"विदेश मंत्रालय (भारत)": अवतरणों में अंतर

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==महासचिव==
चूँकि नेहरू प्रधानमन्त्री होने के साथ-साथ विदेश मन्त्री भी थे, अतः कार्य की अधिकता होने के कारण यह सोचा गया कि विदेश विभाग के कार्य को देखने के लिये एक योग्य व्यक्ति को नियुक्त किया जाये जो उन्हें सही परामर्श दे सके। 1947 से 1964 तक (एक वर्ष 1952 को छोड़) विदेश विभाग का कार्य भार एक महासचिव (Secretary General) सर गिरिजा शंकर वाजपेयी पर था। नेहरू का इन पर अटूट विश्वास था और वे इनसे निरन्तर परामर्श लेते रहते थे। 1964 में प्रधानमन्त्री [[लाल बहादुर शास्त्री]] द्वारा [[सरदार स्वर्णसिंह]] के विदेशमन्त्री नियुक्त कर देने पर यह सोचा गया कि अब महासचिव की आवश्यकता नहीं है, अतः यह पद समाप्त कर दिया गया। विदेश सचिव ही विभाग का सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है।
 
==विदेश मंत्रालय के विभाग==
विदेश सचिव की सहायतार्थ दो सचिव विदेशी मामले १ (Secretary External Affairs I) तथा सचिव विदेश मामले २ (Secratary External Affairs II) हुआ करते थे, बाद में इन्हें सचिव (पूर्व) (Secretary East तथा सचिव (पश्चिम) (Secretary West) कहा जाने लगा।
 
विदेश विभाग 20 उप विभागों (Division) मेंं बँटा है, जिनके अध्यक्ष अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव अथवा डायरेक्टर होते हैं। ये विभाग प्रशासनिक (Administrative), प्रादेशिक (Territorial) और कार्य सम्बन्धी (Functional) होते हैं । इनकी सहायता तथा परामर्श के लिये एक [[प्रशसन तंत्र]] (Bureaucracy) परसोपानिक (hierarchical) आधार पर संगठित होता है जिसमें कार्य करने की आज्ञा ऊपर से दी जाती है, प्रशासनिक विभाग केवल प्रशासन से ही सम्बन्धित है, अतः यह नीति निर्माण प्रक्रिया में कोई योगदान नहीं देता। अन्य दो विभागों-प्रादेशिक व कार्य सम्बन्ध- द्वारा सूचनाओं को एकत्रित कर विदेश मन्त्री को परामर्श दिया जाता है। सूचनाएँ, विश्वभर में फैले भारतीय दूतावासों तथा वाणिज्य दूतावासों से प्राप्त होती हैं।
 
भारतीय विदेश मन्त्रालय के निम्नलिखित विभाग हैंः-
 
* '''प्रादेशिक अथवा भौगोलिक आधार पर''' 9 विभाग हैं - अमेरिका, यूरोप, पश्चिमी और उत्तरी अफ्रीका, पाकिस्तान (2 उपविभाग) उत्तरी पूर्वी एशिया और दक्षिणी एशिया। हर डिविजन भौगोलिक आधार पर कई देशों को मिलाकर बनाया जाता है।
 
'''कानूनी और संधि विभाग''' (Legal and Treaties Division) - अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुई कानूनी समस्याओं, अधिकरणों (Tribunals), संधि, अनुसमर्थन आदि प्रश्न जिनसे भारत प्रत्यक्षः सम्बन्धित हो, इसी विभाग की देखरेख में सुलझाये जाते हैं।
 
'''वैदेशिक प्रचार विभाग''' (External Publicity Division) - विदेशों में भारतीय दष्ष्टिकोण को रखने तथा उसका प्रचार करने का मूल कार्य इस विभाग का है। हालांकि इस विभाग का कार्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी सहायक है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समारोहों (fairs and festivals) सद्भावना शिष्ट मण्डलों नाच-गान, खिलाड़ियों आदि के विनिमय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विभाग एक संयुक्त सचिव (विदेश प्रचार) के नेतृत्व में कार्य करता है, उसकी सहायतार्थ दो निदेशक (Director) एक उप-निर्देशक, कई सूचना अधिकारी तथा उप-सूचना अधिकारी होते हैं।
 
स्वतन्त्रता पूर्व ब्रिटिश भारत का एक '''विदेश प्रचार संगठन''' (External Publicity Organisation) था जिसे 1943 में '''प्रचार व प्रसारण विभाग''' (Department of Information and Broadcasting) ने अपने अन्तर्गत ले लिया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के तुरन्त पश्चात मार्च 1948 में नेहरू ने विदेश नीति के क्षेत्र में प्रचार के महत्व पर बल दिया। विदेश प्रचार विभाग को विदेश विभाग के नियन्त्रण में रखा गया। 1958 में यह निर्णय लिया गया कि विदेश प्रचार विभाग ही विदेश प्रचार के लिये मूलतः उत्तरदायी रहेगा। यह विभाग तीन प्रकार के प्रचार कार्य करता है- प्रेस को सूचना देना, विदेशों में प्रचार संस्थानों पर नियन्त्रण और विदेशों में प्रचार करना। 1963 में स्थापित विदेश प्रचार विभाग की एक नई शाखा- प्रोडक्शन यूनिट (Production Unit) प्रचार साहित्य का निर्माण करती है ।
 
