प्रहलाद अग्रवाल

हिन्दी सिनेमा के लब्धप्रतिष्ठ समालोचक

प्रहलाद अग्रवाल (1947 से वर्तमान) हिन्दी सिनेमा के सन्दर्भ में हिन्दी माध्यम से स्तरीय एवं व्यवस्थित लेखन करने वालों में अग्रगण्य हैं।

प्रहलाद अग्रवाल
जन्म20 मई, 1947
जबलपुर,
मध्य प्रदेश
मौत1
पेशासतना
भाषाहिन्दी
राष्ट्रीयताभारतीय
कालआधुनिक
विधासमालोचना
विषयआलोचना, सिनेमा-समीक्षा
उल्लेखनीय कामsआधी हकीकत आधा फसाना, प्यासा..., ओ रे माँझी...

जीवन-परिचय संपादित करें

प्रहलाद अग्रवाल का जन्म जबलपुर (मध्य प्रदेश) में 20 मई 1947 ईस्वी को हुआ था। हिन्दी विषय से उन्होंने एम ए तक की शिक्षा प्राप्त की।[1] आरंभ से ही उन्हें फिल्म एवं फिल्मों से संबंधित व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से जानने की उत्कंठा रही है। बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को अपने विशिष्ट अध्ययन एवं लेखन का केन्द्रबिन्दु बनाया।

राज कपूर निर्मित फिल्म आवारा से बेहद प्रभावित प्रहलाद अग्रवाल स्वयं को 'आवारामिजाज' कहते हैं। वे यायावर प्रकृति के भी रहे हैं। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने अनेक कार्य किये। बाद में सतना में शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक हो गये।[2] 35 वर्षों तक अध्यापन के बाद अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं।[3]

लेखन कार्य संपादित करें

संगीत, साहित्य और सिनेमा में प्रहलाद अग्रवाल की गहरी दिलचस्पी रही है। आरंभ में उन्होंने आलोचना एवं कथा के क्षेत्र में हाथ आजमाये और इसके परिणामस्वरूप उनकी दो पुस्तकें 'हिन्दी कहानी : सातवाँ दशक' तथा 'तानाशाह' (उपन्यास) सामने आयीं। सिनेमा पर उनका पहला आलेख 1978 ईस्वी में प्रकाशित हुआ, जो कि 'विश्वनाथ' फिल्म पर केन्द्रित था और जिसका शीर्षक था 'विश्वनाथ बाबू, आप मुकद्दमा हार गए हैं'। इस आलेख के प्रकाशन के बाद पत्रिका के संपादक ने लेखक से प्रकाशनार्थ लगातार सामग्री भेजते रहने का आग्रह किया[4] और इस तरह अग्रवाल जी ने स्वयं को पूरी तरह हिन्दी सिनेमा पर केन्द्रित कर लिया। विगत तीन दशकों में उन्होंने हिन्दी सिनेमा से संबंधित बहुआयामी लेखन कार्य किया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर आलेख प्रकाशन के अतिरिक्त उन्होंने व्यवस्थित रूप से अनेक पुस्तकों का भी लेखन कार्य किया है। हिन्दी सिनेमा के तीन सर्वोत्कृष्ट निर्देशकों-- विमल राय, गुरुदत्त एवं राजकपूर पर केन्द्रित तीन पुस्तकें उन्होंने व्यवस्थित रूप से लिखी हैं। इनमें से विमल राय एवं राजकपूर पर लिखी पुस्तकों में उनके समग्र अवदान को रेखांकित किया गया है, जबकि गुरुदत्त पर केन्द्रित पुस्तक में मुख्यतः उनकी महानतम फ़िल्म प्यासा को केंद्र में रखकर गुरुदत्त की रचना-दृष्टि एवं अभिनय-क्षमता का समग्रता में आकलन किया गया है। इसी प्रकार राजकपूर निर्देशक के साथ-साथ महान् अभिनेता भी थे; अतः उनसे सम्बद्ध पुस्तक में उनके अभिनेता व्यक्तित्व का भी समग्र आकलन हुआ है।

