मानव धर्म सभा गुजरात और ब्रिटिश भारत में सबसे शुरुआती सामाजिक-धार्मिक सुधार संगठनों में से एक थी। इसकी स्थापना २२ जून १८४४ को सूरत में दुर्गाराम मंछाराम मेहता, दादोबा पांडुरंग तारखडकर और कुछ अन्य लोगों द्वारा की गई थी। सभा का लक्ष्य ईसाई धर्म, इस्लाम और हिंदू धर्म में मौजूद पाखंडी कलाओं को उजागर करना था। इसका जीवनकाल बहुत छोटा था और १८४६ में दादोबा के बंबई चले जाने और १८५२ में दुर्गाराम के राजकोट चले जाने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो गया।[1][2]

मानव धर्म सभा का मुख्य उद्देश्य सत्य और नैतिकता पर आधारित सच्चे धर्म के सकारात्मक पक्ष को उजागर करना था। संगठन ने एकेश्वरवाद की अवधारणा को स्वीकार किया, एक ऐसी अवधारणा जो केवल एक ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करती है। संगठन प्रत्येक रविवार को सार्वजनिक बैठकें आयोजित करता था जिसमें वक्ता जातिवाद छोड़ने, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने और मूर्ति पूजा की प्रथा को बंद करने का आह्वान करते थे। संगठन की मुख्य गतिविधि समाज से अंधविश्वासों को खत्म करना और यह सुनिश्चित करना था कि लोग काला जादू, जादू टोना और ऐसी अन्य कुप्रथाओं का अभ्यास न करें।[3]

  1. Jones, Kenneth W. (1989). Socio-Religious Reform Movements in British India. Cambridge University Press. पृ॰ 137. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-24986-7.
  2. Haynes, Douglas E. (1991). Rhetoric and Ritual in Colonial India: The Shaping of a Public Culture in Surat City, 1852-1928. University of California Press. पृ॰ 116. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-06725-7.
  3. Thaker, Dhirubhai; Desai, Kumarpal, संपा॰ (2007). "Social Reforms in Gujarat". Gujarat. Ahmedabad: Smt. Hiralaxmi Navanitbhai Shah Dhanya Gurjari Kendra, Gujarat Vishvakosh Trust. पृ॰ 78. OCLC 680480939.