"अब्दुर रहमान ख़ान": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: [[Image:Ameer Abdurahman Khan.jpg|thumb|'अब्दुर रहमान ख़ान १८८० से १९०१ तक [[अफ़ग़ानिस्तान]...
 
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==देश निकाले का जीवन==
अब्दुर रहमान ख़ान [[ताशकन्द]] में जाकर बस गए, जो उस समय [[रूसी तुर्किस्तान]] नाम के रूस-नियंत्रित क्षेत्र में स्थित था. वहाँ अफ़ग़ानिस्तान पर [[अंग्रेजों]] ने [[भारत]] से आक्रमण कर दिया और अपनी भारतीय फ़ौजों को लेकर [[द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध]] लड़ा. उन्होंने शेर अली ख़ान को काबुल से खदेड़ दिया. अंग्रेज़ों को अफ़ग़ानिस्तान में घुसते देखकर रूसियों को ख़तरा महसूस हुआ क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की सीमाएं रूसी तुर्किस्तान से लगती थी और उन्हें लगा के अँगरेज़ इस क्षेत्र में उनके साथ मुक़ाबला करेंगे. उन्होंने ताशकन्द में बसे अब्दुर रहमान ख़ान पर ज़ोर डाला के वह आमू दरिया पार करके अंग्रेज़ों के साथ काबुल के तख़्त के लिए जूझे. मार्च १८८० को [[दिल्ली]] ख़बर पहुंची के अब्दुर रहमान ख़ान उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान पहुँच गया है. सोच-विचार के बाद अंग्रेज़ों ने तय किया के लड़ने की बजाय उसे दोस्त बना लें और काबुल में अमीर बन जाने का न्योता दे दें. [[भारत के गवर्नर जनरल|भारत में अंग्रेज़ी वाइसराय]] लोर्ड लिटन ने अब्दुर रहमान ख़ान को संदेशा भेजा के उन्हें उसका अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बन जाना स्वीकार है और वह कन्दाहार के इर्द-गिर्द के कुछ क्षेत्रों के अलावा बाक़ी अफ़ग़ानिस्तान को उसके हवाले करने को तैयार हैं. कुछ बातचीत के बाद, काबुल में अंग्रेज़ी सरकार के नुमाइंदे लॅपॅल ग्रिफ़िन और अब्दुर रहमान ख़ान के बीच भेंट हुई. इस भेंट के बाद लॅपॅल ग्रिफ़िन ने अपनी सरकार को अब्दुर रहमान ख़ान के बारे में कुछ व्यक्तिगत जानकारी भी दी. उन्होंने कहा के अब्दुर रहमान ख़ान मंझले क़द के हैं और उनके चेहरे में एक तेज़ मस्तिष्क वाले की चमक दिखती है.
 
==राज==