"द्वैतवाद": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत कम|date=जून 2015}}
davattavad ka arth hai do isver. jasai ke sabhi janti hai bramha nai sarsti ki rachana ke hai . visnu nai dhram ke tatha mahesh in dono ka sangthan hai.
'''द्वैतवाद''' (संस्कृत शब्द ''द्वैत'' अर्थात दो से) दो भागों में अथवा दो भिन्न रूपों वाली स्थिति को निरूपित करने वाला एक शब्द है। इस शब्द के अर्थ में विषयवार भिन्नता आ सकती है। दर्शन अथवा धर्म में इसका अर्थ पूजा अर्चना से लिया जाता है जिसके अनुसार प्रार्थना करने वाला और सुनने वाला दो अलग रूप हैं। इन दोनों की मिश्रित रचना को द्वैतवाद कहा जाता है।<ref>{{cite book|title=दृष्टि के उस पार |author=जगदीश विष्णु पुरोहित |publisher=सी॰जी॰ एण्ड कम्पनी लखनऊ |page=[https://books.google.co.in/books?id=1StVBAAAQBAJ&pg=PT18 १८]}}</ref>
 
==सन्दर्भ==
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{{Authority control}}
[[श्रेणी:दर्शन]][[श्रेणी:सिद्धान्त]]