श्रीमती शालिनी ताई मोघे (१९१२ - ३० जून २०११) शिक्षाविद एवं समाजसेविका थीं। वे शिक्षा में हिंदी मांटेसरी की जननी एवं प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक थीं। १९६८ मे भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। सामाजिक गतिविधियों में तत्पर रहने वाली मोघे की देखरेख में शहर में 12 विभिन्न सामाजिक संस्थाओं संचालित हो रही थीं। वे इन्दौर के बाल निकेतन संघ की संस्थापिका थीं।

शालिनी ताई ने भारत के विभाजन से पहले कराची से मॉन्टेसरी डिप्लोमा किया था और वहां उन्हें विख्यात शिक्षाविद मारिया मॉन्टेसरी से प्रशिक्षण लेने का मौका मिला था। लौटने के बाद उन्होंने इंदौर में मॉन्टेसरी अध्यापक प्रशिक्षण केन्द्र खोला था। वह प्रदेश की पहली मॉन्टेसरी प्रशिक्षित अध्यापिका थीं । बाद में उन्होंने बाल निकेतन संघ की स्थापना की जो आदर्श स्कूल के रूप में ख्यात हुआ।

शालिनी ताई मोघे एकीकृत बाल बाल विकास योजना (आईसीडीएस) से जुड़ीं और झाबुआ निमाड़ के गांवों में बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत काम किया। आंगनवाडि़यों, बालवाडि़यों के जरिए गरीब वर्ग के बच्चों और महिलाओं के विकास के लिए जीवन भर जुटी रहीं। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा था। २०११ में उनका निधन हुआ।

ताई ने घर और बाहर के कामों में संतुलन बना रखा था। वे महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रभावित थीं, इसलिए हमेशा सादगी पर जोर देती थीं और अपने विद्यार्थियों को भी यही सिखाती थीं। ताई बच्चों को केवल किताबी शिक्षा देने के पक्ष में नहीं थीं। वह ग्रामीण जनजीवन से परिचित करवाने के लिए स्कूल ट्रिप आसपास के गांवों में ले जाती थीं। वे मूल्य आधारित शिक्षा की पक्षधर थीं इसलिए सारा जोर शिक्षा के साथ संस्कारों पर रहता था।

इन्दौर शहर की विभिन्न हस्तियों में शालिनी मोघे का अपना एक अलग ही स्थान था। गरीब-आदिवासी महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए हमेशा आगे रहने वाली ताई के परिवार में दो लड़के व दो लड़कियां है। सुधीर और विजय मुंबई में रहते हैं, सेवानिवृत इंजीनियर हैं। जबकि दो लड़कियां मीना फड़के और डॉ॰ नीलिमा अदमणे नागपुर में रहती हैं। पति मोटेश्वर मोघे का स्वर्गवास 17 अक्टूबर 2005 में हुआ था। शालिनी मोधे पागनीसपागा में अपने पोते नंदन हर्डिकर के साथ रहती थीं।

सम्मान एवं पुरस्कार

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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