मोइनुद्दीन चिश्ती

सूफी संत (अल्लाह के वली), अजमेर वाले
(मोईनुद्दीन चिश्ती से अनुप्रेषित)

हजरत ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मज़ार अजमेर शहर में है। यह माना जाता है कि मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ५३७ हिज़री संवत् अर्थात ११४३ ई॰ पूर्व पर्शिया के सिस्तान क्षेत्र में हुआ।[7] अन्य खाते के अनुसार उनका जन्म ईरान के इस्फ़हान नगर में हुआ। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम पूर्वजों के वंसज है। ख़्वाजा नवाब के नाम से भी जाना जाता है। ग़रीब नवाज़ इन्हें लोगों द्वारा दिया गया लक़ब है।[8]

मोइनुद्दीन चिश्ती
मुईनुद्दीन चिश्ती - मोइनुद्दीन चिश्ती
धर्म इस्लाम
पाठशाला हनफ़ी, मतुरीदी
आदेश चिश्ती तरीक़ा
व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ
जन्म 1 फरवरी 1143 CE
सीस्तान या इस्फ़हान प्रांत [1]
निधन 15 मार्च 1236 CE
अजमेर, राजस्थान, भारत
शांतचित्त स्थान अजमेर शरीफ़ दरगाह
धार्मिक जीवनकाल
गुरु ख़्वाजा अब्दुल्ला अंसारी,[2] Najīb al-Dīn Nakhshabī[2]
शिष्य Muḥammad Mubārak al-ʿAlavī al-Kirmānī,[3] Ḥāmid b. Faḍlallāh Jamālī,[3] ʿAbd al-Ḥaqq Muḥaddith Dihlavī,[3] Ḥamīd al-Dīn Ṣūfī Nāgawrī,[4] Fakhr al-Dīn Chishtī,[4] and virtually all subsequent mystics of the Chishtiyya order

चिश्तिया तरीका - पुनर्स्थापना संपादित करें

चिश्तिया तरीका अबू इसहाक़ शामी ने ईरान के शहर "चश्त" में शुरू किया था, इस लिए इस तरीक़े को "चश्तिया" या चिश्तिया [9] तरीका नाम पड गया। लेकिन वह भारत उपखन्ड तक नहीं पहुन्चा था। मोईनुद्दीन चिश्ती साहब ने इस सूफ़ी तरीक़े को भारत उप महाद्वीप या उपखन्ड में स्थापित और प्रचार किया। यह तत्व या तरीक़ा आध्यात्मिक था, भारत भी एक आध्यात्म्कि देश होने के नाते, इस तरीक़े को समझा, स्वागत किया और अपनाया। धार्मिक रूप से यह तरीका बहुत ही शान्तिपूर्वक और धार्मिक विग्नान से भरा होने के कारण भारतीय समाज में इन्के सिश्यगण अधिक हुवे। इन्की चर्चा दूर दूर तक फैली और लोग दूर दूर से इनके दरबार में हाजिर होते, और धार्मिक ग्यान पाते।

अजमेर में उनका प्रवेश संपादित करें

अजमेर में जब वे धार्मिक प्रचार करते तो चिश्ती तरीके से करते थे। इस तरीके में ईश्वर गान पद्य रूप में गायन के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया जाता था। मतलब ये कि, क़व्वाली, समाख्वानी, और उपन्यासों द्वारा लोगों को ईश्वर के बारे में बताना और मुक्ति मार्ग दर्शन करवाना। स्थानीय हिन्दू राजाओं से भी कई मतभेद हुए परन्तु वह सब मतभेद स्वल्पकालीन थे। स्थानीय राजा भी मोईनुद्दीन साहब के प्रवचनों से मुग्ध हुए और उनपर कोई कष्ट या आपदा आने नहीं दिया।

