रंग दे बसंती
रंग दे बसंती (पंजाबी: ਰੰਗ ਦੇ ਬਸੰਤੀ, उर्दू: رنگ دے بسنتى) एक हिन्दी फिल्म है। 26 जनवरी 2006 को यह फिल्म रिलीज हुई थी। इस फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एवं फिल्म के मुख्य कलाकारों में शामिल हैं, आमिर खान, सिद्धार्थ नारायण, सोहा अली खान, कुणाल कपूर, माधवन, शरमन जोशी, अतुल कुलकर्णी और ब्रिटिश अभिनेत्री एलिस पैटन। पच्चीस करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म नई दिल्ली, मुंबई, राजस्थान और पंजाब में फिल्माई गयी थी। कहानी एक ब्रिटिश वृत्तचित्र निर्माता की है जो अपने दादा की डायरी प्रविष्टियों के आधार पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर एक फिल्म बनाने के लिए भारत आती है।
रंग दे बसंती | |
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रंग दे बसंती का पोस्टर | |
निर्देशक | राकेश ओमप्रकाश मेहरा |
लेखक | रेंजील डीसूज़ा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा |
निर्माता | राकेश ओमप्रकाश मेहरा, रोनी स्क्रूवाला, देवेन खोटे |
अभिनेता | आमिर खान, सोहा अली खान,शर्मन जोशी, महादेवन, कुणाल कपूर |
छायाकार | बिनोद प्रधान |
संगीतकार | ए आर रहमान |
वितरक | यू टीवी मोशन पिक्चर्स |
प्रदर्शन तिथियाँ |
26 जनवरी, 2006 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए 2006 BAFTA पुरस्कार में नामांकित किया गया था। रंग दे बसंती को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म वर्ग में गोल्डन ग्लोब पुरस्कार और अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। ए.आर. रहमान का संगीत, को भी दो अकादमी पुरस्कार नामांकन मिले।[1]
इस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों ने समान रूप से सराहा।
सारांश
संपादित करेंफिल्म रंग दे बसंती का मुख्य भाव है जागृति। यह फिल्म अपनी मान्यताओं के बारे में सोचने और उठ खड़े होने के बारे में है और हमें यह इशारा करती है कि क्रांति की ज़रूरत शायद आज भी है। फिल्म का कथानक एक युवा ब्रिटिश फिल्मकार सू की है जो भारत में बरतानी सेना में काम कर चुके अपने दादा की डायरी पढ़ कर भारत आती है, भारत के क्रांतिकारियों के बारे में एक वृत्तचित्र के निर्माण का इरादा लिये। उसका उद्देश्य है भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद और उनके साथियों के ब्रिटिश तानाशाही के खिलाफ हुए संघर्श के बारे मे एक डॉक्युमेंट्री बनाना। चूँकि उसके पास बहुत पैसे नहीं है इस लिये वह चाह्ती है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्र उसकी इस फिल्म में अभिनय करें।
यहाँ उसकी मुलाकात डीजे (आमिर ख़ान) से होती है। डीजे को दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढाई पूरी किये हुए पांच साल हो चुके हैं। पर डीजे को ऐसा लगता है कि बाहर की दुनिया में उसके लिये कुछ नहीं रखा है। डीजे के दोस्त हैं करण (सिद्धार्थ), असलम (कुनाल कपूर) और सुखी (शर्मन जोशी)। करण- राजनाथ सिंघानिया नाम के एक उद्योगपति का बेटा है और उसकी अपने पिता से नहीं पटती। असलम जामा मस्जिद के पास की गलियों में रहने वाले एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम घर से है। वह इन दोस्तों के बीच का शायर है। सुखी इनमें सबसे छोटा है और सबकी आंखों का तारा है। सब उसे गुट के बच्चे की तरह प्यार करते हैं। इन दोस्तों से अलग है लक्ष्मण पान्डेय (अतुल कुल्कर्णी)। लक्ष्मण एक हिन्दुत्ववादी है जिसे राजनीति पर काफी भरोसा है और वह यह मानता है कि राजनीति से देश और समाज में सुधार लाया जा सकता है। लक्ष्मण की डीजे और उसके साथियों से नहीं बनती है और उनमें अक्सर झगडा होता रहता है। डीजे और साथियों की एक दोस्त है सोनिया (सोहा अली ख़ान) - इस दल की अकेली लडकी। सोनिया की अजय (माधवन) से शादी होने वाली है। अजय एक चुस्त फाइटर पाइलट है जो कि भारतीय वायु सेना में मिग लड़ाकू विमान उडा़ता है।
