"भारतीय दर्शन में परमाणु": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: वैशेषिक में चार भूतों के चार तरह के परमाणु माने ...
 
{{स्रोतहीन}} जोड़े tag to article (TW)
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=जनवरी 2013}}
[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]] में चार भूतों के चार तरह के परमाणु माने हैं — पृथ्वी परमाणु, जल परमाणु, तेज परमाणु और वायु-परमाणु । पाँचवाँ भूत आकाश विभु है । इससे उसके टुकड़े नहीं हो सकते । परमाणु इसलिये मानने पड़े हैं कि जितने पदार्थ देखने में आते हैं सब छोटे छोटे टुकड़ों से बने हैं । इन टुकड़ों में से किसी एक को लेकर हम बराबर टुकड़े करते जायँ तो अंत में ऐसे टुकड़े होंगे जो हमें दिखाई न पड़ेंगे । किसी छेद से आती हुई सूर्य की किरणों में जो छोटे छोटे कण दिखाई पड़ते हैं उनके टुकड़े करने से अणु होंगे । ये अणु भी जिन सूक्ष्मतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बने होंगे उन्हीं का नाम परमाणु रखा गया है । न्याय और वैशेषिक के मत से इन्हीं परमाणुओं के संयोग से पृथ्वी आदि द्रव्यों की उत्पत्ति हुई है जिसका क्रम [[प्रशस्तपाद]] भाष्य में इस प्रकार लिखा गाय हैं - जब जीवों के कर्मकल के भोग का समय आता है तब महेश्वर की उस भोग के अनुकूल सृष्टि करने की इच्छा होती है । इस इच्छा के अनुसार जीवों के अद्दष्ट के बल से वायु परमाणुओं में चलन उत्पन्न होता है । इस चलन से उन परमाणुओं में परस्पर संयोग होता है । दो दो परमाणुओं के मिलने से 'द्वयणुक' उत्पन्न होते हैं । तीन द्वयणुक मिलने से 'त्रसरेणु' । चार द्वयणुक मिलने से 'चतुरणुक' इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं । इस प्रकार एक महान् वायु उत्पन्न होता है । उसी वायु में जल परमाणुओं के परस्पर संयोग से जलद्वयणुक जलत्रसेरणु आदि की योजना होते होते महान् जलनिधि उत्पन्न होता है । इस जलनिधि में पृथ्वी परमाणुओं के संयोग से द्वयणुकादी क्रम से महापृथ्वी उत्पन्न होती है । उसी जलनिधि में तेजस् परमाणुओं के परस्पर संयोग से महान् तेजोराशि की उत्पत्ति होती है । इसी क्रम से चारो महाभूत उत्पन्न होते हैं । यही संक्षेप में वैशेषिकों का '''परमाणुवाद''' है ।