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महाराव लखपत या राव लखपतजी जड़ेजा राजपूत वंश के कच्छ के राव थे। उन्होने कच्छ राज्य पर रिजेन्ट के रूप में १७४१ से १७५२ तक शासन किया। उसके बाद अपने पिता देशाजी की मृत्यु के पश्चात १७५२ से १७६० तक इसके शासक रहे। उन्होने लोकभाषाओं एवं उनके काव्यशास्त्र के अध्ययन के लिए भुज में एक काव्यशाला की स्थापना की थी जो 'डिंगल काव्यशाला' या 'भुज नी पोशाळ' के नाम से प्रसिद्ध हुई।

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