रक्तचाप

रक्तवाह का दबाव
(रक्तदाब से अनुप्रेषित)

रक्तचाप रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर द्वारा डाले गये दबाव को कहते हैं। धमनियां वह नलिका है जो पंप करने वाले हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकों और इंद्रियों तक ले जाते हैं। हृदय, रक्त को धमनियों में पंप करके धमनियों में रक्त प्रवाह को विनियमित करता है और इसपर लगने वाले दबाव को ही रक्तचाप कहते हैं। किसी व्यक्ति का रक्तचाप, सिस्टोलिक/डायास्टोलिक रक्तचाप के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे कि १२०/८० सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों में दाब को दर्शाती है। इसमें हृदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पंप करती हैं। डायालोस्टिक रक्त चाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है। रक्तचाप हमेशा उस समय अधिक होता है जब हृदय पंप कर रहा होता है बनिस्बत जब वह शिथिल होता है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और १२० मिलिमीटर के बीच होता है। सामान्य डायालोस्टिक रक्तचाप पारा के ६० से ८० मि.मि. के बीच होता है।[1] वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार सामान्य रक्तचाप १२०/८० होना चाहिए। रक्तचाप को मापने वाले यंत्र को रक्तचापमापी या स्फाइगनोमैनोमीटर कहते हैं।

रक्तचापमापी, रक्तचाप मापने के यंत्र को कहते हैं। ऊपर देखें एक मर्करी रक्तचापमापी

इतिहास

 
रक्तचाप

रक्तचाप की खोज एवं माप के विकास के इतिहास के कुछ महत्त्वपूर्ण चरण इस प्रकार से हैं[2]:

  • १७३३ - स्टीफेन हेल्स ने पहली बार रक्तचाप घोड़ों में नापा।
  • १८८६ - रिवा-रोकी ने न्यूमेटिक-कॉफ का अविष्कार किया।
  • १८९६ - क्लिफोर्ड एबट ने रक्तचाप में गुर्दे की भूमिका का जायजा लिया।
  • १९०५ - रुस के कोरोटकोफ ने उस आवाज का वर्णन किया, जिसे रक्तचाप के नापने में सुनते हैं।
  • १९०४ - एमबॉड ने क्लोराइड आयन की भूमिका के बारे में बताया।
  • १९६३ - लॉराग ने रेनिन की भूमिका बताई।
  • १९७३ - अमेरिका में नेशनल हाई बल्ड-प्रेशर एडुकेशन प्रोग्राम ने स्टेपड केयर चिकित्सा को शुरु किया, यह जे.एन.सी (ज्वाईंट नेशनल कमिटी) का शुरुवाती दौर था।
  • १९८० - वॉडनर ने सोडियम आयन की भूमिका स्पष्ट की और इसका संबंध रक्तचाप से जोड़ा।
  • १९८३ - कापलन ने रक्तचाप को परिभाषित किया।
  • १९८८ - जे.एन.सी (४) जारी हुआ। पूरी दुनिया में यह रिपोर्ट रक्तचाप के लिए आथिरीटी मानी गयी।
  • १९९३ - जे.एन.सी (५) जारी हुआ।
  • १९९७ - जे.एन.सी (६) जारी हुआ।
  • २००३ - जे.एन.सी (७) जारी हुआ।

निम्न रक्तचाप

 
डिजिटल रक्तचापमापी

निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन) वह दाब है जिससे धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते हैं। जब रक्त का प्रवाह कफी कम होता हो तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में ऑक्सीजन और पौष्टिक पदार्थ नहीं पहुंच पाते जिससे ये इंद्रियां सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती और इससे यह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है। उच्च रक्तचाप के विपरीत, निम्न रक्तचाप की पहचान मूलतः लक्षण और संकेत से होती है, न कि विशिष्ट दाब संख्या के। किसी-किसी का रक्तचाप ९०/५० होता है लेकिन उसमें निम्न रक्त चाप के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं और इसलिए उन्हें निम्न रक्तचाप नहीं होता तथापि ऐसे व्यक्तियों में जिनका रक्तचाप उच्च है और उनका रक्तचाप यदि १००/६० तक गिर जाता है तो उनमें निम्न रक्तचाप के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

यदि किसी को निम्न रक्तचाप के कारण चक्कर आता हो या मितली आती हो या खड़े होने पर बेहोश होकर गिर पड़ता हो तो उसे आर्थोस्टेटिक उच्च रक्तचाप कहते हैं। खड़े होने पर निम्न दाब के कारण होने वाले प्रभाव को सामान्य व्यक्ति शीघ्र ही काबू में कर लेता है। लेकिन जब पर्याप्त रक्तचाप के कारण चक्रीय धमनी में रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति को सीने में दर्द हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है। जब गुर्दों में अपर्याप्त मात्रा में खून की आपूर्ति होती है तो गुर्दे शरीर से यूरिया और क्रिएटाइन जैसे अपशिष्टों को निकाल नहीं पाते जिससे रक्त में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है।

