मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में (ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए वियना सम्मलेन में पारित प्रोटोकॉल) अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओज़ोन परत को संरक्षित करने के लिए, चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है, जिन्हें ओज़ोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। इस संधि को हस्ताक्षर के लिए 16 सितंबर 1987 को खोला गया था और यह 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई, जिसके बाद इसकी पहली बैठक मई, 1989 में हेलसिंकी में हुई. तब से, इसमें आठ संशोधन हुए हैं, 1990 में लंदन 1991 नैरोबी 1992 कोपेनहेगन 1993 बैंकाक 1995 वियना 1997 मॉन्ट्रियल और 1999 बीजिंगमें. आठवां संशोधन कीगाली समझौता 2019 है ऐसा माना जाता है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पूरी तरह से पालन हो तो,2050 तक ओज़ोन परत ठीक होने की उम्मीद है[1]. व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त करने तथा लागू होने के कारण, इसे असाधारण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के एक उदाहरण के रूप में कोफी अन्नान द्वारा यह कहते हुए उद्धृत किया कि "आज तक हुए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल शायद अकेला सबसे सफल समझौता है।[2] इसे 196 राज्यों द्वारा मान्यता दी गई है।[3]
- इसी नाम के अन्य समझौतों के लिए, देखें मॉन्ट्रियल कन्वेंशन (समान नामों का विवाद सुलझाने की प्रक्रिया).
इस संधि के नियम तथा उद्देश्य
संपादित करेंयह संधि[4] हैलोजिनिटेड हाइड्रोकार्बन के कई समूहों के इर्द गिर्द घूमती है जो ओज़ोन की परत को क्षीण करने के लिए जिम्मेवार हैं। ओज़ोन की परत को कमज़ोर करने वाले इन सभी पदार्थों में क्लोरीन या ब्रोमीन मौजूद है (वे पदार्थ जिनमे केवल फ्लोरीन हो, ओज़ोन परत को नुकसान नहीं पहुंचाते). ओज़ोन के परत को क्षीण करने वाले पदार्थों की सारिणी के लिए देखें : [1]
प्रत्येक समूह के लिए, संधि एक समय सीमा निर्धारित करती है जिसमे उन पदार्थों का उत्पादन चरणबद्ध रूप से कम होना चाहिए और अंततः समाप्त हो जाना चाहिए.
(क्लोरोफ्लोरोकार्बन सीएफसी (CFCs) चरणबद्ध प्रतिबंध (फेज़ आउट) प्रबंधन योजना
संपादित करेंसंधि के घोषित उद्देश्य के अनुसार हस्ताक्षर करने वाला कहता है:
: ...यह मानते हुए कि इस प्रकार के पदार्थों का वैश्विक उत्सर्जन निश्चित रूप से ओज़ोन परत को क्षीण कर सकता है या उसमे इस प्रकार के बदलाव ला सकता है जिसके कारण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है,... एहतियाती उपायों द्वारा उन पदार्थों के वैश्विक उत्सर्जन पर समान रूप से नियंत्रण करके, जो इसे कमज़ोर करते हैं, ओज़ोन परत का बचाव करने की ठान ली है, तथा अंतिम उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान के विकास के आधार पर इनका उन्मूलन करना है।.. यह स्वीकार करते हुए कि विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विशेष प्रावधान की आवश्यकता है।..'
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन के प्रयोग तथा उत्पादन में चरणबद्ध प्रतिबंध स्वीकार करूंगा, जिसमे शामिल हैं:
- 1991 से 1992 तक, अनुबंध A के ग्रुप I में शामिल नियंत्रित पदार्थों की खपत का स्तर और उत्पादन, 1986 में इन पदार्थों की हुई गणना के अनुसार उत्पादन के स्तर और खपत के 150 प्रतिशत से अधिक न हो;
- 1994 से अनुबंध A के ग्रुप I में शामिल नियंत्रित पदार्थों की खपत का स्तर और उत्पादन, 1986 में इन पदार्थों की हुई गणना के अनुसार उत्पादन के स्तर और खपत के 25 प्रतिशत वार्षिक से अधिक न हो;
- 1996 से अनुबंध A के ग्रुप I में शामिल नियंत्रित पदार्थों की खपत का मापा गया स्तर और उत्पादन शून्य से अधिक न हो.