ये सभी युवा बाकी के आम युवाओं की तरह अपनी ज़िन्दगियों और मौज मस्तियों मे मस्त हैं। इनकी मौज-मस्ती से भरी ज़िन्दगी में देशभक्ति इतिहास की किताबों मे वर्णित कहानियों से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। अपनी फिल्म के माध्यम से सू दुनिया को भारतीय क्रांतिकारियों के स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान की महानता को दर्शाना चाहती है।
कहानी मोड़ लेती है जब सोनिया के मंगेतर अजय का विमान गिर जाता है और उस हादसे में उसकी मौत हो जाती है। सरकार उस हादसे के लिये पाइलट अजय को ही जिम्मेदार मानती है। सोनिया और अजय के दोस्त इस बात को नहीं मानते। उनको पूरा यकीन था कि अजय ने कोई गलती नहीं की बल्कि उसने कई और लोगों की जान बचाने के लिये विमान को शहर में नहीं गिरने दिया। और अपनी तरफ से सच्चाई का पता लगाते हैं। फिल्म का अंत थोड़ा अलग है जिसमें अजय के दोस्तों को सच्चाई को सामने लाने के लिये भगत सिंह और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों वाले रास्ते का रुख करना होता है।
विवाद तथा समाज पर प्रभाव
संपादित करें- इस फिल्म के बार में मीडिया पर काफी चर्चा हुई और कहा जाता है कि भारतीय समाज पर इसकी अभूतपूर्व छाप पड़ी है[तथ्य वांछित]। फिल्म का उपशीर्षक है - अ जनरेशन अवेकन्स। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद से भारतीय युवाओं ने कई मोर्चों पर सार्थक प्रदर्शन किये। रंग दे बसंती की तरह इंडिया गेट पर मोमबत्ती जला के लोगों ने प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल के केसों में अदालत के फैसलों के खिलाफ मोर्चा निकाला और शायद स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार इस तरह से शांतिप्रिय जुलूस निकाल के उच्च न्यायालय को और सरकार को ये मुकदमे फिर से खोलने पर मजबूर कर दिया।[तथ्य वांछित]
- जानवरों के प्रति नर्मी बरतने की पक्षधर संसद सदस्या मेनका गाँधी की आपत्ति पर फिल्म से जानवरों के जुड़े दृश्य जैसा की उपरोक्त पोस्टर में दर्शित है सेंसर बोर्ड द्वारा हटा दिये थे।[2]
- चुंकि फिल्म रक्षा सेवा और मंत्रालय में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले पर केंद्रित थी अतः निर्माताओं ने इनके लिये फिल्म का खास प्रदर्शन भी रखा, शायद वे फिल्म के सेंसर की कैंची के पार जाने के प्रति आशंकित थे। यह जानकारी आम नहीं है कि इसका क्या नतीजा निकला।[3]
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करेंटीका-टिप्पणी
संपादित करें- ↑ "ऑस्कर के लिए जाएगी 'रंग दे बसंती'". बीबीसी हिंदी. 26 सितंबर 2006. मूल से 28 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 सितंबर 2006.
- ↑ "समाचार". रीडिफ. 16 जनवरी 2006. मूल से 1 नवंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्तूबर 2006.
- ↑ "सुपर सेंसर ने पास की फिल्म: अंग्रेज़ी समाचार". याहू. 11 जनवरी 2006. मूल से 20 फ़रवरी 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्तूबर 2006.