 
स्टेथोस्कोप सहित एक अएनेरॉयड स्फाइगनोमैनोमीटर
चक्रीय धमनी

कोरोनरी आर्टेरी यानि वह धमनी जो हृदय के मांस पेशियों को रक्त की आपूर्ति करती है।

आघात

यह एक ऐसी स्थिति है जिससे जीवन को खतरा हो सकता है। निम्न रक्तचाप की स्थिति में गुर्दे, हृदय, फेफड़े तथा मस्तिष्क तेजी से खराब होने लगते हैं।

उच्च रक्तचाप

१३०/८० से ऊपर का रक्तचाप, उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहलाता है। इसका अर्थ है कि धमनियों में उच्च चाप (तनाव) है। उच्च रक्तचाप का अर्थ यह नहीं है कि अत्यधिक भावनात्मक तनाव हो। भावनात्मक तनाव व दबाव अस्थायी तौर पर रक्त के दाब को बढ़ा देते हैं। सामान्यतः रक्तचाप १२०/८० से कम होनी चाहिए और १२०/८० तथा १३९/८९ के बीच का रक्त का दबाव पूर्व उच्च रक्तचाप (प्री हाइपरटेंशन) कहलाता है और १४०/९० या उससे अधिक का रक्तचाप उच्च समझा जाता है। उच्च रक्तचाप से हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, धमनियों का सख्त हो जाने, आंखे खराब होने और मस्तिष्क खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है। है। युवाओं में ब्लड प्रेशर की समस्या का मुख्य कारण उनकी अनियमित जीवन शैली और गलत खान-पान होते हैं।[3] यदि चक्कर आयें, सिर दर्द हो, साँस में तक़लीफ़ हो, नींद न आए, शीथीलता रहे, कम मेहनत करने पर सांस फूले और नाक से खून गिरे इत्यादि तो चिकित्सक से जांच करायें, संभव है ये उच्च रक्तचाप के कारण हो।[3] उच्च रक्ततचाप के कारणों में:

  • चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, भय आदि मानसिक विकार
  • कई बार, बार-बार या आवश्यकता से अधिक खाना।
  • मैदा से बने खाद्य, चीनी, मसाले, तेल-घी अचार, मिठाईयां, मांस, चाय, सिगरेट व शराब आदि का सेवन।
  • नियमित खाने में रेशे, कच्चे फल और सलाद आदि का अभाव।
  • श्रमहीन जीवन, व्यायाम का अभाव।
  • पेट और पेशाब संबंधी पुरानी बीमारी।

उच्च रक्त चाप का निदान महत्वपूर्ण है जिससे रक्त चाप को सामान्य करके जटिलताओं को रोकने का प्रयास संभव हो। फार्मैकोॉजी विभाग, कोलोन विश्वविद्यालय, जर्मनी में हुई एक शोध के अनुसार चॉकलेट खाने और काली व हरी चाय पीने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।[4][5] कनाडा के शोधकर्त्ता रॉस डी.फेल्डमैन के अनुसार उच्च रक्तचाप के रोगियों की विशेष देखभाल और जांच की जरूरत होती है, इससे दिल के दौरे की आशंका एक-चथाई कम हो सकती है वहीं मस्तिष्काघात की भी सम्भावना ४० प्रतिशत कम हो सकती है।[6]

वर्गीकरण

जे एन सी, सात-२००३ के अनुसार रक्तचाप का निम्न वर्गीकरण, १८ वर्ष से अधिक वयस्कों हेतु बताया जाता है।[2] यह कार्यालय में बैठे हुए लोगों की सही तरीके से ली गयी रक्तचाप रीडिंग्स पर आधारित औसत है।[7][8]

व्यस्कों हेतु रक्तचाप वर्गीकरण
श्रेणी सिस्टोलिक, मिली मर्करी डायस्टोलिक, mmHg
हायपोटेंशन
< ९०
< ६०   
सामान्य
 ९० – ११९
६० – ७९   
प्रीहायपरटेंशन
१२० – १३९
८० – ८९  
स्तर १ हाइपरटेंशन
१४० – १५९
९० – ९९  
स्तर २ हाइपरटेंशन
≥ १६०
≥ १००  

जांच के नियम

चिकित्सक के पास जांच हेतु पहुंचने के बाद कम-से-कम पांच मिनट के लिए आराम करने के बाद ही अपना रक्तदाब दिखाएं। लंबा चलने के बाद, सीढ़ियां चढ़ने, दौड़ने-भागने के तुरंत बाद जांच कराने पर रक्तदाब बढ़ा हुआ आता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि जांच के समय कुर्सी पर आराम से बैठें हों व पैर जमीन पर रखें हों, तथा बांह और रक्तदाब मापक-यंत्र हृदय जितनी ऊंचाई पर होना चाहिए।[9]

