"गोलाध्याय": अवतरणों में अंतर

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'''गोलाध्याय''', [[भास्कराचार्य]] द्वारा रचित ग्रन्थ [[सिद्धान्त शिरोमणि]] के चार भागों में से एक भाग है। अन्य तीन भाग [[लीलावती]], [[बीजगणित]], तथा [[ग्रहगणित]] हैं।<ref>{{cite book|title=Glimpses of Indian Culture |trans_title=भारतीय संस्कृति की झलक |url= http://books.google.be/books?id=-fw-0iBvmMAC |author=दिनकर जोशी |publisher= स्टार पब्लिकेशन |year=२००५ |language=अंग्रेज़ी|page=७१-७२ |isbn=9788176501903}}</ref>
 
इसमें चक्रवाल गणित का एक प्रश्न देखिए-
: '' का सप्तषष्टिगुणिताकृतिरेकयुक्ता
: '' का चैकष्टि गुणिता च सखे सरूपा ।
: '' स्यानमूलता यदि कृतिप्रकृतिर्नितान्तं
: ''त्नच्चेतसि प्रवद तात तता लतावत् ॥
 
: (तात्पर्य है कि वह कौन सा वर्ग है जिसे ६७ से गुणा कर उसमें १ का वर्ग जोड़ दें, अथवा वह कौन सा वर्ग है जिसे ६१ से गुणा करके १ का वर्ग जोड़ देंने से प्राप्त अंक पूर्ण वर्ग हो जाता है (या उसका निरवयव वर्गमूल मिल जाता है।)।
 
== सन्दर्भ ==