दूसरे पदार्थों (हैलोन (halon) (1211, 1301 2402; सीएफसी (CFCs) 13, 111, 112, आदि) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है (2010 तक शून्य) और कुछ रसायनों (कार्बन टेट्राक्लोराइड; 1,1,1-ट्राईक्लोरोमीथेन) पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जा रहा है। कम सक्रिय एचसीएफ़सी HCFCs पर चरणबद्ध रोक का काम 1996 में ही शुरू हो पाया तथा यह तब तक चलता रहेगा जब तक कि 2030 में पूरी तरह से चरणबद्ध रोकथाम का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता. '
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) चरणबद्ध प्रतिबंध प्रबंधन योजना (HPMP)
संपादित करेंओज़ोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकोल के तहत, विशेष कार्यकारी समिति (ExCom) 53/37 और ExCom 54/39, इस प्रोटोकॉल के दल, 2013 तक HCFCs की खपत और उत्पादन को फ्रीज करने पर सहमत हुए हैं। वे 2015 में इसकी खपत और उत्पादन को कम करने की प्रक्रिया को शुरू करने पर भी सहमत हुए. इसलिए HCFCs की फ्रीजिंग तथा कम करने का समय 2013/2015 के रूप में जाना जाता है।
HCFCs सीएफसी के माध्यमिक प्रतिस्थापक हैं, जो प्लास्टिक फोम विनिर्माण और आग बुझाने वाले यंत्रों में रेफ्रिज्रेंट, सॉल्वैंट्स तथा ब्लोइंग एजेंट के तौर पर प्रयुक्त किए जाते हैं। ओज़ोन क्षरण क्षमता (ODP) की परिभाषा में, सीएफसी (CFCs) की तुलना में, जिनका ODP 0.6 - 1.0 है; इन एचसीएफ़सी (HCFCs) का ODP कम है, अर्थात 0.01 - 0.5. जबकि ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) की परिभाषा के अनुसार, सीएफसी (CFCs) की तुलना में, जिनका GWP 4,680 - 10,720 है; एचसीएफ़सी (HCFCs) का GWP कम है, अर्थात 76 - 2,270.
"आवश्यक उपयोग" के लिए कुछ क्षेत्र अपवाद हैं जहाँ इनका कोई स्वीकार्य विकल्प नहीं ढूंढा जा सका है (उदाहरण के लिए, मीटर डोज़ इन्हेलर में जो आमतौर पर दमे तथा दूसरी श्वास संबंधी समस्याओं में प्रयोग किया जाता है[5]) या हैलोन फायर स्प्रैशन सिस्टम में, जो पनडुब्बियों तथा विमानों में प्रयोग किया जाता है ((लेकिन सामान्य उद्योग में नहीं).
अनुबंध A के ग्रुप I के पदार्थ हैं:
प्रोटोकॉल के प्रावधानों में पार्टियों द्वारा उनके भविष्य के निर्णयों को, उनकी वर्तमान वैज्ञानिक, पर्यावरण, तकनीकी और आर्थिक जानकारी के आधार के अनुसार प्रोटोकॉल आधारित करने की आवश्यकता शामिल है, जिसका मूल्यांकन दुनिया भर के विशेषज्ञ समुदायों से तैयार पैनलों के माध्यम से किया जाता है। निर्णय लेने की प्रक्रिया में इस जानकारी को इस्तेमाल करने के लिए, 1989,1991,1994,1998 और 2002 में रिपोर्टों के एक श्रृंखला के माध्यम से इन विषयों को समझने की प्रक्रिया में प्रगति हुई जिनका शीषक ओज़ोन रिक्तीकरण का वैज्ञानिक मूल्यांकन था।
कई सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा ओज़ोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के विकल्पों के रूप में विभिन्न रिपोर्टों का प्रकाशन किया गया है, क्योंकि इन पदार्थों का कई तकनीकी क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे रेफ्रिज़रेटिंग, कृषि, ऊर्जा के उत्पादन तथा प्रयोगशाला के मापों की प्रक्रिया में[6][7][8].
