"आर्यभटीय": अवतरणों में अंतर
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== गणितपाद ==
गणितपाद में 33 श्लोक हैं, जिनमें आर्यभट ने [[अंकगणित]], [[बीजगणित]] और [[रेखागणित]] संबंधी कुछ सूत्रों का समावेश किया है। पहले श्लोक में अपना नाम बताया है और लिखा है कि जिस ग्रंथ पर उनका ग्रंथ आधारित है वह (गुप्तसाम्राज्य की राजधानी) कुसुमपुर में मान्य था। दूसरे श्लोक में संख्या लिखने की दशमलवपद्धति की इकाइयों के नाम हैं। इसके आगे के श्लोकों में वर्गक्षेत्र, [[घन]], [[वर्गमूल]], [[घनमूल]], [[त्रिभुज]] का क्षेत्रफल, त्रिभुजाकार [[शंकु]] का घनफल, [[वृत्त]] का क्षेत्रफल, गोले का घनफल, समलंब चतुर्भुज क्षेत्र के कर्णों के संपात से समांतर भुजाओं की दूरी और क्षेत्रफल तथा सब प्रकार के क्षेत्रों की मध्यम लंबाई और चौड़ाई जानकर क्षेत्रफल बताने के साधारण नियम दिए गए हैं। एक जगह बताया गया है कि परिधि के छठे भाग को ज्या उसकी त्रिज्या के समान होती है। श्लोक में बताया गया है कि यदि [[वृत्त]] का व्यास 20,000 हो तो उसकी परिधि 62,832 होती है। इससे परिधि और व्यास का संबंध चौथे दशमलव स्थान तक शुद्ध आ जाता है। दो श्लोकों में ज्याखंडों के जानने की विधि बताई गई है, जिससे ज्ञात होता है कि ज्याखंडों की सारणी (टेबुल ऑव साइनडिफ़रेंसेज़) आर्यभट ने कैसे बनाई थी। आगे वृत्त, त्रिभुज और चतुर्भुज खींचने की रीति, समतल धरातल के परखने की रीति, ऊर्ध्वाधर के परखने की रीत, शंकु और छाया से छायाकर्ण जानने की रीति, किसी ऊँचे स्थान पर रखे हुए दीपक के प्रकाश के कारण बनी हुई शकु की छाया की लंबाई जानने की रीति, एक ही रेखा पर स्थित दीपक और दो [[शंकु|शंकुओं]] के संबंध के प्रश्न की गणना करने की रीति, समकोण त्रिभुज के कर्ण और अन्य दो भुजाओं के वर्गों का संबंध (जिसे [[पाइथागोरस का प्रमेय|पाइथागोरस का नियम]] कहते हैं, परंतु जो [[शुल्वसूत्र]] में पाइथागोरस से बहुत पहले लिखा गया था), वृत्त की जीवा और शरों का संबंध, दो श्लोकों में श्रेणी गणित के कई नियम, एक श्लोक में एक-एक बढती हुई संख्याओं के वर्गों और घनों का योगफल जानने का नियम, (क + ख)
जितनी बातें तैंतीस श्लोकों में बताई गई हैं उनकों यदि आजकल की परिपाटी के अनुसार विस्तारपूर्वक लिखा जाए तो एक बड़ी भारी पुस्तक बन सकती है।
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