प्रहलाद अग्रवाल की पहली पुस्तक 'राज कपूर : आधी हकीकत आधा फसाना ' (1984 ई॰ ) थी। उस समय राज कपूर निर्देशित फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' प्रदर्शित भी नहीं हुई थी। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद लिखा गया आलेख तथा अन्य दो आलेख भी इस पुस्तक के अंत में जोड़ दिये गये और इस तरह इसका परिवर्धित संस्करण सन् 2007 में पुनः प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक की आम पाठकों के अतिरिक्त विद्वद्वर्ग द्वारा भी व्यापक स्वीकृति हुई। लेखक की बाद में लिखी गयी हिन्दी सिनेमा के सर्वोत्तम गीतकारों में से एक शैलेन्द्र[5] पर केन्द्रित पुस्तक 'कवि शैलेन्द्र : जिन्दगी की जीत में यकीन ' की समीक्षा करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार-समीक्षक विजयमोहन सिंह ने लिखा था "हिन्दी में फिल्मी व्यक्तित्वों के रचनात्मक अवदान पर बहुत कम पुस्तकें लिखी गयी हैं किन्तु प्रहलाद अग्रवाल प्रारम्भ से ही इस दिशा में सक्रिय रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक से पूर्व उन्होंने राजकपूर पर 'आधी हकीकत आधा फसाना ' नाम की किताब लिखी थी जो पर्याप्त चर्चित हुई थी।"[6] सुधीश पचौरी की मान्यता है कि फिल्मों पर इतनी तन्मयता से लिखने वाले बहुत कम लोग हैं।[7] इस पुस्तक की रचनात्मक उपयोगिता को पाठ्यक्रम के लिए भी उपयुक्त माना गया और एनसीईआरटी के द्वारा दसवीं कक्षा के लिए स्वीकृत पाठ्यपुस्तक 'स्पर्श' भाग-2 में 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र ' के नाम से इस पुस्तक के एक अंश[8] के संपादित रूप को शामिल किया गया।[9]

गुरुदत्त पर केन्द्रित पुस्तक 'प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त ' की समीक्षा में सुधीश पचौरी ने पुस्तक को "फिल्म और जिन्दगी के बीच की दीवार ढहानेवाले गुरुदत्त की सम्पूर्ण रचना-प्रक्रिया को आसानी से समझा सकने वाली अनमोल किताब" बताया था।[7]

'ओ रे माँझी... (विमल राय का सिनेमा)' नामक पुस्तक को विमल राय की पुत्री रिंकी राय भट्टाचार्य लम्बे शोध के बाद लिखी सुन्दर किताब तथा विमल राय के व्यक्तित्व और कृतित्व का एक गम्भीर अध्ययन मानती हैं।[10]

राजकपूर, गुरुदत्त एवं विमल राय पर केन्द्रित तीन पुस्तकों के अतिरिक्त प्रहलाद अग्रवाल की तीन और पुस्तकें भी निर्देशकों पर केन्द्रित हैं और इनके माध्यम से वे बीसवीं से इक्कीसवीं सदी के आरंभिक दौर तक के हिंदी सिनेमा के एक विशाल फलक का विवेचनात्मक लेखा-जोखा उपस्थित कर देते हैं। 'उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फिल्म कला' पुस्तक में लेखक ने सुभाष घई द्वारा निर्मित अथवा निर्देशित फिल्मों के रूप में 'कालीचरण' (1976) से लेकर 'इकबाल' तथा 'किसना' (2005) तक एक विस्तृत समयावधि की फिल्मों का विस्तृत विवेचन उपस्थित किया है। इसी प्रकार 'रेशमी ख़्वाबों की धूप-छाँव' यश चोपड़ा के समग्र सिने-संसार पर केंद्रित है। इसमें यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित 'धूल का फूल' (1959) से लेकर 'वीर जारा' (2004) तक का विस्तृत विवेचन तथा विभिन्न निर्देशकीय वैचारिक आयामों को प्रस्तुत किया गया है। स्वयं लेखक के शब्दों में यह पुस्तक "निर्देशक यश चोपड़ा के रचनात्मक आरोहावरोह का आख्यान है जो हिंदी सिनेमा के पचास वर्षों के उतार-चढ़ावों के साथ प्रस्तुत हुआ है।"[11] 'बाज़ार के बाज़ीगर' नामक पुस्तक में लेखक ने मुख्यतः 21वीं सदी के आरंभिक दौर की प्रमुख फिल्मों का विवेचन प्रस्तुत किया है। इस विवेचन में राजकुमार हीरानी, आशुतोष गोवारीकर, संजय लीला भंसाली, मधुर भंडारकर एवं प्रकाश झा की फिल्मों के विस्तृत विवेचन के अतिरिक्त आदित्य चोपड़ा, करण जौहर जैसे अनेक निर्देशकों की फिल्मों को शामिल किया गया है। इस पुस्तक का पाँचवाँ अध्याय राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित 'रंग दे बसंती' पर केंद्रित है तथा तीसरे अध्याय में महेश भट्ट, राम गोपाल वर्मा एवं राकेश रोशन के अतिरिक्त कई अन्य निर्देशकों पर भी सरसरी नजर डाली गयी है।