इतिहास
संपादित करें1973 में कैमिस्ट फ्रैंक शेरवुड रोलैंड और मारियो मोलिना, ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय इर्विन में पृथ्वी के वायुमंडल में सीएफसी (CFCs) के प्रभावों का अध्ययन आरम्भ किया। उन्होनें पाया कि सीएफसी (CFC) अणु वातावरण में बने रहने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली थे जब तक कि वे स्ट्रैटोस्फियर परत के मध्य में नहीं पहुँच जाते (दो आम सीएफ़सी (CFCs) के लिए 50-100 साल के बीच की औसत के बाद) जहाँ अंततः पराबैंगनी विकिरण के कारण टूट कर वे क्लोरीन के अणु उत्सर्जित करते थे। रोलैंड और मोलिना ने इसके बाद बताया कि ये क्लोरीन अणु स्ट्रैटोस्फियर परत में ओज़ोन (O3) की एक बड़ी मात्रा को नष्ट कर सकते हैं। उनका तर्क पॉल जे. कर्टज़न और हेरोल्ड जॉनसन के समकालीन समान काम पर आधारित था, जिसके अनुसार नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) ओज़ोन के विनाश की प्रक्रिया को बढ़ा सकती थी। राल्फ सिस्रोन, रिचर्ड स्तोलरस्की, माइकल मेकएलरॉय और स्टीफन वोफ्सी सहित कई अन्य वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से बताया था कि क्लोरीन ओज़ोन को हानि पहुंचाने की प्रक्रिया को बढ़ा सकती है, लेकिन किसी ने भी यह महसूस नहीं किया कि सीएफसी (CFCs) क्लोरीन के संभावित बड़े स्रोत थे।) कर्टज़न, मोलिना और रोलैंड को इस समस्या की दिशा में अपने काम के लिए 1995 में रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस खोज के पर्यावरणीय परिणाम स्वरूप यह पता चला कि, चूंकि स्ट्रैटोस्फियर ओज़ोन परत ग्रह की सतह पर पहुँचने वाली अधिकतर पराबैंगनी-बी (UV-B) विकिरणों को सोख लेती है, सीएफ़सी (CFCs) द्वारा ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचने से सतह पर यूवी-बी (UV-B) विकिरण में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा कैंसर तथा फसलों और समुद्री शैवालों को नुकसान जैसे अन्य प्रभावों में वृद्धि हो सकती है।
लेकिन रोलैंड-मोलिना परिकल्पना का एयरोसोल तथा हेलोकार्बन उद्योगों के प्रतिनिधियों द्वारा ज़ोरदार विरोध किया गया। ड्यूपॉन्ट के बोर्ड अध्यक्ष के अनुसार ओज़ोन रिक्तीकरण का सिद्धांत "एक विज्ञान की काल्पनिक कथा। .. अत्यधिक बकवास...कोरी बकवास". वाल्व कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष (तथा पहली व्यवहारिक एयरोसोल स्प्रे कैन वाल्व के अविष्कारक), रोलैंड के सार्वजनिक बयानों के बारे में यूसी (UC) इरविन के चांसलर से शिकायत की. (रोन, p. 56.)
जून 1974 में अपने निर्णायक पत्र के प्रकाशन के बाद, रोलैंड और मोलिना ने दिसंबर 1974 में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के सामने गवाही दी. परिणामस्वरूप समस्या के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन तथा प्रारंभिक निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए काफी धन उपलब्ध कराया गया था। 1976 में अमेरिकेन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (NAS) ने एक रिपोर्ट जारी की जिसने ओज़ोन रिक्तिकरण के सिद्धांत की वैज्ञानिक विश्वसनीयता की पुष्टि की.[9] NAS ने अगले दशक के लिए संबंधित विज्ञान का मूल्यांकन प्रकाशित करना जारी रखा.
