"श्लेष अलंकार": अवतरणों में अंतर

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[[अलंकार चन्द्रोदय]] के अनुसार हिन्दी कविता में प्रयुक्त एक अलंकार
 
{{रस छन्द अलंकार}}
 
जब किसी [[शब्द]] का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक [[अर्थ]] निकलते हैं तब [[श्लेष]] [[अलंकार]] होता है। उदाहरण -
 
:रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
:पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
 
यहां पानी शब्द का प्रयोग यद्यपि तीन बार किया गया है, किन्तु दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त एक ही पानी शब्द के तीन विभिन्न अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी (जल) है।
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[http://kantila.blogspot.com "वह प्रकृति जिसको ढूंढ रहा था मैं अब तक, है संयोग से मेरे साथ मगर मैं तन्हा हूँ।"] <br>
उक्त उद्हरण में प्रकृति का संयोगवश साथ होना सामान्य अर्थ प्रतीत होता है किन्तु इसके दूसरे अर्थ में प्रकृति कवि कंटीला की सुपुत्री व संयोग धर्मपत्नि का नाम है और पत्नी के माध्यम से पुत्री का साथ होना ही इसका वास्तविक अर्थ है। अतः यहाँ भी श्लेष अलंकार है।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[दृष्टकूट]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.sahityashilpi.com/2009/10/blog-post_20.html श्लेष-वक्रिक्ति] (साहित्यशिल्पी)
 
{{रस छन्द अलंकार}}
 
[[श्रेणी: अलंकार]]