नाईक रामाजी राव किरवा मराठा साम्राज्य मे रतनगढ़ किले के सुबेदार थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किरवा ने सुबेदार रामजी भांगरे से प्रेरणा लेकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। उनका जन्म महाराष्ट्र के एक कोली परिवार में हुआ था।[1]

सुबेदार सरदार रामाजी राव किरवा
विकल्पीय नाम: वंडकरी
मृत्यु - तिथि: अहमदनगर
मृत्यु - स्थान: १८३२
आंदोलन: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
धर्म: हिन्दू कोली
प्रभाव रामजी भांगरे
प्रभावित किया राघोजी भांगरे

१८१८ मे जब ब्रिटिश सरकार ने मराठा साम्राज्य अंत किया तो उस समय ब्रिटिश सरकार को महाराष्ट्र मे जगह जगह विद्रोह का सामना करना पड़ा जिनमें से एक विद्रोह किरवा के नेतृत्व मे पनप रहा था। किरवा ने कोली लोगों का एक क्रांतिकारी समूह बनाया और ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी बाद मे भील के लोग भी उनके साथ मिल गए।

महाराष्ट्र मे मराठा साम्राज्य खत्म होने के पश्चित अंग्रेजों ने अपने राज स्थापित किया जिसके चलते महाराष्ट्र में जगह जगह विद्रोह हुए जिनमें से रामजी भांगरे के विद्रोह से प्रभावित होकर किरवा ने भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिए। किरवा भांगरे के साथ मिल गया और ब्रिटिश अधीन क्षेत्रों मे काफी व्यापक विद्रोह किया। किरवा ने सरकार के कधीन गांवो पर हमला करना सुरु कर दिया।[2]

१८३० मे किरवा को कोली क्रांतिकारीयों के साथ-साथ भील जाती के लोगों ने भी जोइन किया। कुछ समय बाद एक मुठभेड़ के दौरान सरकार ने किरवा के कुछ साथीयों को पकड़ लिया लेकिन किरवा को नही पकड़ पाए।[3][4]

जुलाई १८३० मे किरवा के साथ ओर कुछ लोग जुड़े और पश्चिमी घाट मे सरकारी की काफी नुकसान हुआ। किरवा ने सरकार अधीन क्षैत्रो को लुटा एवं अहमदनगर, ठाणे और पुणे मे सरकारी दफ्तर और कार्यायल पर कबजा कर लिया।[5] ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन ल्युकिन के नेतृत्व मे १७वी रेजीमेंट , लैफ्टेनेंट ल्योड के नेतृत्व में ११वी रेजीमेंट और लैफ्टेनेंट फोर्ब्स के नेतृत्व में १३वी रेजीमेंट किरवा के विद्रोह को दफन करने के लिए भेजी लेकिन किरवा ने सरकार को चकमा दे दिया।[3] सरकारी अधिकारी ने किरवा से समझौता करना चहा जिसके बदले किरवा मुंह मागी रकम और ज़मीन जायदाद पा सकता था लेकिन किरवा ने इंकार कर दिया।[6]

सरकार ने विद्रोहीयो के बारे मे जानकारी जुटानी सुरू कर दी। सुरू आंत मे तो किसी से कोई भी जानकारी नही मिली लेकिन बाद मे महाराष्ट्र मे कोंकण के चीतपावन ब्राह्मणों ने अंग्रेजों का पूरा साथ दिया। १८३३ मे ब्रिटिश सरकार ने पूरी ताकत के साथ किरवा और अन्य क्रांतिकारीयों पर एक सफल हमला किया। इस दौरान क्रांतिकारीयों और अंग्रेजों के बीच काफी समय तक लड़ाई वाजी जीसमे किरवा और उकसे साथीयों को बंदी बना लिया गया। ज्यादातर बाघीयों को पूणे और ठाने ले जाया गया लेकिन रामा किरवा और अन्य मुख्य साथीयों को अहमदनगर ले गए जहां उन्हें दोषी करार देते हुए फांसी की सज़ा सुनाई गई।[3][4][7]

  1. Divekar, V. D. (1993). South India in 1857 War of Independence (अंग्रेज़ी में). Lokmanya Tilak Smarak Trust. मूल से 4 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2020.
  2. Rao, Neena Ambre (2008). Forest Ecology in India: Colonial Maharashtra, 1850-1950 (अंग्रेज़ी में). Foundation Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7596-549-2.
  3. Hassan, Syed Siraj ul (1989). The Castes and Tribes of H.E.H. the Nizam's Dominions (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-206-0488-9. मूल से 31 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2020.
  4. State), Bombay (India : (1884). Gazetteer of the Bombay Presidency ... (अंग्रेज़ी में). Printed at the Government Central Press.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  5. Kolhe, R. B.; Sciences, Tiḷaka Mahārāṣṭra Vidyāpīṭha Nehru Institute of Social (2001). Poverty and violence in Maharashtra: with special reference to Nanded and Thane Districts (अंग्रेज़ी में). Nehru Institute of Social Sciences, Tilak Maharashtra Vidyapeeth.
  6. State), Bombay (India : (1882). Gazetteer of the Bombay Presidency (अंग्रेज़ी में). Government Central Press.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  7. Mishra, Jai Prakash (1991). Aspects of Indian History: Professor Ram Mohan Sinha commemoration volume (अंग्रेज़ी में). Agam Kala Prakashan.