फिर, 1985 में, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों फरमान, गार्डिनर और शेंकलिन ने वैज्ञानिक समुदाय को एक झटका दिया जब उन्होनें नेचर (Nature) नामक एक पत्रिका में ओज़ोन "छेद" के अध्ययन का परिणाम प्रकाशित किया - जिसके अनुसार ध्रुवीय ओज़ोन में क्षीणता, किसी के द्वारा सोची गयी क्षीणता से कहीं अधिक थी।
उसी वर्ष, 20 देशों, जिनमे से अधिकांश प्रमुख सीएफसी (CFC) उत्पादक थे, ने वियना सम्मलेन, में हस्ताक्षर किये, जिससे ओज़ोन को क्षीण करने वाले पदार्थों के अंतर्राष्ट्रीय नियमों की बातचीत की रूपरेखा तैयार हुई.
लेकिन सीएफसी (CFC) उद्योग ने इतनी आसानी से हार नहीं मानी. 1986 के अंत तक, द अलायंस फॉर रिस्पोंसिबल CFC पॉलिसी (जिम्मेदार CFC नीति के लिए गठबंधन) (ड्यूपॉन्ट द्वारा स्थापित सीएफ़सी (CFC) उद्योग संघ का प्रतिनिधित्व करने वाला संघ) अभी भी बहस कर रहा था कि किसी भी कार्रवाई का औचित्य सिद्ध करने के बारे में विज्ञान अनिश्चित था। 1987 में, ड्यूपॉन्ट ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने गवाही दी कि "हमारा विश्वास है कि ऐसा कोई तत्काल संकट नहीं है जिसके लिए एकतरफा अधिनियम बने." [उद्धरण चाहिए]
IMP== बहुपक्षीय कोष ==बहुपक्षीय कोष विकसित देशना पैसे देतात।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिए बहुपक्षीय कोष, ओज़ोन को क्षीण करने वाले पदार्थों पर चरणबद्ध ढंग से रोकथाम लगाने में सहायता करने के लिए विकसित देशों को धन प्रदान करता है।
बहुपक्षीय कोष किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत बनाई जाने वाली पहली वित्तीय व्यवस्था है। [संदिग्ध ] यह 1992 में संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और विकास सम्मेलन में पारित सिद्धांतों को मानता है जिसके अनुसार वैश्विक संपदा को बचाने तथा रखरखाव के लिए सभी देशों के साधारण किन्तु अलग अलग उत्तरदायित्व हैं।
फंड को एक कार्यकारी समिति द्वारा संचालित किया जाता है जिसमे सात औद्योगीकृत और सात आर्टिकल 5 (अनुच्छेद 5) देशों का बराबर प्रतिनिधित्व होता है जिन्हें पार्टियों की बैठक द्वारा वार्षिक रूप से चुना जाता है। समिति अपने कार्यों के बारे में दलों की बैठक के दौरान सालाना रिपोर्ट देती है।
योगदान का 20 प्रतिशत तक का हिस्सा, योगदान देने वाली पार्टियों को उनकी द्विपक्षीय एजेंसियों को भी योग्य परियोजनाओं और गतिविधियों के रूप में दिया जा सकता है।
कोष तीन साल के आधार पर दानकर्ताओं से मंगाया जाता है। 1991 से 2005 तक यह राशि 2.1 बिलियन डॉलर से अधिक तक पहुँच गई। उदाहरण के लिए, धन का उपयोग मौजूदा विनिर्माण प्रक्रियाओं में बदलाव, कर्मियों को प्रशिक्षण देने, नयी तकनीकों के लिए रॉयल्टी और पेटेंट अधिकारों का भुगतान करने तथा राष्ट्रीय ओज़ोन कार्यालयों की स्थापना करने के लिए किया जाता है।
मान्यता
संपादित करें16 सितंबर 2009 तक, संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों ने मूल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की पुष्टि की है[10] (नीचे बाहरी लिंक देखें), जिनमे से तिमोर-लेस्टे समझौते की पुष्टि करने वाला सबसे अंतिम देश है। इसके बाद के प्रत्येक संशोधन की कम देशों ने पुष्टि की है। केवल 154 देशों ने बीजिंग संशोधन पर हस्ताक्षर किए हैं।[3]
