रोहू मछली
रोहू (वैज्ञानिक नाम - Labeo rohita)[2] पृष्ठवंशी हड्डीयुक्त मछली है जो ताजे मीठे जल में पाई जाती है। इसका शरीर नाव के आकार का होता है जिससे इसे जल में तैरने में आसानी होती है। इसके शरीर में दो तरह के मीन-पक्ष (फ़िन) पाये जाते हैं, जिसमें कुछ जोड़े में होते हैं तथा कुछ अकेले होते हैं। इनके मीन पक्षों के नाम पेक्टोरेल फिन, पेल्विक फिन, (जोड़े में), पृष्ठ फिन, एनलपख तथा पुच्छ पंख (एकल) हैं। इनका शरीर साइक्लोइड शल्कों से ढँका रहता है लेकिन सिर पर शल्क नहीं होते हैं। सिर के पिछले भाग के दोंनो तरफ गलफड़ होते हें जो ढक्कन या अपरकुलम द्वारा ढके रहते हैं। गलफड़ों में गिल्स स्थित होते हैं जो इसका श्वसन अंग हैं। ढक्कन के पीछे से पूँछ तक एक स्पष्ट पार्श्वीय रेखा होती है। पीठ के तरफ का हिस्सा काला या हरा होता है और पेट की तरफ का सफेद। इसका सिर तिकोना होता है तथा सिर के नीचे मुँह होता है। इसका अंतः कंकाल हड्डियों का बना होता है। आहारनाल के ऊपर वाताशय अवस्थित रहता है। यह तैरने तथा श्वसन में सहायता करता है।
रोहू मछली | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Animalia |
संघ: | Chordata |
उपसंघ: | Vertebrata |
अधिवर्ग: | Osteichthyes |
वर्ग: | Actinopterygii |
गण: | Cypriniformes |
कुल: | Cyprinidae |
वंश: | Labeo |
जाति: | Labeo rohita |
द्विपद नाम | |
Labeo rohita F. Hamilton, 1822 | |
पर्यायवाची | |
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भोजन के रूप में इसका विशेष महत्व है। भारत में ओड़िशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा असम के अतिरिक्त थाइलैंड, पाकिस्तान और बांग्लादेश के निवासियों में यह सर्वाधिक स्वादिष्ट व्यंजनों में से एक समझी जाती है। ओड़िया और बंगाली भोजन में इसके अंडों को तलकर भोजन के प्रारंभ में परोसा जाता है तथा परवल में भरकर स्वादिष्ट व्यंजन दोलमा तैयार किया जाता है, जो अतिथिसत्कार का एक विशेष अंग हैं। बंगाल में इससे अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं। इसे सरसों के तेल में तल कर परोसा जाता है, कलिया बनाया जाता है जिसमें इसे सुगंधित गाढ़े शोरबे में पकाते हैं तथा इमली और सरसों की चटपटी चटनी के साथ भी इसे पकाया जाता है। पंजाब के लाहौरी व्यंजनों में इसे पकौड़े की तरह तल कर विशेष रूप से तैयार किया जाता है। इसी प्रकार उड़ीसा के व्यंजन माचा-भाजी में रोहू मछली का विशेष महत्व है। ईराक में भी यह मछली भोजन के रूप में बहुत पसंद की जाती है। रोहू मछली शाकाहारी होती है तथा तेज़ी से बढ़ती है इस कारण इसे भारत में मत्स्य उत्पादन के लिए तीन सर्वश्रेष्ठ मछलियों[क] में से एक माना गया है।[3]
सन्दर्भ
- ↑ Dahanukar, N. (2010). "Labeo rohita". 2010: e.T166619A6248771. डीओआइ:10.2305/IUCN.UK.2010-4.RLTS.T166619A6248771.en. Cite journal requires
|journal=
(मदद) - ↑ Khan, H.A. and V.G. Jhingran (1975) Synopsis of biological data on rohu Labeo rohita (Hamilton, 1822)., FAO Fish. Synop. (111):100 p.
- ↑ "कृत्रिम साधनों से मत्स्य बीज उत्पादन". मत्स्य विभाग उत्तर प्रदेश. मूल (एचटीएम) से 10 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २१ अप्रैल २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
क. ^ अन्य दो मछलियाँ हैं- कतला और नैन जिसे मृगल भी कहते हैं।