जांच के आधा घंटा पहले से चाय, कॉफी, कोला ड्रिंक और धूम्रपान नहीं पीना चाहिये। इनके सेवन से रक्तदाब अगले १५ से २० मिनट के लिए बढ़ जाता है। रक्तदाब मापक-यंत्र के बांह पर बांधे जानेवाले कफ की चौड़ाई बांह की मोटाई के अनुसार होनी चाहिए। कफ इतना चौड़ा हो कि बांह का लगभग तीन-चौथाई घेरा उसमें आ जाए। बांह मोटी होने पर साधारण कफ से रक्तदाब लेने पर ब्लड प्रेशर की रीडिंग बढ़ी हुई होगी। यदि बांह पतली और कफ बड़ा है तो ठीक उलट होगा, रक्तदाब कम नपेगा। रक्तचाप मापने के लिए हमेशा जांचा-परखा यंत्र ही प्रयोग में लाएं।[9]

किससे और कैसे नपवाएं

 
एक डॉक्टर का व्हाइट कोट

कई बार रक्तचाप दो जगह नापा जाएं तो अंतर मिलता है, यहां तक कि नर्स द्वारा नापा गया तो कम आता है और डाक्टर द्वारा नापा गया अधिक। कई बार कार्यालय में रक्तचाप नापा जाए तो अधिक आता है और घर में कम, इसे ह्वाईट कोट हाईपरटेंशन कहते हैं। इस तरह के बढ़े रक्तचाप का उपचार करने की अत्यावश्यकता नहीं होती है। यदि रक्तचाप मापक यंत्र (स्फीगमोमैनोमीटर) के बाँह में लगाने वाले कफ की चौड़ाई कम हो, उसे धीरे-धीरे या बहुत तेजी से फुलाया जाए तो रक्तचाप अधिक आएगा। बाँह में बाँधी गयी पट्टी को हॄदय के स्तर पर न रखा जाए तो रक्तचाप गलत आयेगा। इस तरह के कई और भी कारण हो सकतें है जिनका यदि विशेष ध्यान न रखा जाये तो रक्तचाप गलत आएगा। मरकरी के जो मापक-यंत्र हैं वे इलेक्ट्रानिक यंत्रों से ज्यादा सही रीडिंग देते हैं। इन सब कारकों के चलते यह आवश्यक है कि यदि एक बार रक्तचाप बढ़ा हुआ आता है तो तुरंत दवा शुरु न की जाए। कम से कम तीन बार कुछ दिनों के अंतराल पर रक्तचाप नापा जाए। यदि कई रीडिंग का औसत बढ़ा हो तो ही चिकित्सा शुरु होनी चाहिए। यदि रोगी भारी चिन्ता में हों तो थोड़ी देर के लिए रक्तचाप बढ़ जाएगा। पर्याप्त व्यायाम के बाद भी रक्तचाप बढ़ा मिलेगा। यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका उपचार नहीं किया जाता। जहाँ दुविधा हो, वहां नयी तकनीक एम्बुलेटरी ब्लड प्रेशर मानिटरिंग द्वारा सही स्थिति का जायजा लिया जाता है।[2]

कुछ बढ़ने पर

कभी रक्तचाप थोड़ा बढ़ा हो, जैसे (१४६/९६) तो तुरंत दवा लेनी नहीं चाहिये। इससे पूर्व कुछ समय तक अपनी जीवन-शैली में बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिये। इसका असर ३ महीने में दिखाई देगा। इसके लिये प्रथम तो भोजन में सोडियम की मात्रा कम करनी चाहिये, सामान्यतः १० ग्राम नमक लोग एक दिन में खाते हैं। इसे कम करके ३ ग्राम तक लाना चाहिये। नमकीन चीजें जैसे दालमोठ, अचार, पापड़ का पूर्णतः परहेज करें। शरीर में ज्यादा सोडियम होने से पानी का जमाव होता है जिससे रक्त का आयतन बढ़ जाता है जिसके कारण रक्तचाप बढ़ जाता है। भोजन में पोटाशियम युक्त चीजें बढ़ाएं, जैसे ताजे फल, डाब का पानी आदि। डिब्बे में बंद सामाग्री का प्रयोग बंद कर दें। भोजन में कैलशियम (जैसे दूध में) और मैगनिशियम की मात्रा संतुलित करनी चाहिये। रेशेयुक्त पदार्थों को खूब खायें, जैसे फलों के छिलके, साग/चोकर युक्त आटा/इसबगोल आदि। संतृप्त वसा (मांस/वनस्पति घी) की मात्रा कम करनी चाहिये।