संयुक्त राज्य अमेरिका में, 1990 के स्वच्छ वायु अधिनियम के संशोधनों (P.L. 101-549) में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू करने के प्रावधानों के साथ, ओज़ोन को क्षीण करने वाले रसायनों को नियमित करने के लिए पृथक अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी है।
प्रभाव
संपादित करेंजब से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल प्रभाव में आया है, सबसे महत्वपूर्ण क्लोरोफ्लोरोकार्बन और संबंधित क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन की वायुमंडलीय सांद्रता का स्तर या तो बराबरी पर आ गया है या कम हो गया है[2]. हैलोन सांद्रता का बढ़ना जारी है, क्योंकि वर्तमान में अग्निशमन यंत्रों में संग्रहित हैलोन छोड़ दी गई है, किन्तु उनके बढ़ने की दर कम हुई है और 2020 तक इसकी मात्रा में गिरावट की उम्मीद है। इसके अलावा, HCFCs की सांद्रता कम से आंशिक रूप से अत्यधिक तेज़ी के साथ बढ़ी है क्योंकि कई जगह सीएफ़सी (CFCs) (जैसे सॉल्वैंट्स या रेफ्रिज़रेटिंग घटक के रूप में इस्तेमाल की जाती है) के स्थान पर एचसीएफ़सी (HCFCs) का प्रयोग किया जाता है। जबकि कई व्यक्तियों द्वारा प्रतिबंध को नाकाम करने की कोशिश हुई है, उदाहरण के तौर पर अविकसित देशों से विकसित देशों को सीएफ़सी (CFCs) की तस्करी द्वारा, समग्र तौर पर अनुपालन का स्तर उच्च रहा है। परिणामस्वरूप, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अक्सर आज तक का सबसे सफल अंतर्राष्ट्रीय समझौता कहा जाता है। 2001 की रिपोर्ट में, नासा (NASA) ने पाया की पिछले तीन वर्षों में अंटार्कटिका पर ओज़ोन परत की मोटाई एक समान रही थी, [3], लेकिन 2003 में ओज़ोन छेद अपने दूसरे सबसे बड़े आकार तक पहुँच गया। [4]. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रभावों के सबसे ताज़ा (2006) वैज्ञानिक मूल्यांकन के अनुसार, "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल काम कर रहा है: ओज़ोन-को क्षीण करने वाले पदार्थों के वायुमंडलीय बोझ में कमी तथा ओज़ोन परत में सुधार के कुछ शुरुआती संकेत का स्पष्ट सबूत मौज़ूद है।"[11]
दुर्भाग्य से, हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन, या HCFCs और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, या HFCs, के बारे में माना जाता है कि ये एन्थ्रोपोजेनिक ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देते हैं। अणु-से-अणु के आधार पर, ये यौगिक कार्बन डाइऑक्साइड से 10,000 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसें छोड़ते हैं। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल वर्तमान में 2030 तक HCFCs की चरणबद्ध रोकथाम के लिए कहता है, लेकिन एचएफसी (HFCs) पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता. चूंकि सीएफसी (CFCs) स्वयं ग्रीनहाउस गैसों के समान शक्तिशाली हैं, सीएफ़सी (CFCs) के स्थान पर एचएफ़सी (HFCs) का प्रयोग ही केवल एन्थ्रोपोजेनिक ग्लोबल वार्मिंग नहीं बढ़ा रहा अपितु, समय के साथ उनके प्रयोग में वृद्धि इस खतरे के बढ़ा सकती है कि मनुष्य के क्रियाकलाप जलवायु में परिवर्तन कर देंगे [5].
