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यह वाक्य उपनिषदों एवं [[अवधूत गीता]] में इस तरह आया है-
: ''तत्त्वमस्यादिवाक्येन स्वात्मा हि प्रतिपादितः।
: ''नेति नेति श्रुतिर्ब्रूयादश्रुतिर्ब्रूयादनृतं अनृतं पांचभौतिकम्पाञ्चभौतिकम् ॥ १.२५॥
 
: अर्थ : 'तत्वमसि' आदि वाक्य के द्वारा अपनी [[आत्मा]] का ही प्रतिपादन किया गया है। असत्य, जो पांच अवयवों से बना है, उसके बारे में श्रुति कहती है- नेति नेति (यह नहीं, यह नहीं)।
 
ब्रह्मज्ञान के इच्छुक व्यक्ति को यह वाक्य पहले यह समझाता है कि 'ब्रह्म क्या-क्या नहीं है'। पाश्चात्य संस्कृति में इसके संगत '[[वाया निगेटिवा]]' (via negativa) है।