सम्पादन संपादित करें

प्रहलाद अग्रवाल के द्वारा संपादित प्रगतिशील वसुधा (पत्रिका) का सिनेमा महाविशेषांक हिंदी सिनेमा : बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक वस्तुतः हिंदी सिनेमा पर केंद्रित लेखन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है। इसमें सवा छह सौ फिल्मों का कालक्रम से विवरण प्रस्तुत किया गया है। सवाक् हिंदी सिनेमा के आरंभ से लेकर सन् 2009 ईस्वी तक के हिंदी सिनेमा पर केंद्रित करीब छह सौ पृष्ठों के इस विशाल विवेचनात्मक आयोजन में इन सवा छह सौ फिल्मों में से कुल अस्सी फिल्मों पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित कुल 74 आलेखों के रूप में विस्तृत विवेचन भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त 'गरम हवा' के संदर्भ में एम एस सथ्यू से एक साक्षात्कार भी दिया गया है। अंत में प्रायः सभी फिल्मों के नामों की अकारादि (अक्षर) क्रम से अनुक्रमणिका भी दे दी गयी है। इसका कालक्रमिक विवेचन जहाँ इसे फिल्मों का इतिहास न होते हुए भी एक उत्तम इतिहासनुमा ग्रन्थ बनाता है, वहीं अक्षरक्रम से फिल्मों की नाम-सूची इसे एक फिल्म-कोश के रूप में उपयोग करने की सुविधा भी प्रदान कर देती है। हालाँकि इस अनुक्रमणिका में कुल 609 फिल्मों के नाम ही सम्मिलित हैं और आलेख के रूप में विवेचित अनेक फिल्मों, जैसे कि आदमी, पड़ोसी, मुझे जीने दो, रंग-बिरंगी, उमराव जान, ब्लैक फ्राईडे, वेलकम टू सज्जनपुर, आजा नच ले, अ वेडनेसडे, स्लमडॉग मिलेनियर, देव डी एवं गुलाल आदि तथा पुस्तक के दोनों किनारे चलने वाले कालक्रमिक विवेचन में से भी अपवाद स्वरूप सरदार (1993), हीर रांझा (1932) एवं श्री 420 (1955) के नाम छूट गये हैं; हालाँकि इनका विवेचन यथास्थान दिया गया है।

प्रहलाद अग्रवाल की महत्वाकांक्षी परियोजना उपर्युक्त विशेषांक के संशोधित एवं बृहद् परिवर्धित रूप में हिन्दी सिनेमा : आदि से अनंत... के रूप में चार खण्डों में परिपूर्णता को प्राप्त हुई है। सम्पूर्णतः आर्ट पेपर पर मुद्रित इस ग्रंथाकार (28×22 सेमी) कुल 943 पृष्ठों की पुस्तक में हिन्दी सिनेमा के 100 साल के सफर (1913 से 2012 तक) को प्रस्तुत किया गया है। इसके चारों खण्डों में कुल मिलाकर 1,004 फिल्मों का विवेचन सम्मिलित है, जिनमें से कुल 105 फिल्मों पर विभिन्न विशिष्ट विद्वानों के द्वारा लिखित विस्तृत विवेचनात्मक आलेख हैं एवं शेष फिल्मों पर कालक्रमानुसार प्रहलाद अग्रवाल लिखित परिचयात्मक टिप्पणी सम्मिलित की गयी हैं। प्रथम खण्ड के ही अंत में चारों खण्डों में समायोजित सभी 1,004 फिल्मों की अक्षरक्रम से परिपूर्ण सूची भी दे दी गयी है।[12]

