"बटेश्वर": अवतरणों में अंतर

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बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें बनारस की भाँति बीच-बीच में रिक्त नहीं दिखलाई पड़ता। बटेश्वर के घाटों पर स्थित मन्दिरों की संख्या 101 है। यमुना की धारा को मोड़ देने के कारण 19 मील का चक्कर पड़ गया है। भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में संस्कृत विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर भी बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। शौरीपुर के सिद्धि क्षेत्र की खुदाई में अनेक वैष्णव और जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ के वर्तमान शिव मन्दिर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। एक मन्दिर में स्वर्णाभूषणों से अलंकृत पार्वती की 6 फुट ऊँची मूर्ति है, जिसकी गणना भारत की सुन्दरतम मूर्तियों में की जाती है।
 
==इन्हें भी देखें==
== ''' बाहरी कङियाँ''' ==
# *[[http://bateshwar.blogspot.in बटेश्वर गाँव, बाह (आगरा)]]
 
== ''' बाहरी कङियाँ''' कड़ियाँ==
* [http://bateshwar.blogspot.in बटेश्वर]
 
[[श्रेणी:आगरा]]