त्रिपुरसुन्दरी

शक्तिरुप परमतत्व् की जननी
(षोडशी से अनुप्रेषित)

त्रिपुरासुन्दरी दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक हैं। इन्हें 'महात्रिपुरसुन्दरी', षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, ललितागौरी, पद्माक्षी रेणुका तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं। वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। यह देवी त्रिगुणना का तांत्रिक स्वरूप है।

त्रिपुरा सुंदरी
आदिशक्ति का सर्वोत्तम स्वरूप,मणिद्वीप की महारानी
संबंध देवी, आदि पराशक्ति, महाविद्या,परब्रह्म, महादेवी, पार्वती, काली,भुवनेश्वरी, अंबिका, दुर्गा, भवानी, कामाक्षी, पद्माक्षी रेणुका
निवासस्थान मणिद्वीप
अस्त्र पाश, अंकुश, धनुष और वाण [1]
जीवनसाथी कामेश्वर
संतान अशोक सुंदरी
सवारी सिंहासन
त्यौहार ललिता पंचमी
चतुर्भुजा ललिता रूप में पार्वती, साथ में पुत्र गणेश और स्कन्द हैं। ११वीं शताब्दी में ओड़िशा में निर्मित यह प्रतिमा वर्तमान समय में ब्रिटिश संग्रहालय लन्दन में स्थित है।

त्रिपुरसुन्दरी के चार कर दर्शाए गए हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है।[उद्धरण चाहिए] जो इनका आश्रय लेते है, उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना करते हैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान कर देती हैं।[उद्धरण चाहिए] चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है। आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है।[उद्धरण चाहिए] एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से पूछा, ‘भगवन! आपके द्वारा वर्णित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइये।’ तब पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को प्रकट किया।[उद्धरण चाहिए]

भैरवयामल और शक्तिलहरी में त्रिपुर सुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है।

[2]

ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। इनकी उपासना श्री चक्र में होती है। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाता है- भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं।[उद्धरण चाहिए]

त्रिपुरसुन्दरी, काली का रक्तवर्णा रूप हैं। काली के दो रूप कृष्णवर्णा और रक्तवर्णा हैं। त्रिपुर सुंदरी धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की अधिष्ठात्री देवी हैं। इससे पहले की महाविद्याओं में कोई भोग तो कोई मोक्ष में विशेष प्रभावी हैं लेकिन यह देवी समान रूप से दोनों ही प्रदान करती हैं।

तीन रूप संपादित करें

इस विद्या के तीन रूप हैं-

  1. आठ वर्षीय बालिका बाला, त्रिपुर सुंदरी
  2. षोडष वर्षीय, षोडषी
  3. युवा स्वरूप, ललिता त्रिपुरसुन्दरी
  4. आदिशक्ती मुळरुप पद्माक्षी रेणुका त्रिपूर्भैरवी

साधना पद्धति संपादित करें

त्रिपुरसुन्दरी की साधना में इनके तीनों रूपों के क्रम का ध्यान रखना आवश्यक है। जिन्होंने सीधे ललिता त्रिपुरसुन्दरी की उपासना की उन्हें शुरू में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

दुष्प्रचार संपादित करें

अनेक तथाकथित वैष्णव ये दुष्प्रचार कर रहे हैं कि मां त्रिपुर सुन्दरी लक्ष्मी की स्वरूप हैं जबकि वास्तव में यह सत्य नहीं है। हां, वे लक्ष्मी जी की तरह चतुर्भुजा हैं तथापि उनके आयुध तथा स्वरूप लक्ष्मी जी से सर्वथा भिन्न हैं। श्री ब्रह्माण्ड पुराण के अंतर्गत ललितोपाख्यान में ही यह स्पष्ट है कि मां त्रिपुर सुंदरी का विवाह परम भगवान कामेश्वर के साथ हुआ था जो भगवान सदाशिव के सगुण स्वरूप हैं। ध्यातव्य है कि विविध रूपों में एक ही आदिशक्ति प्रकट होकर लीलाएं करतीं हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि शास्त्रों से इतर कोई भी दुष्प्रचार किया जाए।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Kinsley, David (1998). Tantric Visions of the Divine Feminine: The Ten Mahāvidyās. Motilal Banarsidass Publ. पृ॰ 112. मूल से 2 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मार्च 2018.
  2. "षोडशी महाविद्या". मूल से 31 दिसम्बर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फरवरी 2015.

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें