"संगीतरत्नाकर": अवतरणों में अंतर

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संगीत रत्नाकर में कई [[ताल|तालों]] का उल्लेख है। इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में अब बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था। १०००वीं सदी के अंत तक, उस समय प्रचलित संगीत के स्वरूप को 'प्रबंध' कहा जाने लगा। प्रबंध दो प्रकार के हुआ करते थे - निबद्ध प्रबंध व अनिबद्ध प्रबंध। निबद्ध प्रबंध को ताल की परिधि में रहकर गाया जाता था जबकि अनिबद्ध प्रबंध बिना किसी ताल के बंधन के, मुक्त रूप में गाया जाता था। प्रबंध का एक अच्छा उदाहरण है [[जयदेव]] रचित [[गीत गोविंद]]।
 
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