"अंगुत्तरनिकाय": अवतरणों में अंतर

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{{त्रिपिटक}}
'''अंगुत्तर निकायअंगुत्तरनिकाय''' एक महत्त्वपूर्ण [[बौद्ध]] ग्रंथ है। इसकेयह अनुवादक[[सुत्तपिटक]] भदंतके आनंदपाँच कोशल्यायननिकायों हैं।में इसकोसे वर्तमानचौथा समयनिकाय है। अङुत्तरनिकाय में [[गौतम बुद्ध]] और उनके मुख्य शिष्यों के हजारों उपदेश संग्रहीत हैं। अंगुत्तरनिकाय का [[हिन्दी]] [[अनुवाद]] [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] ने किया है जिसे महाबोधि सभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित किया गया है।<ref>{{cite web |url= http://www.nnl.gov.np/bookdetail.php?id=20117|title= नेपाल नेशनल लाइब्रेरी|access-date=१६ दिसंबर 2007|format= पीएचपी|publisher=नेपाल सरकार|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें [[भारतीय इतिहास]] की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ निहित हैं। ‘[[त्रिपिटक]]’ इनका महान ग्रन्थ है। सुत, विनय तथा अमिधम्म मिलाकर ‘त्रिपिटक’ कहलाते हैं। बौद्ध संघ, मिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान [[विनय पिटक]] में प्राप्त होते हैं। सुत्त पिटक में [[गौतम बुद्ध|बुद्धदेव]] के धर्मोपदेश हैं।
 
अंगुत्तरनिकाय में ११ 'निपात' (अध्याय) हैं जिनमें १ से लेकर ११ की संख्या के क्रम में भगवान बुद्ध के उपदेश संग्रहित किये गये हैं। प्रत्येक अंक की संख्या एक अध्याय या निपात है, जो 'अंक'-वार विषयों का प्रतिपादन करता है। प्रथम निपात का नाम 'एककनिपात' है जिसमें [[धम्म]] (धर्म) की व्याख्या 'एक' प्रकार से की गई। द्वितीय निपात का नाम 'दुकनिपात' है और उसमें धर्म की व्याख्या 'दो' दृष्टियों से की गयी है। इस तरह क्रमशः एकादसक-निपात तक ग्यारह-ग्यारह प्रकार से धर्म की व्याख्या की गई है। एकक-निपात से अंकों में वृद्धि होते हुए दुक-तिक-चतुक्क-पञ्चक-छक्क-सत्तक-अट्ठक-नव-दसक-एकादसक इस प्रकार क्रम से 'अंको की वृद्धि' (अंकोत्तर) चलती है। अतः ‘अंगुत्तरनिकाय’ (अंकोत्तरनिकाय) यह नाम पूर्णतः सार्थक तथा समुचित ही प्रतीत होता है। वस्तुतः अंगुत्तरनिकाय, [[एकोत्तर आगम]] की शैली में रचित ग्रन्थ है जिस शैली का अनेक सुत्तपिटकों में अनुसरण देखने को मिलता है।
गौतम निकायों में विभक्त हैं- इसमें से
 
* प्रथम दीर्घ निकाय में बुद्ध के जीवन से संबद्ध एवं उनके सम्पर्क में आए व्यक्तियों के विशेष विवरण हैं।
अंगुत्तर निकाय के केसमुत्ति सुत्त में जिस प्रकार से वैज्ञानिक चेतना तथा बौद्धिकता को जागृत करने तथा अन्धविश्वासों तथा घिसी-पिटी बातों नकारने की बात की गई है, वह अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्तुतः इस सुत्त के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही बौद्ध साहित्य तथा बौद्ध-ज्ञान परम्परा प्रतिष्ठा को प्राप्त हुई
* दूसरे संयुक्त निकाय में छठी शताब्दी पूर्व के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है,
 
* तीसरे मझिम निकाय को भगवान बुद्ध को दैविक शक्तियों से युक्त एक विलक्षण व्यक्ति मानता है। और
* चौथे, अंगुत्तर निकाय में सोलह महानपदों[[महाजनपद|महाजनपदों]] की सूची मिलती हैं।<ref>{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/ruh0002.htm|title= रुहेलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास|access-date=१६ दिसंबर 2007|format= एचटीएम|publisher=टेक्नालॉजी डेवलेपमेंट फ़ॉर इंडियन लैंगुएजेज़|language=}}</ref>
 
==संरचना==
अंगुत्तरनिकाय में ११ निपात हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
# एककनिपात
# दुकनिपात
# तिकनिपात
# चतुक्कनिपात
# पञ्चकनिपात
# छक्कनिपात
# सत्तकनिपात
# अट्ठकादिनिपात
# नवकनिपात
# दसकनिपात
# एकादसकनिपात
 
इसके अतिरिक्त पाँचवें, खुद्दक निकाय लघु ग्रंथों का संग्रह है जो छठी शताब्दी ई. पूर्व से लेकर मौर्य काल तक का इतिहास प्रस्तुत करता है। अमिधम्म पिटक में बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धान्त हैं। कुछ अन्य बौद्ध ग्रंथ भी हैं। मिलिंदमन्ह में यूनानी शाशक मिनेण्डर और बौद्ध मिक्षु नागसेन के वार्तालाप का उल्लेख है।<ref>{{cite web |url= http://www.pustak.org/bs/home.php?bookid=4528|title= प्राचीन भारत का राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास|access-date=१६ दिसंबर 2007|format= पीएचपी|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी:सुत्तपिटक]]
[[श्रेणी:पाली साहित्य]]
[[श्रेणी:चित्र जोड़ें]]