्वारा दिए गए मानों को समझने के लिए माना कोई कोण A है। O केन्द्र वाले तथा इकाई त्रिज्या के एक वृत्त की कल्पना कीजिए। माना वृत्त का चाप PQ केन्द्र O पर A कोण बनाता है। Q से OP पर QR लम्ब खींचिए। रेखाखण्ड RQ का मान ही Sin A का मान होगा।
उदाहरण के लिए माना A का मान 22.50° है। sin 22.50° का आधुनिक मान 0.382683432363 है तथा,
- 0.382683432363 radians = 180 / π × 0.382683432363 degrees = 21.926145564094 degrees.
तथा
- 21.926145564094 डिग्री = 1315 आर्कमिनट 34 आर्कसेकेण्ड 07 का सांठवाँ आर्कसेकेण्ड.
कटपयादि पद्धति में अंकों को उलटे क्रम में लिखा गया है। और 22.50° के संगत जो मान दिया गया है वह है : 70435131.
माधव की सारणी से कोणों के ज्या निकालना
संपादित करेंकिसी कोण A के लिए, माना
तो
सारणी की प्रत्येक पंक्ति आठ अंक देती है। माना कोण A के संगत अंक (बाएँ से दाहिने की तरफ पढ़िए) इस प्रकार हैं-
तो कटपयादि प्रणाली के अनुसार
माधवाचार्य के ज्या मानों की शुद्धता की तुलना
संपादित करेंनिम्नलिखित सारणी में माधवाचार्य के ज्या मानों की शुद्धता की तुलना संगत आधुनिक मानों के साथ की गई है।
कोण A (डिग्री में) |
sin A के लिए माधवाचार्य द्वारा प्रदत्त मान | माधवाचार्य की सारणी से प्राप्त sin A का मान |
sin A का आधुनिक मान | ||
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देवनागरी लिपि में कटपयादि प्रणाली का उपयोग करते हुए |
ISO 15919 लिप्यन्तरण योजना में |
संख्यात्मक मान | |||
(1)
|
(2)
|
(3)
|
(4)
|
(5)
|
(6)
|
03.75
|
श्रेष्ठो नाम वरिष्ठानां | śreṣṭhō nāma variṣṭhānāṁ | 22 05 4220
|
0.06540314 | 0.06540313 |
07.50
|
हिमाद्रिर्वेदभावनः | himādrirvēdabhāvanaḥ | 85 24 8440
|
0.13052623 | 0.13052619 |
11.25
|
तपनो भानु सूक्तज्ञो | tapanō bhānu sūktajñō | 61 04 0760
|
0.19509032 | 0.19509032 |
15.00
|
मध्यमं विद्धि दोहनं | maddhyamaṁ viddhi dōhanaṁ | 51 54 9880
|
0.25881900 | 0.25881905 |
18.75
|
धिगाज्यो नाशनं कष्टं | dhigājyō nāśanaṁ kaṣṭaṁ | 93 10 5011
|
0.32143947 | 0.32143947 |
22.50
|
छन्नभोगाशयांबिका | channabhōgāśayāṁbikā | 70 43 5131
|
0.38268340 | 0.38268343 |
26.25
|
मृगाहारो नरेशोयं | mr̥gāhārō narēśōyaṁ | 53 82 0251
|
0.44228865 | 0.44228869 |
30.00
|
वीरो रणजयोत्सुकः | vīrō raṇajayōtsukaḥ | 42 25 8171
|
0.49999998 | 0.50000000 |
33.75
|
मूलं विशुद्धं नाळस्य | mūlaṁ viśuddhaṁ nāḷasya | 53 45 9091
|
0.55557022 | 0.55557023 |
37.50
|
गानेषु विरळा नराः | gāneṣu viraḷā narāḥ | 30 64 2902
|
0.60876139 | 0.60876143 |
41.25
|
अशुद्धिगुप्ता चोरश्रीः | aśuddhiguptā cōraśrīḥ | 05 93 6622
|
0.65934580 | 0.65934582 |
45.00
|
शम्कुकर्णो नगेश्वरः | śaṃkukarṇō nageśvaraḥ | 51 15 0342
|
0.70710681 | 0.70710678 |
48.75
|
तनूजो गर्भजो मित्रं | tanūjō garbhajō mitraṃ | 60 83 4852
|
0.75183985 | 0.75183981 |
52.50
|
श्रीमानत्र सुखी सखे | śrīmānatra sukhī sakhē | 25 02 7272
|
0.79335331 | 0.79335334 |
56.25
|
शशी रात्रौ हिमाहारौ | śaśī rātrou himāhārou | 55 22 8582
|
0.83146960 | 0.83146961 |
60.00
|
वेगज्ञः पथि सिन्धुरः | vēgajñaḥ pathi sindhuraḥ | 43 01 7792
|
0.86602543 | 0.86602540 |
63.25
|
छाया लयो गजो नीलो | chāya layō gajō nīlō | 71 31 3803
|
0.89687275 | 0.89687274 |
67.50
|
निर्मलो नास्ति सल्कुले | nirmalō nāsti salkulē | 05 30 6713
|
0.92387954 | 0.92387953 |
71.25
|
रात्रौ दर्पणमभ्रांगं | rātrou darpaṇamabhrāṁgaṁ | 22 81 5523
|
0.94693016 | 0.94693013 |
75.00
|
नागस्तुंग नखो बली | nāgastuṁga nakhō balī | 03 63 0233
|
0.96592581 | 0.96592583 |
78.75
|
धीरो युवा कथालोलः | dhīrō yuvā kathālōlaḥ | 92 14 1733
|
0.98078527 | 0.98078528 |
82.50
|
पूज्यो नारीजनैर्भगाः | pūjyō nārījanairbhagāḥ | 11 02 8043
|
0.99144487 | 0.99144486 |
86.25
|
कन्यागारे नागवल्ली | kanyāgārē nāgavallī | 11 32 0343
|
0.99785895 | 0.99785892 |
90.00
|
देवो विश्वस्थली भृगुः | devō viśvasthalī bhr̥ guḥ | 84 44 7343
|
0.99999997 | 1.00000000 |
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ C.K. Raju (2007). Cultural foundations of mathematics: The nature of mathematical proof and the transmission of calculus from India to Europe in the 16 thc. CE. History of Philosophy, Science and Culture in Indian Civilization. X Part 4. Delhi: Centre for Studies in Civilizations. पपृ॰ 114–123. सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "Raju" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है