प्रकाशित पुस्तकें संपादित करें

फिल्म-केन्द्रित-
  1. राज कपूर : आधी हकीकत आधा फसाना (प्रथम संस्करण-1984, राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली से, परिवर्धित संस्करण-2007, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  2. प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त - 2004 (मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली)
  3. कवि शैलेन्द्र : जिन्दगी की जीत में यकीन (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  4. ओ रे माँझी... (बिमल राय का सिनेमा) - 2007 (रेमाधव पब्लिकेशंस, नोएडा)
  5. उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फिल्मकला - 2007 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  6. बाज़ार के बाज़ीगर : इक्कीसवीं सदी का सिनेमा - 2007 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  7. जुग जुग जिए मुन्नाभाई : छवियों का मायाजाल (संजय दत्त पर -- मुख्यतः 'मुन्ना भाई एम बी बी एस' एवं 'लगे रहो मुन्ना भाई' पर केन्द्रित) - 2010 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  8. रेशमी ख़्वाबों की धूप-छाँव : यश चोपड़ा का सिनेमा - 2011 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  9. महाबाज़ार के महानायक - 2019 (हिन्दी सिनेमा पर एकाग्र पद्यात्मक पुस्तक; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
साहित्यिक-
  1. हिन्दी कहानी : सातवाँ दशक
  2. तानाशाह (उपन्यास)

सम्पादित कृतियाँ संपादित करें

  1. हिन्दी सिनेमा बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक (आरंभ से 2009 ईस्वी तक की हिंदी फिल्मों पर केन्द्रित; प्रगतिशील वसुधा का सिनेमा विशेषांक, अप्रैल-जून 2009; पुस्तक रूप में 'साहित्य भंडार, 50 चाहचंद रोड, इलाहाबाद' से प्रकाशित)
  2. हिन्दी सिनेमा : आदि से अनंत... (हिन्दी सिनेमा के सौ साल का सफ़र - 1913 से 2012 ई॰ तक) - चार खण्डों में (भव्य साज-सज्जा में आर्ट पेपर पर मुद्रित, ग्रन्थाकार (28×22 सेमी) सजिल्द एवं पेपरबैक; साहित्य भंडार, 50 चाहचंद रोड, इलाहाबाद से प्रकाशित)

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 दिसंबर 2018.
  2. प्रहलाद, अग्रवाल (2012). प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त (पुनर्मुद्रित संस्करण). नवीन शाहदरा, दिल्ली: मेधा बुक्स. पृ॰ अंतिम आवरण फ्लैप पर.
  3. प्रहलाद, अग्रवाल (2014). हिन्दी सिनेमा : आदि से अनंत...(भाग-1) (प्रथम संस्करण). 50, चाहचंद (जीरो रोड), इलाहाबाद: साहित्य भंडार. पृ॰ अंतिम आवरण-फ्लैप पर. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7779-354-3.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)
  4. प्रहलाद, अग्रवाल (2007). उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फिल्म कला (प्रथम संस्करण). नयी दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पपृ॰ 20-21. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1404-9.
  5. विजयमोहन, सिंह (2003). भेद खोलेगी बात ही (प्रथम संस्करण). जटवाड़ा, दरियागंज, नयी दिल्ली: सामयिक प्रकाशन. पृ॰ 242. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7138-056-5.
  6. विजयमोहन सिंह, इंडिया टुडे (9 नवंबर, 2005)।
  7. सुधीश पचौरी, अहा! ज़िन्दगी (अगस्त 2005)।
  8. प्रहलाद, अग्रवाल (2007). राज कपूर : आधी हकीकत आधा फसाना (प्रथम (परिवर्धित) संस्करण). नयी दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पपृ॰ 135 से 140. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1405-6.
  9. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 दिसंबर 2018.
  10. ओ रे माँझी, प्रहलाद अग्रवाल, रेमाधव पब्लिकेशंस प्रा॰ लि॰, नोएडा, पेपरबैक संस्करण-2007, पृष्ठ-14.
  11. प्रहलाद, अग्रवाल (2011). रेशमी ख़्वाबों की धूप-छाँव : यश चोपड़ा का सिनेमा (प्रथम संस्करण). नयी दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 8. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-2052-1.
  12. प्रहलाद, अग्रवाल (2014). हिन्दी सिनेमा : आदि से अनंत...(भाग-1) (प्रथम संस्करण). 50, चाहचंद (जीरो रोड), इलाहाबाद: साहित्य भंडार. पृ॰ 216से219. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7779-354-3.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें