Puran yadav के सदस्य योगदान

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2 फ़रवरी 2022

  • 06:2506:25, 2 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +9,883 पदुमलाल पन्नालाल बख्शी कवि , मनीषी तथा विचारक राष्ट्रकवि दिनकर हिन्दी साहित्य के ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र हैं जिनकी आभा कभी क्षीण नहीं हो सकती । इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्रवादी चेतना का अद्भुत समन्वय मिलता है । भारत के अतीतकालीन गौरव तथा भारतीयों की वर्तमान दशा का चित्रण करके इन्होंने देश के जनमानस में अपार ख्याति अर्जित की तथा उनमें राष्ट्रीय चेतना का संचार किया । डॉ ० राजेश्वरप्रसाद दिनकर जी के बारे में लिखते हैं- " दिनकरजी युग प्रतिनिधि साहित्यकार हैं । उनकी भाषा में ओज और भावों में क्रान्ति की ज्वाला टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 06:2106:21, 2 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +5,420 रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी भाषा को समृद्ध करने में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है । ये उच्चकोटि के निबन्धकार तथा समालोचक थे । ये सहृदय कवि , निष्पक्ष इतिहासकार , सफल अनुवादक और महान् चिन्तक थे । इन्होंने हिन्दी भाषा के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया । सुप्रसिद्ध साहित्यकार गुलाबरायजी ने इनके सम्बन्ध में लिखा है- “ यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि गद्य साहित्य की और विशेष टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 06:1506:15, 2 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +15 सदस्य:Puran yadav Techiyaduvanshi वर्तमान टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 04:4704:47, 2 फ़रवरी 2022 अन्तर इतिहास +12,586 जयशंकर प्रसाद प्रसादजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक , कवि , नाटककार थे । इन्हें भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता से अगाध प्रेम था । भारत के उज्ज्वल अतीत को इन्होंने अपने साहित्य में सफलतापूर्वक उकेरा है । अनेक विषम परिस्थितियों में भी इन्होंने साहित्य - सृजन नहीं छोड़ा और निरन्तर हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि करते रहे । सुविख्यात साहित्यकार रमेशचन्द शाह ने इनके विषय में लिखा है- " प्रसाद का दर्शन भारतीय इतिहास प्रवाह में अर्जित , गँवाई गई और फिर से प्राप्त नैतिक व सौन्दर्यात्मक तथा व्यावहारिक व रहस्यात्मक अन्तर्दृष्ट टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन

30 जनवरी 2022

  • 02:4702:47, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +10,196 राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ ० राजेन्द्रप्रसाद अपनी सत्यनिष्ठा , ईमानदारी , निर्भीकता , देशभक्ति , सादगी , साधुता के लिए विख्यात थे । वे उच्चकोटि के राजनेता होने के साथ - साथ एक श्रेष्ठ साहित्यकार भी थे । इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा हिन्दी साहित्य की पर्याप्त सेवा की है । राजनैतिक , सामाजिक तथा दार्शनिक विषयों के साथ - साथ सांस्कृतिक विषयों पर भी इन्होंने अपनी लेखनी चलाई तथा भाषण दिए । ये एक श्रेष्ठ विचारक , वक्ता तथा लेखक थे । विभिन्न विषयों पर इनके द्वारा लिखे गए लेख हिन्दी साहित्य की अमूल्य नि टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:4002:40, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +9,139 हजारीप्रसाद द्विवेदी आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई 0 में बलिया जिले के ‘ आरत दुबे का छपरा ' नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी एवं माता का नाम श्रीमती ज्योतिषमती था । इनकी शिक्षा का प्रारम्भ संस्कृत से हुआ । इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि प्राप्त की । सन् 1940 ई ० में हिन्दी एवं संस्कृत के अध्यापक के रूप में शान्ति - निकेतन चले गये । यहीं इन्हें विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर का सान्निध्य मिला टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:3802:38, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +3,518 सुमित्रानन्दन पन्त सुकुमार भावनाओं के कवि और प्रकृति के चतुर - चितेरे सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई , 1900 ई ० को प्रकृति की सुरम्य गोद में अल्मोडा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम पं ० गंगादत्त पन्त था । इनके जन्म के छः घण्टे के बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया था ; अत : इनका लालन - पालन पिता और दादी के वात्सल्य की छाया में हुआ । पन्त जी ने अपनी शिक्षा का प्रारम्भिक चरण अल्मोड़ा में पूरा किया । यहीं पर इन्होंने अपना नाम गुसाईंदत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन रखा । इसके बाद वाराणसी के जयनारा टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:3402:34, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +4,354 सूरदास सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई ० ( वैशाख शुक्ल पंचमी , सं ० 1535 वि ० ) में आगरा - मथुरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था । कुछ विद्वान् दिल्ली के निकट ' सीही ' ग्राम को भी इनका जन्म - स्थान मानते हैं । सूरदास जी जन्मान्ध थे , इस विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं । इन्होंने कृष्ण की बाल - लीलाओं का , मानव - स्वभाव का एवं प्रकृति का ऐसा सजीव वर्णन किया है , जो आँखों से प्रत्यक्ष देखे बिना सम्भव नहीं है । इन्होंने स्वयं अपने आपको जन्मान्ध कहा है । ऐसा इन्होंने आत्मग्लानिवश , लाक्षणिक र टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:3102:31, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +8,174 रबीन्द्रनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई , 1861 ई ० को कलकत्ता ( कोलकाता ) में हुआ था । इनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई । ग्यारह वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार के बाद अपने पिता देवेन्द्रनाथ के साथ हिमालय - यात्रा पर निकले थे । सितम्बर 1877 ई 0 में अपने भाई के साथ इंग्लैण्ड चले गये । वहाँ इन्होंने अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करते हुए पश्चिमी संगीत सीखा । इंग्लैण्ड से वापस लौटकर इन्होंने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया । 1914 ई ० में कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें ' डॉक्टर ' टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:2702:27, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +9,128 कबीर ऐसा माना जाता है कि महान् कवि एवं समाज - सुधारक महात्मा कबीर का जन्म काशी में सन् 1398 ई ० ( संवत् 1455 वि 0 ) में हुआ था । ' कबीर पंथ ' में भी इनका आविर्भाव काल संवत् 1455 में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन माना जाता है । इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में तीन मत हैं –काशी , मगहर और आजमगढ़ । अनेक प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म स्थान काशी मानना ही उचित है । भक्त - परम्परा में प्रसिद्ध है कि किसी विधवा ब्राह्मणी को स्वामी रामानन्द के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न होने पर उसने समाज के भय से काशी टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 02:2002:20, 30 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास 0 मीरा बाई जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी की प्रपौत्री , जोधपुर नरेश राजा रत्नसिंह की पुत्री और भगवान् कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीराबाई का जन्म राजस्थान के चौकड़ी नामक ग्राम में सन् 1498 ई ० में हुआ था । बचपन में ही माता का निधन हो जाने के कारण में ये अपने पितामह राव दूदा जी के पास रहती थीं और प्रारम्भिक शिक्षा भी उन्हीं के पास रहकर प्राप्त की थीं । राव दूदा जी बड़े ही धार्मिक एवं उदार प्रवृत्ति के थे , जिनका प्रभाव मीरा के जीवन पर पूर्णरूपेण पड़ा था । आठ वर्ष की मीरा ने कब श्रीकृष्ण को पति रूप में स्वीकार टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन

28 जनवरी 2022

  • 09:5009:50, 28 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +40 बिहारी (साहित्यकार) कङिया टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
  • 09:4809:48, 28 जनवरी 2022 अन्तर इतिहास +8,851 बिहारी (साहित्यकार) बिहारी अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न कवि थे । इनका काव्य ऐसे विलक्षण काव्य - स्वरूप को प्रस्तुत करता है , जो हिन्दी काव्य जगत के विख्यात कवियों को भी आश्चर्यचकित करता रहा है । इन्हें ' गागर में सागर ' भरनेवाले कवि की संज्ञा दी गई है । प्रसिद्ध आलोचक पं ० पदमसिंह शर्मा ' कमलेश ' ने इनके सम्बन्ध में लिखा है “ बिहारी के दोहों का अर्थ गंगा की विशाल जलधारा के समान है , जो शिव की जटाओं में समा तो गई थी , परन्तु उसके बाहर निकलते ही वह इतनी असीम तथा विस्तृत हो गई कि लम्बी - चौड़ी धरती में भी सीमित न रह सकी । ब टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन

24 जून 2021