वसुधा
लड़की को कभी किसी ने अपना न समझा.
वो रही हमेशा बेगानी है।.
सदियो से एक ही किस्मत पायी उसने
लड़की की बस यही कहानी है।।
कोई ठिकाना बना नही,
मुसाफिर जैसी रहती हैं,
सपना उसका कोई नही,
दूसरे के सपनो को अपना कहती है
लड़की खुद के असित्तव से आज भी अंजानी है,
लड़की की बस यही कहानी है।।
लड़की के आखिर क्यो सपने तोड़े जाते हैं,
जहां उसने जन्म लिया,
वो रास्ते क्यो छोड़े जाते हैं
उसके पैदा होने से लोगो के
मन क्यो घबराते हैं ,
फिर क्यो कोख मै दी जाती उसकी र्कुबानी है,
लड़की की बस यही कहानी हैं।।
उसके सपने कब बिखर जाए
अपने कब पराए बन जाए
क्यों उसके हर सपने को दी जाती कुर्बानी है
लड़की की बस यही कहानी है।।।
सामाजिक लेखिका
सम्पादन एवं प्रकाशन
संपादित करें'वसुधा' का मासिक रूप में प्रकाशन सन् 1956 में शुरू हुआ। इसके संस्थापक संपादक थे हरिशंकर परसाई। वे अपने कुछ मित्रों के सहयोग से इसका संपादन करते थे। दो वर्ष एवं कुछ महीने बाद इसका प्रकाशन स्थगित हो गया। फिर करीब तीन दशक बाद नवें दशक में इसकी दूसरी आवृत्ति हुई। मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष के नाते परसाई जी प्रधान संपादक हुए और उन्होंने एक टीम तैयार की। इस पत्रिका के संपादन हेतु प्रगतिशील लेखक संघ के आंतरिक निर्णय के अनुसार टीम बदलती रही है।[1] कमला प्रसाद जी के प्रधान संपादकत्व में यह पत्रिका लंबे समय तक त्रैमासिक रूप में प्रकाशित होती रही है। इसका प्रकाशन मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से होता रहा है। पत्रिका के प्रकाशन की द्वितीय आवृत्ति में अंक-62 तक तो इसका नाम 'वसुधा' ही रहा, लेकिन अंक-63 से नये रूपाकार में इसका प्रकाशन आरंभ हुआ और इसका नाम 'प्रगतिशील वसुधा' हो गया।[2] अंकों की गिनती तो क्रमशः ही रही, लेकिन पत्रिका की पहचान को भिन्नता भी मिली। अर्थात् अंक-63 का प्रकाशन जनवरी 2005, वर्ष-1, अंक-1 के रूप में हुआ। हालांकि इस अंक में वर्ष एवं अंक संख्या का उल्लेख नहीं किया गया था, परंतु अंक-64, मार्च 2005 में प्रमुखता से वर्ष-1, अंक-2 उल्लिखित था।[3]
प्रधान संपादक कमला प्रसाद के अतिरिक्त लम्बे समय तक इसके संपादक रहे हैं स्वयं प्रकाश एवं राजेन्द्र शर्मा। कमला प्रसाद जी प्रधान संपादक नियुक्त होने के समय से आजीवन वसुधा के लिए प्राणपन से जुड़े रहे। इसका संपादकीय कार्यालय भी उनका आवास 'एम 31, निराला नगर' ही था। अंक-87 तक के संपादन के बाद 25 मार्च 2011 को उनका निधन हो जाने के कारण अंक-88 से संपादन का दायित्व स्वयं प्रकाश एवं राजेन्द्र शर्मा के द्वारा ही सँभाला गया। अब इसका कार्यालय 'मायाराम सुरजन स्मृति भवन, शास्त्री नगर, पी॰ एण्ड टी॰ चौराहा, भोपाल-3' में आ गया।[4] अंक-95 के बाद स्वयं प्रकाश जी भी इसके संपादन से हट गये तथा अंक-96 (जनवरी-जून 2015) का प्रकाशन भिन्न रूप में केवल राजेन्द्र शर्मा के संपादन में हुआ। अंक-95 तक 'प्रगतिशील वसुधा' के मुख पृष्ठ पर एक टैगलाइन 'प्रगतिशील लेखक संघ का प्रकाशन' के रूप में जाती रही। अंक 96 से यह 'मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का प्रकाशन' के रूप में बदल गयी। इस अंक में घोषणा की गयी कि आगामी 4 अंकों तक ही इस रूप में इसका प्रकाशन होगा। "इस बीच प्रगतिशील वसुधा के लिए सर्वथा नई सम्पादकीय और व्यवस्थापकीय टीम का गठन करने के प्रयास किये जायेंगे, तब हरिशंकर परसाई और अब कमला प्रसाद द्वारा स्थापित 'वसुधा' की यह तीसरी आवृत्ति होगी।"[5]
प्रमुख विशेषांक
संपादित करेंसमृद्ध तथा स्तरीय विशेषांक निकालने के क्षेत्र में 'वसुधा' अग्रणी पत्रिका रही है। हालांकि 'प्रगतिशील वसुधा' के रूप में इसके सामान्य अंकों को भी विशेषांकों की तरह, बल्कि उससे कहीं बढ़कर भी, माना जाता रहा है; फिर भी अनेकानेक विशेषांकों के द्वारा इस पत्रिका ने कीर्तिमानों का एक मानदंड कायम कर दिया है।