'''ऐतिहासिक विभाग''' (Historical Division) - यह विभाग विदेश मन्त्रालय की सहायतार्थ विशेष विषयों पर शोधपत्र तैयार कराता है। इसका अपना एक अलग पुस्तकालय है।
 
'''प्रशासनिक विभाग''' (Administrative Division) - यह विभाग कार्यकर्त्ता वर्ग (Personnel) सेवा वर्ग आदि के प्रशासन का कार्य करता है। यह विदेशों में भारतीय दूतावासों व वाणिज्य दूतावासों की प्रशासनिक व्यवस्था की भी देखभाल करता है।
 
'''आर्थिक विभाग''' (Economic Division) -आर्थिक व तकनीकि आधार पर विदेशों के साथ भारतीय हितों के आधार पर सहयोग का कार्य इस विभाग के अधीन है।
 
'''नीति नियोजन व समीक्षा विभाग''' (Policy Planning and Review Division) - विदेश नीतियों का समीक्षात्मक अध्ययन कर बदलती हुई परिस्थितियों अनुसार भारत की भविष्य में क्या नीति होनी चाहिये, इस सम्बन्धा में यह विभाग को परामर्श देता है।
 
'''सुरक्षा, संचार, नागरिक सुरक्षा आदि विभाग''' (Security, Communications and Civil Defence Division) - यह विभाग संचार सुरक्षा आदि समस्याओं पर विचार करके विदेश विभाग तथा विदेशों में भारतीय दूतावासों को परामर्श देता रहता है।
 
'''गुप्त वार्ता विभाग''' (Intelligence Division) - विदेशों में स्थित दूतावासों का कर्त्तव्य है वे सभी साधनों का उपयोग करके सूचनायें एकत्रित करें तथा अपनी सरकार को ये सूचनायें निरन्तर भेजते रहें सभी देशों में गुपत विभाग यह कार्य करते हैं।
 
भारत में गुप्त विभाग (Intelligence Bureau) गृह मन्त्रालय के नियन्त्रण में कार्य करता था। प्रतिरक्षा मन्त्रालय की सहायतार्थ 1956 में एक संयुक्त गुप्त संगठन (Joint Intelligence Organisation) की स्थापना की गई थी। इसके दो भाग चीन व पाकिस्तान सम्बन्धी सूचनायें एकत्रित करते हैं। विदेश नीति की आदर्शवादिता के कारण गुप्त विभाग अधिक योग्यता और निपुणता से कार्य नहीं कर पाया था। 1967 में विदेश गुप्त संगठन (External Intelligence Organisation) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य पड़ौसी राज्यों से सैनिक सूचनाओें की प्राप्ति था। विदेशी दूतावासों में सैनिक अताशे भी गुप्त सैनिक सूचनायें एकत्रित करके मन्त्रालय को भेजते हैं। गृह तथा प्रतिरक्षा मन्त्रालय भी विदेश मन्त्रालय की भाँति गुप्त सूचनाएँ एकत्रित करते हैं। इन विभागों के मध्य समन्वय बैठाने वाली संस्था गुप्तचर समिति (Joint Intelligence Committee) है। 1965 में इस समिति का पुनर्गठन किया गया। अब इसकी सदस्यता विदेश, गृह तथा प्रतिरक्षा मन्त्रालयों के तीन संयुक्त सचिवों, तीन सैनिक गुंप्त विभागों के अधयक्षों तथा गृह-विभाग के एक सदस्य से पूरी होती है। इसके अलावा एक निरीक्षक विभाग (Inspectorate) भी है जो एक विशेष अतिरिक्त सचिव (Additional Secretary) के नेतृत्व में कार्य करता है। इसका मूल कार्य विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों के कार्य करने की रीति और क्षमता का अनुमान लगाना तथा समय-समय पर उनका दौरा करके राजनयिक अभिकर्त्ताओं के वेतन और भत्ते आदि पर विचार करते हुए उनके बढ़ाने का परामर्श देना होता है साथ ही ये दूतावास अधिकारियों के प्रशासन, व्यय, तथा उनके कार्यों का निरीक्षण कर अपनी सरकार को प्रतिवेदन देते हैं जिनमें भारतीय विदेश दूतावासों व राजनयिक अभिकर्त्ताओं के कार्यों की उन्नति, नियमों का उचित पालन, व्यय पर नियन्त्रण आदि ये सिफारिशें करते हैं।
 
'''गुप्त वाहक व्यवस्था''' (Carries of Diplomatic Bag) के अधिकारी भी विदेश मंन्त्रालय के संगठन के ही एक भाग है । इनका मूल कार्य अपने देश अथवा दूतावास द्वारा भेजे गये दूतावास प्रेष को सुरक्षापूर्ण लाना व ले जाना है।
 
'''कल्याण विभाग विभाग''' (Welfare Unit) मन्त्रालय का कल्याण एक मुख्यालय तथा विदेश स्थित मिशनों में काम करने वाले सभी अधिकारियों के कल्याण की देखभाल करता है। एक विशेष कोष (Self Benefit Fund) में से कर्मचारियों को आवश्यकता पड़ने पर धान से सहायता की जाती है।
 
==हिन्दी में कार्य==