वार्ता:कवि सम्मेलन
1. विश्वाश" प्रमाण की जरूरत नही आस्था को । "विश्वाश"की जरूरत है आस्था को ।। आस्था से मन समर्पित हेता है । पर "विश्वाश" की जरूरत है आस्था को ।।
"विश्वाश" के रास्ते बना लो मंजिले मिल जायेगी । मंजिले न भी दिखे पर दूरिया घट जायेंगी ।। हो अटल "विश्वाश" पक्का नजदीकियॉ आ जायेगी हर पग मे ऐसा दम होगा की जमीन भी हिल जायेगी ।।
लेखक एवं राष्ट्रीय कवि -- जीतेन्द्र कानपुरी 9118837179