सदस्य:Mansi Goyat/प्रयोगपृष्ठ/1
बाणी पर्व का परिचय
संपादित करेंआन्ध्र प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है जहाँ पर भक्त मरने और मारने की कोशिश करते हैं | देवरगटटू मंदिर जो कि आन्ध्र प्रदेश के कुरनूल क्षेत्र में पडता है, वहाँ पर सौ से भी अधिक लोग बडी-बडी लाठियाँ एक दूसरे के सिर पर मारते हैं | यह कार्यक्रम 'बाणी पर्व' पर आयोजित किया जाता है |
रीति-रिवाज़
संपादित करेंयह मंदिर आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक की सीमा पर स्थित है | इस कारण यहाँ पर दोनो राज्यों से लोग बडी संख्या में इसमें भाग लेते हैं | रीति-रिवाज उस समय शुरु होते हैं जब मलम्मा (पार्वती) और मल्लेश्वरा स्वामी (शिव) दोनो की मूर्तियाँ पहाड पर बने मंदिर नेरनेकी तक ले जाई जाती है | वहाँ पर लोग, ज्यादातर किसान अपने खून से भरे हुए सफेद कपडों की परवाह नहीं करते और शाम से सुबह होने तक जीत की परेड मनाते हैं |[1]
खेल की हिन्स्रता
संपादित करेंवहाँ पर चिकित्सक भी फटे हुए सिरों पर टाँके लगाने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन लोग अपने आप ही घावों पर हल्दि लगाते हैं और वहाँ से चले जाते हैं | मंदिर के अधिकारी इस हिंस्रक खेल के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होते | सुनने में तो यह भी आया है कि पूराने समय में लाठियों की जगह कुल्हाडियों और भालों का भी प्रयोग किया जाता था | यह एक जानलेवा और खतरनाक खेल है |जमीन पर गिरा हुआ खून भगवान के चरणों में चढाने के समान माना जाता है |
पर्व की प्रक्रिया
संपादित करेंकुछ घंटो बाद ही भगवान की मूर्तियाँ मंदिर में ले जाई जाती हैं | वहाँ पर पूजा आदि के बाद इन्हें पंडालकट्टा ले जाया जाता है | इसके बाद पुजारी अपनी जाँघ को थोडा काटकर उससे निकला खून चन्दन के घोल में मिलाकर भगवान पर चढाता है | घोल चढाने के बाद वह 'बाणी' नामक पेड की तरफ जाता है | शुक्रवार की सुबह करीब छः बजे पंडित श्री बसवेश्वरा मंदिर के बाहर खडा होकर इस त्योहार के महत्व के बारे में बताता है | लोग बहुत ध्यान से उन्की बातों को सुनते हैं | उसके बाद फिरसे लट्ठ मार खेल शुरु हो जाता है | धीरे-धीरे भगवान की मुर्तियाँ सिंहासन कट्टे में रख दी जाती है और एक बार फिरसे पूजा होती है | शनिवार को पंडित एक लोहे कि चेन लेता है और उसका एक सिरा अपने हाथ में बांध देता है | दूसरा सिरा एक बडे पत्थर पर बांधकर उस लोहे की चेन को तोड देता है |[2]
बाणी पर्व कि समाप्ति इस लोहे की चेन के टूटने से होती है | दक्षिण भारत का यह एक लोकप्रिय पर्व माना जाता है |