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ स्पेथ, जे.जी. 2004. रेड स्काई ऐट मोर्निंग: अमेरिका एण्ड द क्राइसिस ऑफ़ द ग्लोबल इनवायरमेंट न्यू हेवेन: येल यूनिवर्सिटी प्रेस, पीपी 95.
- ↑ "द ओज़ोन होल-द मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ऑन सब्सटैंसेस दैट डिप्लीट द ओज़ोन लेयर". मूल से 12 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2010.
- ↑ अ आ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2010.
- ↑ http://ozone.unep.org/Publications/MP_Handbook/Section_1.1_The_Montreal_Protocol/ Archived 2008-07-03 at the वेबैक मशीन से पूर्ण दृष्टि से उपलब्ध हैं।
- ↑ "एक्ज़ेम्प्शन इनफॉरमेशन - द ओज़ोन सेक्रेटरियट वेब साइट". मूल से 30 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2010.
- ↑ प्रयोगशालाओं में डिप्लिटिंग ओज़ोन का प्रयोग. TemaNord 2003:516. http://www.norden.org/pub/ebook/2003-516.pdf Archived 2008-02-27 at the वेबैक मशीन
- ↑ मिथाइल ब्रोमाइड में विकासशील देशों की जगह की आर्थिक व्यवहार्यता और तकनीकी. पृथ्वी के मित्र, वॉशिंगटन, पीपी 173, 1996
- ↑ ओज़ोन-सुविधा मार्गदर्शन पर डिओइ फेसिलिटी फेज़आउट की मार्गदर्शन 1995. http://homer.ornl.gov/nuclearsafety/nsea/oepa/guidance/ozone/phaseout.pdf Archived 2008-02-27 at the वेबैक मशीन
- ↑ National Academy of Sciences (1976). Halocarbons, effects on stratospheric ozone. Washington, DC. मूल से 23 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
- ↑ ओज़ोन रिक्तीकरण के वैज्ञानिक मूल्यांकन: 2006, http://www.esrl.noaa.gov/csd/assessments/2006/report.html Archived 2010-03-29 at the वेबैक मशीन
This article incorporates public domain material from the CIA World Factbook document "2003 edition". (ओज़ोन परत संरक्षण के रूप में संदर्भित)
- बेनिडिक्त, रिचर्ड ई. (1991). ओज़ोन डिप्लोमेसी . हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. ISBN 0-674-65001-8 (प्रोटोकॉल के परिणामस्वरूप में राजदूत बेनिडिक्त मुख्य अमेरिकी के वार्ताकार थे।)
- लित्फिन, करेन टी. (1994). ओज़ोन डिसकोर्सेस . कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस. ISBN 0-231-08137-5
- https://web.archive.org/web/20100724024337/http://www.multilateralfund.org/
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- [6][मृत कड़ियाँ] शामिल दलें
- द मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
- द मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हु'ज़ हु
- द सीएफसी-ओज़ोन पज़ल: ऍफ़. शेरवुड रोलैंड और मारियो जे.मोलिना द्वारा ग्लोबल एरेना में पर्यावरण विज्ञान
- पी.एम् मोर्रिसेटे द्वारा स्ट्रैटोसफेरिक ओज़ोन डिपलेशन के लिए इवोल्यूशन ऑफ़ पॉलिसी की प्रतिक्रिया, नैचुरल रिसोर्सेस जर्नल 29: 793-820 (1989).
- क्या प्रोटोकॉल मॉन्ट्रियल-ओज़ोन डिप्लीटिंग वातावरण में गैसों को कम करने में सफल रहे है? (NOAA एरोनॉमी लैब)
- डूम्सडे Déjà vu: बेन लिबरमैन द्वारा ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए ओज़ोन डिप्लेशन के सबक
- हलोन और ओज़ोन की परत
- https://web.archive.org/web/20111210021632/http://www.scribd.com/doc/6292142/Brief-on-Hydro-Chlorofluorocarbons