विज्ञान एक्सप्रेस (Science Express) एक रेल पर सवार बच्चों के लिए एक गतिशील वैज्ञानिक प्रदर्शनी है जो पूरे भारत में यात्रा करती है। यह परियोजना ३० अक्टूबर २००७ को सफदरजंग रेलवे स्टेशन, दिल्ली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि ये सभी के लिए खुला है, ये प्रदर्शनी मुख्य रूप से छात्रों और शिक्षकों को लक्षित करती हैं। २०१७ के अनुसार [update] ट्रेन के नौ चरण हो चुके हैं और तीन विषयों पर प्रदर्शन किया गया है। २००७ से २०११ के पहले चार चरणों को साइंस एक्सप्रेस कहा जाता था और ये माइक्रो और मैक्रो कॉस्मॉस पर केंद्रित था। २०१२ से २०१४ के अगले तीन चरणों में जैव विविधता विशेष के रूप में प्रदर्शन को फिर से तैयार किया गया[1]। २०१५ से २०१७ के आठवें और नौवें चरण को जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बदल दिया गया था।
यह परियोजना विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा २००७ में शुरू की गई थी, और मुख्य रूप से छात्रों और शिक्षकों के लिए थी। इसमें कोई प्रवेश शुल्क नहीं हैं।
पहले चार चरण माइक्रो और मैक्रो ब्रह्मांड पर केंद्रित थे और दुनिया भर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में किए जा रहे विकासशील नये शोधों पर प्रकाश डाला गया। बिग बैंग सिद्धांत, जीन, संवेद, और ब्रह्माण्ड जैसे विभिन्न विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया।[2]
दूसरा चरण भारत में जैव विविधता पर केंद्रित है और इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया था। यह ट्रांस-हिमालयन और हिमालयी क्षेत्रों, गंगा के मैदानों, उत्तर पूर्वी पहाड़ियों, रेगिस्तान, तटीय पश्चिमी घाट, दक्कन पठार और विभिन्न द्वीपों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शता था। बच्चों के लिये किड्स जोन की शुरुआत की गई जहाँ मज़ेदार गतिविधिया जैसे कि पहेलियाँ और विज्ञान से जुड़ी खेल खेले जा सके।[3] इस एक्सप्रेस के 8 कोचों पर भारत एवं विश्व की जैविक भौगोलिक विषयों पर प्रदर्शनी, लधु फिल्मों, वीडियों , चार्टो, आंकड़ों को एलइडी स्क्रीनों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इसमें जलवायु परिवर्तन,उर्जा,जल संरक्षण समेत महत्वपूर्ण विषयों को सूरुचिपूर्ण ढंग से दर्शाया गया है। इस ट्रेन में विशेषज्ञ भी उपस्थित रहेंगे जों प्रदर्शित किये गए चीजों की कई भारतीय भाषा में रोचकतापूर्ण व्याख्या करेंगे।[1]
तीसरे चरण को जलवायु परिवर्तन विषय के लिए अभिकल्पित किया गया था और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, रेल मंत्रालय, विक्रम ए साराभाई समुदाय विज्ञान केंद्र (वीएएससीएससी) और भारतीय वन्यजीव संस्थान के बीच सहयोगात्मक कार्य के रूप में विकसित किया गया था। प्रदर्शनी के नौवें चरण में १६ डिब्ब थे जिनमें से ८ को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने विकसित किया था।[4] कुछ डिब्बों के छत पर सौर पैनल स्थापित किए गए हैं और शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए सुविधा भी हैं।[5] वीएएससीएससी से एक टीम, जो पूरे प्रदर्शनी का प्रबंधन करती है, छात्रों को प्रदर्शनी के माध्यम से मार्गदर्शित करती है और रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर भी प्रदर्शन सम्बंधित उपक्रम करती हैं।[6][7]
अपने आठवां चरण में इस प्रदर्शनी ने 142,000 किलोमीटर (466,000,000 फीट) की यात्रा की थी और ४५५ स्टेशनों पर रुकी थी। १६०० से ज़्यादा प्रदर्शित दिनों में, इसका दौरा ३३,८०० से अधिक स्कूलों के छात्रों ने किया और करीब १॰५ करोड़ लोग आ चुके हैं।[5] इस प्रकार प्रदर्शनी सबसे बड़ी, सबसे लंबे समय तक चलने वाली और सबसे ज्यादा देखी जाने वाली प्रदर्शनी है, और लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज हैं।[4][8]