इस तरह स्थानीय लोगों के हृदय भी जीत लिये, और लोग भी इनके मुरीद (शिष्य) होने लगे।

उनके आखरी पल संपादित करें

 
मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह, अजमेर।

६३३ हिज़री के आते ही उन्हें पता था कि यह उनका आखरी वर्ष है, जब वे अजमेर के जुम्मा मस्जिद में अपने प्रशंसको के साथ बैठे थे, तो उनहोंने शेख अली संगल (र अ) से कहा कि वे हज़रत बख्तियार काकी (र अ) को पत्र लिखकर उन्हें आने के लिये कहें। ख्वाजा साहेब के बाद क़ुरान-ए-पाक, उनका गालिचा और उनके चप्पल काकी (र अ) को दिया गया और कहा "यह विशवास मुहम्म्द (स अ व्) का है, जो मुझे मेरे पीर-ओ-मुर्शिद से मिला हैं, मैं आप पर विशवास करके आप को दे रहा हुँ और उसके बाद उनका हाथ लिया और नभ की ओर देखा और कहा "मैंने तुम्हें अल्लाह पर न्यास्त किया है और तुम्हें यह मौका दिया है उस आदर और सम्मान प्राप्त करने के लिए।" उस के बाद ५ और ६ रजब को ख्वाजा साहेब अपने कमरे के अंदर गए और क़ुरान-ए-पाक पढने लगे, रात भर उनकी आवाज़ सुनाई दी, लेकिन सुबह को आवाज़ सुनाई नहीं दी। जब कमरा खोल कर देखा गया, तब वे स्वर्ग चले गये थे, उनके माथे पर सिर्फ यह पंक्ति चमक रही थी "वे अल्लाह के मित्र थे और इस संसार को अल्लाह का प्रेम पाने के लिए छोड दिया।" उसी रात को काकी (र अ) को मुहम्मद (स अ व्) स्वपन में आए थे और कहा "ख्वाजा साहब अल्लाह के मित्र हैं और मैं उनहें लेने के लिये आया हुँ। उनकी जनाज़े की नमाज़ उन के बड़े पुत्र ख्वाजा फ़क्रुद्दीन (र अ) ने पढाई। हर साल हज़रत के यहाँ उनका उर्स बड़े पैमाने पर होता है।

वंश संपादित करें

 
मक़बरा ख़्वाजा हुसैन अजमेरी औलाद (वंशज) ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह, अजमेर शरीफ शाहजहानी मस्जिद के पीछे

ख्वाजा हुसैन चिश्ती अजमेरी (اُردُو :- خواجه حسین) आपको शैख़ हुसैन अजमेरी और मौलाना हुसैन अजमेरी, ख्वाजा हुसैन चिश्ती के नाम से भी जाना जाता है, ख्वाजा हुसैन अजमेरी ख़्वाजा मोईनुद्दीन[10] हसन चिश्ती के वंशज (पोते) है, बादशाह अकबर के अजमेर आने से पहले से ख़्वाजा [11]हुसैन अजमेरी अजमेर दरगाह के सज्जादानशीन व मुतवल्ली प्राचीन पारिवारिक रस्मों के अनुसार चले आ रहे थे, बादशाह अकबर द्वारा आपको बहुत परेशान किया गया और कई वर्षों तक कैद में भी रखा। दरगाह ख़्वाजा साहब अजमेर में प्रतिदिन जो रौशनी की दुआ पढ़ी जाती है वह दुआ ख़्वाजा हुसैन अजमेरी द्वारा लिखी गई थी। आपका विसाल 1029 हिजरी में हुआ। यही तारीख़ मालूम हो सकी। गुम्बद की तामीर बादशाह शाहजहाँ के दौर में 1047 में हुई।

साधारण संस्कृति में संपादित करें

हुसैन इब्न अली के पाशस्त में इन्हों ने यह कविता लिखी, जो दुनियां भर में मशहूर हुई।

शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन
शाह हैं हुसैन, बादशाह हैं हुसैन

दीन अस्त हुसैन, दीनपनाह अस्त हुसैन
धर्म हैं हुसैन, धर्मरक्षक हैं हुसैन

सरदाद न दाद दस्त दर दस्त ए यज़ीद
अपना सर पेश किया, मगर हाथ नहीं पेश किया आगे यज़ीद के

हक़्क़ाक़-ए बिना-ए ला इलाह अस्त हुसैन
सत्य है कि हुसैन ने शहादा की बुनियाद रखी

चिश्ती तरीक़े के सूफ़ीया संपादित करें

मोइनुद्दीन साहब के तक्रीबन एक हज़ार खलीफ़ा और लाखों मुरीद थे। कयी पन्थों के सूफ़ी भी इनसे आकर मिल्ते और चिश्तिया तरीके से जुड जाते। इन्के शिश्यगणों में प्रमुख ; क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी, बाबा फ़रीद्, निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अह्मद अलाउद्दीन साबिर कलियरी, अमीर खुस्रो, नसीरुद्दीन चिराग दहलवी, बन्दे नवाज़, अश्रफ़ जहांगीर सिम्नानी और अता हुसैन फ़ानी.

