"बुल्ले शाह": अवतरणों में अंतर

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== जीवन ==
बुल्ले शाह का असली नाम अब्दुल्ला शाह था। उन्होंने शुरुवाती शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी और उच्च शिक्षा क़सूर में ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ली थी।<ref name="ज्ञान"/><ref name="cb"/> पंजाबी कवि [[वारिस शाह]] ने भी ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ही शिक्षा ली थी।<ref name=cb>{{cite book|title=Crossing boundaries|author=गीती सेन|editor=गीती सेन|publisher=Orient Blackswan|place=|year=1998|url=http://books.google.co.in/books?id=BfukTDZTBNMC|accessdate=17 मार्च 2012|ISBN=978-81-2501-341-9|page=128|language=अंग्रेज़ी}}</ref> उनके सूफ़ी गुरु इनायत शाह थे।<ref name="पंजाबी"/> बुल्ले शाह की मृत्यु 1757 से 1759 के बीच क़सूर में हुई थी।<ref name="पंजाबी">{{cite book|title=Encyclopaedic Dictionary of Punjabi Literature: A-L|author=|editor=|publisher=Global Vision Pub House|place=|year=2003|series=Global encyclopaedic literature|volume=1|url=http://books.google.com/books?id=WLAwnSA2uwQC|accessdate=16 मार्च 2012|ISBN=978-81-8774-652-2|page=75|language=अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="ज्ञान2">{{cite book|title=Encyclopaedia Of Untouchables : Ancient Medieval And Modern|author=राज कुमार|publisher=ज्ञान प्रकाशन घर|place=|year=|url=http://books.google.com/books?id=e8o5HyC0-FUC|accessdate=15 मार्च 2012|ISBN=978-81-7835-664-8|page=197|language=अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="duel"/> बुल्ले शाह के बहुत से परिवार जनों ने उनका शाह इनायत का चेला बनने का विरोध किया था क्योंकि बुल्ले शाह का परिवार पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज होने की वजह से ऊँची सैय्यद जात का था जबकि शाह इनायत जात से [[आराइन]] थे, जिन्हें निचली जात माना जाता था। लेकिन बुल्ले शाह इस विरोध के बावजूद शाह इनायत से जुड़े रहे और अपनी एक कविता में उन्होंने कहा:
 
{|class="wikitable"
|
बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ भैनाँ ते भरजाईयाँ <br>
'मन्न लै बुल्लेया साड्डा कैहना, छड्ड दे पल्ला राईयाँ <br>
आल नबी, औलाद अली, नूँ तू क्यूँ लीकाँ लाईयाँ?' <br>
'जेहड़ा सानू स​ईय्यद सद्दे, दोज़ख़ मिले सज़ाईयाँ <br>
जो कोई सानू राईं आखे, बहिश्तें पींगाँ पाईयाँ <br>
राईं-साईं सभनीं थाईं रब दियाँ बे-परवाईयाँ <br>
सोहनियाँ परे हटाईयाँ ते कूझियाँ ले गल्ल लाईयाँ <br>
जे तू लोड़ें बाग़-बहाराँ चाकर हो जा राईयाँ <br>
बुल्ले शाह दी ज़ात की पुछनी? शुकर हो रज़ाईयाँ' <br>
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बुल्ले को समझाने बहनें और भाभियाँ आईं <br>
(उन्होंने कहा) 'हमारा कहना मान बुल्ले, [[आराइन|आराइनों]] का साथ छोड़ दे <br>
अली के परिवार और नबी के वंशजों को क्यों कलंकित करता है?' <br>
(बुल्ले ने जवाब दिया) 'जो मुझे सैय्यद बुलाएगा उसे दोज़ख़ (नरक) सजा में मिलेगा <br>
जो मुझे आराइन कहेगा उसे बहिश्त (स्वर्ग) के सुहावने झूले मिलेंगे <br>
आराइन और सैय्यद इधर-उधर पैदा होते रहते हैं, परमात्मा को ज़ात की परवाह नहीं <br>
वह ख़ूबसूरतों को परे धकेलता है और बदसूरतों को गले लगता है <br>
अगर तू बाग़-बहार (स्वर्ग) चाहता है, आराइनों का नौकर बन जा <br>
बुल्ले की ज़ात क्या पूछता है? भगवान की बनाई दुनिया के लिए शुक्र मना' <br>
|}
 
== रचनात्मक कार्य ==