"स्कन्द पुराण": अवतरणों में अंतर

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=== ब्रह्मखण्ड ===
इसमे पहले सेतुमाहात्म्य प्रारम्भ करके वहां के स्नान और दर्शन का फ़लफल बताया गया है, फ़िरफिर [[गालव]] की तपस्या तथा राक्षस की कथा है, तत्पश्चात देवीपत्तन में चक्रतीर्थ आदि की महिमा, वेतालतीर्थ का माहात्म्य और पापनाश आदि का वर्णन है, मंगल आदि तीर्थ का माहात्म्य ब्रह्मकुण्ड आदि का वर्णन हनुमत्कुण्ड की महिमा तथा अगस्त्यातीर्थ के फ़लफल का कथन है, रामतीर्थ आदि का वर्णन लक्ष्मीतीर्थ का निरूपण शंखतीर्थ की महिमा साध्यातीर्थ के प्रभावों का वर्णन है, फ़िरफिर रामेश्वर की महिमा तत्वज्ञान का उपदेश तथा सेतु यात्रा विधि का वर्णन है, इसके बाद धनुषकोटि आदि का माहात्म्य क्षीरकुण्ड आदि की महिमा गायत्री आदि तीर्थों का माहात्म्य है। इसके बाद धर्मारण्य का उत्तम माहात्मय बताया गया है जिसमे भगवान शिव ने स्कन्द को तत्व का उपदेश दिया है, फ़िरफिर धर्माण्यधर्मारण्य का प्रादुर्भाव उसके पुण्य का वर्णन कर्मसिद्धि का उपाख्यान तथा ऋषिवंश का निरूपण किया गया है,है। इसके बाद वर्णाश्रम धर्म के तत्व का निरूपण है, तदनन्तर देवस्थान-विभाग और बकुलादित्य की शुभ कथा का वर्णन है। वहां छात्रानन्दा, शान्ता, श्रीमाता, मातंगिनी, और पुण्यदा ये पांच देवियां सदा स्थित बतायी गयी है। इसके बाद यहां इन्द्रेश्वर आदि की महिमा तथा [[द्वारका]] आदि का निरूपण है, लोहासुर की कथा गंगाकूप का वर्णन श्रीरामचन्द्र का चरित्र तथा सत्यमन्दिर का वर्णन है, फ़िरफिर जीर्णोद्धार की महिमा का कथन आसनदान जातिभेद वर्णन तथा स्मृति-धर्म का निरूपण है। इसके बाद अनेक उपाख्यानो से युक्त [[वैष्णव धर्म]] का निरूपण है। इसके बाद मुण्यमय चातुरमास्य का माहात्म्य प्रारम्भ करके उसमें पालन करने योग्य सब धर्मों का निरूपण किया गया है, फ़िरफिर दान की प्रसंसाप्रसंशा, व्रत की महिमा, तपस्या और पूजा का माहात्म्य तथा सच्छूद्र का कथन है,है। इसके बाद प्रकृतियों के भेद का वर्णन शालग्राम के तत्व का निरूपण [[तारकासुर]] के वध का उपाय, गरुडपूजन की महिमा, विष्णु का शाप, वृक्षभाव की प्राप्ति, पार्वती का अनुभव, भगवान शिव का ताण्डव नृत्य, रामनाम की महिमा का निरूपण शिवलिंगपतन[[शिवलिंग]]पतन की कथा, पैजवन शूद्र की कथा, पार्वती के जन्म और चरित्र, तारकासुर का अद्भुत वध, प्रणव के ऐश्वर्य का कथन, तारकासुर के चरित्र का पुनर्वणन, दक्ष-यज्ञ की समाप्ति, द्वादशाक्षरमंत्र का निरूपण ज्ञानयोग का वर्णन, द्वादश सूर्यों की महिमा तथा चातुर्मास्य-माहात्म्य के श्रवण आदि के पुण्य का वर्णन, किया गया है, जो मनुष्यों के लिये कल्याणकारक है। इसके बाद ब्राह्मोत्तर भाग में भगवान शिव की अद्भुत महिमा पंचाक्षरमंत्र के माहात्म्य तथा गोकर्ण की महिमा है, इसके बाद शिवरात्रि की महिमा प्रदोषव्रत का वर्णन है, तथा सोमवारव्रत की महिमा एवं सीमन्तिनी की कथा है। फ़िरफिर भद्रायु की उत्पत्ति का वर्णन सदाचार-निरूपण शिवकवच का उपदेश भद्रायु के विवाह का वर्णन भद्रायु की महिमा भस्म-माहात्म्य-वर्णन, शबर का उपाख्यान, उमामहेश्वर व्रत की महिमा, रुद्राक्ष का माहात्म्य, रुद्राध्याय के पुण्य तथा ब्रह्मखण्ड के श्रवण आदि की महिमा का वर्णन है।
 
=== काशीखण्ड ===