आज कल, हज़ारो भक्तगण जिन में मुस्लिम, हिन्दू, सिख, ईसाई व अन्य धर्मों के लोग उर्स के मोके पर हाज़िरी देने आते हैं।

 
मक़्बरे का बाहरी मन्ज़र

आध्यात्मिक परंपरा संपादित करें

  1. हसन अल बस्री
  2. अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद
  3. फ़ुदैल बिन ल्याद
  4. इब्राहीम बिन अदहम
  5. हुदैफ़ा अल-मराशी
  6. अमीनुद्दीन अबू हुबैरा अल बस्री
  7. मुम्शाद दिन्वारी
चिश्ती तरीक़े का आरम्भ
  1. अदुल इसहाक़ शामी चिश्ती
  2. अबू मुहम्मद अब्दाल चिश्ती
  3. अबू मुहम्मद चिश्ती
  4. अबू यूसुफ़ बिन समआन हुसेनी
  5. मौदूद चिश्ती
  6. शरीफ़ ज़न्दानी
  7. उस्मान हारूनी
  8. मुनीरुद्दीन हाजी चिश्ती
  9. यूसुफ़ चिश्ती
  10. मोईनुद्दीन चिश्ती

इन्हें भी देखें संपादित करें

मीडिया में संपादित करें

इनके करामात पर कई हिन्दी अथवा उर्दू फिल्में बनीं। और इन के जीवन पर कई गीत भी लिखे गये और गाये भी गये।

भारत उपमहाद्वीप में जहां कहीं भी क़व्वाली होती है, तो उन क़व्वालियों में इनके बारे में "मनक़बत" (वलियों की प्रशंसा करते हुए गीत या पद्य) गाना एक आम परंपरा है।

  • उर्दू फ़िल्म - मेरे गरीब नवाज़
  • उर्दू फ़िल्म - सुल्तान-ए-हिन्द

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 17 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2018.
  2. Ḥamīd al-Dīn Nāgawrī, Surūr al-ṣudūr; cited in Auer, Blain, “Chishtī Muʿīn al-Dīn Ḥasan”, in: Encyclopaedia of Islam, THREE, Edited by: Kate Fleet, Gudrun Krämer, Denis Matringe, John Nawas, Everett Rowson.
  3. Blain Auer, “Chishtī Muʿīn al-Dīn Ḥasan”, in: Encyclopaedia of Islam, THREE, Edited by: Kate Fleet, Gudrun Krämer, Denis Matringe, John Nawas, Everett Rowson.
  4. “Chishtiyya”। Encyclopaedia Islamica
  5. Francesca Orsini and Katherine Butler Schofield, Telling and Texts: Music, Literature, and Performance in North India (Open Book Publishers, 2015), p. 463
  6. Arya, Gholam-Ali and Negahban, Farzin, “Chishtiyya”, in: Encyclopaedia Islamica, Editors-in-Chief: Wilferd Madelung and, Farhad Daftary: "The followers of the Chishtiyya Order, which has the largest following among Sufi orders in the Indian subcontinent, are Ḥanafī Sunni Muslims."
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 फ़रवरी 2014.
  8. Safvi, Rana (17 February 2019). "In the Chishti shrine in Ajmer". The Hindu (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 16 February 2021.
  9. Sheikh, Irfan. "Khwaja Garib Nawaz Moinuddin Chishti History In Hindi Irfani". Irfani-Islam - इस्लाम की पूरी मालूमात हिन्दी. अभिगमन तिथि 2022-01-02.
  10. Sheikh, Irfan. "Khwaja Garib Nawaz Moinuddin Chishti Ki Karamat In Hindi". Irfani-Islam - इस्लाम की पूरी मालूमात हिन्दी. अभिगमन तिथि 2022-01-02.
  11. "খাজা গরীব নওয়াজ", উইকিপিডিয়া (Bengali में), 2022-01-09, अभिगमन तिथि 2022-01-09

बाहरी कडियां संपादित करें

Official website of Dargah, Ajmer