इसके साथ ही नियमित व्यायाम करना चाहिये। खूब तेज लगातार ३० मिनट पैदल चलना सर्वोंत्तम व्यायाम है। योग/ध्यान/प्राणायाम रोज करना चाहिये। यदि धूम्रपान करते हों तो पूरा बंद कर दें, वजन संतुलित करनी चाहिये और मदिरापान करते हों तो एक पैग से ज्यादा न पीयें।


अन्य प्राणियों का रक्तदाब

अन्य गैर-मानव स्ताधारी प्राणियों में रक्तचाप मानव के रक्तचाप जैसा ही है। किन्तु उनके हृदय की धड़कन की गति मानव के हृदय गति से बहुत अलग हो सकती है (बड़े प्राणियों की हृदयगति अपेक्षाक्र्त धीमी होती है।).[10] मनुष्य की ही तरह अन्य प्राणियों का रक्तचाप आयु, लिंग, दिन के पहर, और स्थ्तियों के अनुसार बालग-अलग होता है। [11][12] चूहों, कुत्तों और खरगोश पर अनेकानेक प्रयोग करके उच्च रक्तचाप के कारणों को जानने का प्रयत्न किया गया है।[13]

विभिन्न स्तनधारियों का रक्तचाप और हृदयगति ( [11] से परिवर्तित)
प्रजाति रक्तचाप
mm Hg में
हृदय की धड़कन
प्रति मिनट
Systolic Diastolic
बछड़े 140 70 75–146
बिल्ली 155 68 100–259
कुत्ते 161 51 62–170
बकरी 140 90 80–120
गिनिया-सूअर 140 90 240–300
Mice 120 75 580–680
सूअर 169 55 74–116
खरगोश 118 67 205–306
चूहे 153 51 305–500
Rhesus बन्दर 160 125 180–210
भेड़ 140 80 63–210

देखें

सन्दर्भ

  1. रक्तचाप Archived 2016-03-05 at the वेबैक मशीन(हिन्दी)। इंडियाजी
  2. मधुमेह और उच्च रक्तचाप[मृत कड़ियाँ]। डी.एच.आर.सी.इण्डिया
  3. उच्च रक्तचाप|२१ जुलाई, २००८|सुश’स वेबलॉग
  4. चाकलेट खाओ, उच्च रक्तचाप दूर भगाओ(हिन्दी)। मेरा पन्ना
  5. इफ़ेक्टऑफ़ कोको एंड टी इन्टेक ऑन ब्लड प्रेशर। शोध परिणाम। इंटर्नल मेडिसिन।(अंग्रेज़ी)
  6. उच्च रक्तचाप में कम दवा अधिक फायदेमंद[मृत कड़ियाँ](हिन्दी)। जोश १८।२० मार्च, २००९। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
  7. चोबेनियन एवी, बैक्रिस जीएल, ब्लैक एचआर; एवं अन्य (२००३). "सेवंथ रिपोर्ट ऑफ द जाइंट नेशनल कमेटी ऑन प्रिवेन्शन, डेटेक्शन, इवैल्युएशन एण्ड ट्रीटमेंट ऑफ हाई ब्लड प्रेशन". हाइपर्टेंशन. ४२ (षष्टम): १२०६–५२. PMID 14656957. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0194-911X. डीओआइ:10.1161/01.HYP.0000107251.49515.c2. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  8. "डिज़ीज़ेज़ एण्ड कंडीशंस इंडेक्स - हायपोटेंशन". नेशनल हार्ट लंग एण्ड ब्लड संस्थान. २००८. अभिगमन तिथि १६ सितंबर. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  9. ब्लडप्रेशर की जांच Archived 2015-06-03 at the वेबैक मशीन। डॉ॰ यतीश अग्रवाल
  10. Prothero JW (2015-10-22). The design of mammals : a scaling approach. Cambridge. OCLC 907295832. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781107110472.
  11. Gross DR (2009). Animal models in cardiovascular research (3rd संस्करण). Dordrecht: Springer. पपृ॰ 5. OCLC 432709394. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780387959627.
  12. Brown S, Atkins C, Bagley R, Carr A, Cowgill L, Davidson M, Egner B, Elliott J, Henik R, Labato M, Littman M, Polzin D, Ross L, Snyder P, Stepien R (2007). "Guidelines for the identification, evaluation, and management of systemic hypertension in dogs and cats". Journal of Veterinary Internal Medicine. 21 (3): 542–58. PMID 17552466. डीओआइ:10.1111/j.1939-1676.2007.tb03005.x.
  13. Lerman LO, Chade AR, Sica V, Napoli C (September 2005). "Animal models of hypertension: an overview". The Journal of Laboratory and Clinical Medicine. 146 (3): 160–73. PMID 16131455. डीओआइ:10.1016/j.lab.2005.05.005.

बाहरी कड़ियाँ