निम्न चर्चा नीचे लिखे पृष्ठ के प्रस्तावित विलोपन का पुरालेख है। कृपया इसमें बदलाव न करें। अनुवर्ती टिप्पणियाँ उपयुक्त वार्ता पृष्ठ पर करनी चाहिए (जैसे कि लेख का वार्ता पृष्ठ)। इस पृष्ठ पर किसी भी प्रकार का कोई संपादन नहीं होना चाहिए।
ये पूर्ण रूप से जातिवादी लेख है । मुझे इसमे कुछ नया नहीं दिखा , वही बाते जो हर यादव अहीर लेख मे लिखी हुई होती है ... अहीर क्षत्रिय को स्थापित करना ॥ हिन्दू ग्रंथ की बातों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करा गया है । सभी प्रमुख राजाओ को अहीर घोसीत करने का प्रयास ।
खैर मैंने तो पुरषोत्तम अगरवाल की किताब मे पढ़ा था की अहीर हिन्दू ग्रन्थों मे किसी विदेशी जनजाति की तरह पेश किए गए है जिनका यादवों से संबंध नहीं ।
...
यादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
(Garga Samhita 6:10:16)
Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।
अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
(Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥
येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
(Srimad Bhagavatam 2:4:18)
Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥
ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
(Manusmriti 10:15)
Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।
Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।
उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
(Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥
जी इस लेख कि जानकारी रखने योग्य है यह यादव और अहीर संबंध के बारे में है इस लिए इस जानकारी को यादव लेख में विलय करना उचित रहेगा (==अहीरों से संबंध==) इस प्रकार।
अहीरों को क्षत्रिय घोषित करने की आवश्यकता नहीं है उनका महाभारत में पहले से ही क्षत्रिय के रूप में उल्लेख है इस संदर्भ[1] को देखें इसमें कहा गया कि जो क्षत्रिय परशुराम से भयभीत हो गए थे उन्हें आभीर के रूप जाना गया और जिस स्थान पर वो रहते थे उसे आभीरदेश कहा जाता था। तो क्या अब भगवान परशुराम नकली हो गए? क्या अब भगवान परशुराम के अस्तिव के ऊपर सवाल खड़ा किया जाएगा?
आभीरों के शूद्र होने की झूठी कहानी का खंडन किया जा चुका है:
कुछ लोग कहते हैं कि आभीर शूद्र थे, लेकिन यह गलत है और महाभारत में दोनों का स्पष्ट उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि शूद्र या सुर और आभीर दोनों सरस्वती नदी के तट पर रह रहे थे। उन्हें सुर (या शूद्र) शब्द के साथ भ्रमित किया गया है, और उन्हें सुरभीर[2][3] भी कहा गया है। संस्कृत में दो शब्दों को अक्सर मिश्रित किया जाता है जैसे कृष्ण और अर्जुन को एक साथ कृष्णर्जुन के रूप में एक शब्द के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसी प्रकार सुर और आभीर को सुरभीर कहा जाता है। लेकिन न केवल शब्दों के लेखकों ने भी सुरभीर पर गलत तरीके से सुरों के पापों का आरोप लगाया है और इसलिए आभीरों को उन कामों के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था जो उन्होंने कभी नहीं किया।[4] आभीरों ने कुछ समय के लिए दक्खन पर शासन किया, पतंजलि की गणना के अनुसार, अपने आप में एक जाति थे, शूद्रों में शामिल नहीं थे।[5][6]
आभीर और यादव एक लोग थे:
इस संदर्भ को देखें[7] यहां सातत्वों को आभीर बताया गया सातत्व यादवों की शाखा थे।
ऊपर की चर्चा इस पृष्ठ पर हुए विचार-विमर्श का पुरालेख है। कृपया इसमें किसी तरह का बदलाव न करें। अनुवर्ती टिप्पणियाँ उपयुक्त वार्ता पृष्ठ पर करनी चाहिए (जैसे कि लेख का वार्ता पृष्ठ या पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा का वार्ता पृष्ठ)। इस पृष्ठ पर किसी भी प्रकार का कोई संपादन नहीं होना चाहिए।
↑"Śrī Brahma-saṁhitā (The Govindam Prayers)". The Hare Krishna Movement (अंग्रेज़ी में). 2012-12-20. अभिगमन तिथि 2023-05-13. cintāmaṇi-prakara-sadmasu kalpa-vṛkṣa-
lakṣāvṛteṣu surabhirabhipālayantam
lakṣmī-sahasra-śata-sambhrama-sevyamānaṁ
govindam ādi-puruṣaṁ tam ahaṁ bhajāmi|quote= में 39 स्थान पर line feed character (मदद)
↑Vanina, Evgenii͡a I͡Urʹevna (2003). Indian History: A Russian Viewpoint (अंग्रेज़ी में). Pragati Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰978-81-7307-080-8. According to Mahābhārata (IX.36.1) Śūra lived in the region of Vinasana, in the vicinity of Abhiras (tato vinaśanam rājanājagāma halāyudhaḥ śūrābhirān prati dveṣād yatra naṣṭā sarasvatī).
↑Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh (अंग्रेज़ी में). Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰978-81-85579-57-3. Some people say that the Abhira were Sudra, but it is wrong and Mahabharat mentions both of them distinctly. It says that both the Sudra and the Abhira were living on the bank of river Saraswati. The Abhira who ruled over the Deccan for some time, were, according to Patanjali's counting, a caste by themselves, not included among the Sudra (Ghurye 1961 : 62). The word 'Jati' is applied by the great grammarian Patanjali to such ethnic groups as the Abhira, whom he declares to be other 'Jati' than the Sudra. By implication the Sudra too were a 'Jati'. 'Varna' and 'Jati' would thus appear to be inter-changeable terms. It is clear that other groups than the four traditional ones were not only in existence, but had come to be recognised as jatis (Vyakaranamahabhashya : 1,2,72).
↑Mitra, Khagendranath (1952). The Dynamics of Faith: Comparative Religion (अंग्रेज़ी में). University of Calcutta. Krishna belongs to a nomadic tribe of Abhiras known as Sāttvatas who inhabited the country near Mathura. These Sāttvatas or more properly the Yadavas of whom they were a branch were mentioned by Panini.