'वसुधा' के अंक-51 के रूप में डॉ॰ रामविलास शर्मा पर केंद्रित विशेषांक का प्रकाशन हुआ, जो अत्यधिक चर्चित रहा। इससे पहले भी "पत्रिका के कई विशेषांक चर्चा में रहे हैं। मसलन-- रामचन्द्र शुक्ल, राहुल, समकालीन कहानी, हरिशंकर परसाई.."[1] आदि।
'वसुधा' के प्रमुख विशेषांक
संपादित करें- रामविलास शर्मा विशेषांक (अंक-51, जुलाई-सितंबर 2001), संपादक- विश्वनाथ त्रिपाठी, अरुण प्रकाश (पुस्तक रूप में 'हिन्दी के प्रहरी : डॉ॰ रामविलास शर्मा' नाम से वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित)
- नामवर सिंह विशेषांक (अंक-54, अप्रैल-जून 2002) संपादक- कमला प्रसाद, सुधीर रंजन सिंह, राजेंद्र शर्मा (पुस्तक रूप में 'नामवर सिंह : आलोचना की दूसरी परंपरा' नाम से वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित)
- दलित साहित्य विशेषांक (अंक-58, जुलाई-सितंबर 2003) अतिथि संपादक- पुन्नी सिंह (पुस्तक रूप में 'भारतीय दलित साहित्य : परिप्रेक्ष्य' नाम से वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित)
- स्त्री : मुक्ति का सपना (संयुक्तांक 59-60, अक्टूबर 2003 - मार्च 2004) अतिथि संपादक- अरविन्द जैन, लीलाधर मंडलोई (पुस्तक रूप में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित)
'प्रगतिशील वसुधा' के विशेषांक
संपादित करें- सज्जाद ज़हीर विशेषांक (अंक-67, अक्टूबर-दिसंबर 2005) अतिथि संपादक- शक़ील सिद्दीक़ी (पुस्तक रूप में 'सज्जाद ज़हीर : आदमी और अदीब' नाम से साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
- समकालीन मराठी साहित्य विशेषांक (अंक-71, अक्टूबर-दिसंबर 2006) अतिथि संपादक- चन्द्रकान्त पाटील (पुस्तक रूप में 'समकालीन मराठी साहित्य : गति-प्रगति' नाम से साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
- समकालीन जम्मू-कश्मीर की सृजन अभिव्यक्ति (अंक-74, जुलाई-सितंबर 2007) अतिथि संपादक- अग्निशेखर (पुस्तक रूप में 'समकालीन जम्मू-कश्मीर का साहित्य : गति-प्रगति' नाम से साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
- '1857 : प्रथम स्वाधीनता संग्राम के 150 वर्ष पर केंद्रित विशेषांक (अंक-76, जनवरी-मार्च 2008) अतिथि संपादक- अरुण कुमार (पुस्तक रूप में 'महासंग्राम गाथा' नाम से दो भागों में साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
- समकालीन कहानी विशेषांक, खंड-1 एवं 2 (अंक-79 एवं 80, अक्टूबर-दिसंबर 2008 एवं जनवरी-मार्च 2009) अतिथि संपादक- जयनन्दन (पुस्तक रूप में 'समकालीन युवा कहानी : गति-प्रगति' नाम से दो भागों में साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
- हिंदी सिनेमा : बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक (1931 से 2009) (अंक-81, अप्रैल-जून 2009) अतिथि संपादक- प्रहलाद अग्रवाल (पुस्तक रूप में उक्त नाम से ही साहित्य भंडार, 50 चाहचंद, इलाहाबाद से प्रकाशित)
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ नामवर सिंह : आलोचना की दूसरी परम्परा, सं॰- कमला प्रसाद, सुधीर रंजन सिंह, राजेन्द्र शर्मा, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2012, अंतिम आवरण फ्लैप पर उल्लिखित।
- ↑ प्रगतिशील वसुधा, अंक-63, जनवरी 2005, संपादक- कमला प्रसाद, स्वयं प्रकाश एवं राजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ-6.
- ↑ प्रगतिशील वसुधा, अंक-64, मार्च 2005, संपादक- कमला प्रसाद, स्वयं प्रकाश एवं राजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ-1.
- ↑ प्रगतिशील वसुधा, अंक-88, जुलाई-सितंबर 2011, संपादक- स्वयं प्रकाश एवं राजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ-5.
- ↑ प्रगतिशील वसुधा, अंक-96, जनवरी-जून 2015, संपादक- राजेन्द्र शर्मा, पृष्ठ-6.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें