"बंगाल का विभाजन (1905)": अवतरणों में अंतर

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== पृष्ठभूमि ==
सर्वप्रथम 1903 में बंगाल के विभाजन के बारे में सोचा गया। चिट्टागांग[[चटगाँव]] तथा [[ढाका]] और [[मिमन सिंह जिला|मैमनसिंह]] के जिलों को बंगाल से अलग कर [[असम]] प्रान्त में मिलाने के अतिरिक्त प्रस्ताव भी रखे गए थे। इसी प्रकार [[छोटा नागपुर]] को भी केन्द्रीय प्रान्त से मिलाया जाना था। सन् 1903 में ही [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] का भी 19वाँ अधिवेशन [[मद्रास]] में हुआ था। उसी अवसर पर उसके सभापति श्री [[लालमोहन घोष]] ने अपने अभिभाषण में सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति की आलोचना करते हुए एक अखिल भारतीय मंचपर आसन्न वंगभंग की सूचना दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का एक षड्यंत्र चल रहा है।
 
सरकार ने आधिकारिक तौर पर 1904 की जनवरी में यह विचार प्रकाशित किया और फरवरी में [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने बंगाल के पूर्वी जिलों में विभाजन पर जनता की राय का आकलन करने के लिए अाधिकारिकआधिकारिक दौरे किये। उन्होंने प्रमुख हस्तियों के साथ परामर्श किया और ढाका, चटगांव तथा मैमनसिंह में भाषण देकर विभाजन पर सरकार के रुख को समझाने का प्रयास किया। [[हेनरी कॉटन|हेनरी जॉन स्टेडमैन कॉटन]], जो कि 1896 से 1902 के बीच आसाम के मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर) थे, ने इस विचार का विरोध किया।
 
काँग्रेस के अगले अधिवेशन में सभापति पद से बोलते हुए सर हेनरी कॉटन ने भी यह कहा कि यदि यह बहाना है कि इतने बड़े प्रांतप्रान्त को एक राज्यपाल सँभाल नहीं सकता तो या तो बंबई और मद्रास की तरह बंगाल का शासनसूत्र सपरिषद् राज्यपाल के सिपुर्द हो या बँगला भाषियों को अलग करके एक प्रांतप्रान्त बनाया जाए। उन दिनों बंगाल प्रांत में [[बिहार]] और [[उड़ीसा]] भी शामिल थे।
 
पर ब्रिटिश सरकार ने न तो कांग्रेस की परवाह की, न जनमत की। उस समय के वायसराय और गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने लैंड होल्डर्स एसोसिएशन या जमींदार सभा में लोगों को यह समझाने की चेष्टा की कि वंगभंग से लाभ ही होगा। वह स्वयं पूर्व बंगाल में भी गए, पर मुट्ठी भर मुसलमानों के अतिरिक्त किसी ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। मुसलमानों में प्रतिष्ठित ढाका के तत्कालीन नवाब ने भी प्रथम आवेश में इसका विरोध किया था।