यदु

पौराणिक अहीर राजा

यदु हिंदू धर्म पौराणिक कथाओं में यदुवंश के संस्थापक के रूप में वर्णित हैं। इन्हें राजा ययाति और उनकी रानी देवयानी का सबसे बड़ा पुत्र बताया गया है। उन्होंने नाग राजाओं की पांच बेटियों से विवाह किया था।[1][2][3][4]

यदु
माता-पिता
भाई-बहन तुर्वसु (भाई)
पुरु, द्रुह्यु, और अनु (सौतेले भाई)
संतान सहस्रजीत, क्रोस्टा, नल और रिपु
शास्त्र रामायण, महाभारत, पुराण
क्षेत्र हस्तिनापुर

कथा

संस्कृत महाकाव्य महाभारत, तथा हरिवंश व पुराणों में यदु को राजा ययाति व रानी देवयानी का पुत्र बताया गया है। राजकुमार यदु एक स्वाभिमानी व सुसंस्थापित शासक थे। विष्णु पुराण, भगवत पुराण व गरुण पुराण के अनुसार यदु के चार पुत्र थे, जबकि बाकी के पुराणो के अनुसार उनके पाँच पुत्र थे।[5] बुध व ययाति के मध्य के सभी राजाओं को सोमवंशी या चंद्रवंशी कहा गया है। महाभारत व विष्णु पुराण के अनुसार यदु ने पिता ययाति को अपनी युवावस्था प्रदान करना स्वीकार नहीं किया था जिसके कारण ययाति ने यदु के किसी भी वंशज को अपने वंश व साम्राज्य मे शामिल न हो पाने का शाप दिया[6] और पुरु को चन्द्रवंश का वारिस बनाया। यदु ने अलग होकर एक नये राजवंश की स्थापना की।

वंशज

उपर्युक्त कथाओं के अनुसार यदु का बड़ा बेटा सहस्रजीत हुआ जिसने इनकी वंश परंपरा को आगे बढ़ाया। राजा सहस्रजीत के वंश को हैहय वंश कहा गया व उनके पौत्र का नाम भी हैहय था।[7] राजा क्रोष्टा के वंशजों को कोई विशेष नाम नही दिया गया वे समान्यतः यादव कहलाए।,[7] पी॰ एल॰ भार्गव के अनुसार जब राज्य का विभाजन हुआ तो सिंधु नदी के पश्चिम का राज्य सहस्रजीत को मिला व पूर्व का भाग क्रोष्टा को दिया गया।[8]

आभीर-त्रैकुटक नामक एक ऐतिहासिक राजवंश ने हैहय वंश से होने दावा किया था।[9]

इतिहासकार टी पद्मजा के अनुसार, अहीरों ने तमिलनाडु में प्रवास किया और अपने राज्य स्थापित किए और शिलालेखों में इन अहीरों का उल्लेख है कि वे यदु वंश से हैं।[10]

बाद में, विभिन्न अपने को यादव-क्षत्रिय कहने वाली जातियाँ इसी यदुवंश का होने का दावा प्रस्तुत करने लगीं।[11]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. www.wisdomlib.org (2018-01-18). "Yaduvansha, Yaduvaṃśa, Yadu-vansha: 3 definitions". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  2. www.wisdomlib.org (2012-06-29). "Yadu, Yādu: 17 definitions". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  3. www.wisdomlib.org (2020-11-14). "The Sons of Yadu and Their Conquests [Chapter 38]". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-04-28.
  4. www.wisdomlib.org (2020-11-14). "An Account of Haryashva [Chapter 37]". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-04-28.
  5. Patil, Devendrakumar Rajaram (1946). Cultural History from the Vāyu Purāna Issue 2 of Deccan College dissertation series, Poona Deccan College Post-graduate and Research Institute (India). Motilal Banarsidass Publisher. पृ॰ 10. अभिगमन तिथि 23 September 2014.
  6. Thapar, Romila (1996) [1978]. Ancient Indian Social History: Some Interpretations (Reprinted संस्करण). Orient Longman. पपृ॰ 268–269. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-250-0808-X.
  7. Pargiter, F.E. (1972). Ancient Indian Historical Tradition, Delhi: Motilal Banarsidass, p.87.
  8. Misra, V.S. (2007). Ancient Indian Dynasties, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, ISBN 81-7276-413-8, pp.162-3
  9. Vaidya, Chintaman Vinayak (1921). History of Mediæval Hindu India: Circa 600-800 A.D (अंग्रेज़ी में). Oriental Book Supplying Agency.
  10. Padmaja, T. (2002). Temples of Kr̥ṣṇa in South India: History, Art, and Traditions in Tamilnāḍu (अंग्रेज़ी में). Abhinav Publications. पृ॰ 34. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7017-398-4.
  11. Pinch, William R. (1996). Peasants and Monks in British India. University of California Press. पृ॰ 91. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91630-2.