कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत

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Karl Marx

माक्र्सवाद में, माक्र्सवादी वर्ग सिद्धान्त यह दावा करता है कि वर्ग पदानुक्रम में एक व्यक्ति का स्थान उत्पादन की प्रक्रिया में उसकी भूमिका के द्वारा निर्धारित किया जाता है, और यह तर्क देता है कि राजनैतिक एवं वैचारिक चेतना का निर्धारण वर्गीय स्थान के द्वारा किया जाता है।, माक्र्सवादी वर्ग सिद्धान्त के अन्तर्गत, उत्पादन प्रक्रिया की संरचना वर्ग निर्माण का आधार बनाती है।

माक्र्सवादी वर्ग सिद्धान्त वैकल्पिक स्थानों की एक श्रंखला, मुख्यतः ई.पी. थाॅम्पसन एवं मारियो ट्रोंटी जैसे विद्वानों के लिए खुला रहा है। थाॅम्पसन और ट़ोंटी दोनों सुझाव देते हैं कि उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत वर्ग चेतना उत्पादक संबंधों के निर्माण से पहले आती है। इस अर्थ में, माक्र्सवादी में वर्ग सिद्धान्त अक्सर पहले से विद्यमान वर्ग संघर्षों पर चर्चा करता है।

माक्र्सवादी सिद्धान्त का उद्भव

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माक्र्सवादी वर्ग सिद्धान्त को विभिन्न् दार्शनिक विचारधारा से लिया गया है जैसे, हेगेलियनवाद, स्काॅटिश अनुभववाद और अंग्रेजी-फ्रांसीसी राजनैतिक-अर्थशास्त्र से लिया गया है। माक्र्स के वर्ग के विचार का उद्भव सामाजिक अलगाव और मानवीय संघर्ष से संबंधित व्यक्तिगत रूचियों की श्रंखलाओं से हुआ, और इसलिए वर्ग संरचना का निर्माण तीक्ष्ण ऐतिहासिक चेतना से संबंधित है। “आय की उत्पत्ति” के विचार पर केन्द्रित राजनैतिक-अर्थशास्त्र ने भी माक्र्स के सिद्धान्तों में योगदान किया है, जिसमें समाज को तीन उप-समूहों में विभाजित किया जाता हैः नौकरशाह, पूंजीवादी और मजदूर। यह संरचना डेविड रिकार्डो के पूंजीवादी सिद्धान्त पर आधारित है। माक्र्स ने सत्यापनीय वर्ग संबंधों पर चर्चा के द्वारा इसे बल दिया।

माक्र्स ने वर्ग को सामाजिक प्रतिष्ठा की बजाय उत्पादक संबंधों में निहित होने के रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया। उसका राजनैतिक और आर्थिक विचार वितरण के विरूद्ध उत्पादन में रूचि की ओर विकसित हुआ और इसीलिए, यह उसकी वर्ग अवधारणा का केन्द्रिय विषय बन गया।

वर्ग संरचना

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माक्र्स दो मापदण्डों के आधार पर एक वर्ग को दूसरे से अलग करता हैः उत्पादन के साधनों का स्वामित्व एवं दूसरों की श्रम शक्ति पर नियंत्रण। इससे, वह बताता है कि आधुनिक समाज में तीन विशिष्ट वर्ग हैंः 1. पूंजीवाद या बुर्जुआ उत्पादन के साधनों के स्वामी हैं और वे दूसरों की श्रम शक्ति को खरीदते हैं

2. मजदूर या साधारण जन, जिनके पास उत्पादन का कोई साधन या दूसरों की श्रम शक्ति को खरीदने की क्षमता नहीं है। इसकी बजाय, वे स्वयं की श्रम शक्ति को बेचते हैं

3. छोटे बुर्जुआ के रूप में जाना जाने वाला एक छोटा, परिवर्तनशील वर्ग जिनके पास उत्पादन के पर्याप्त साधन हैं लेकिन वे श्रम शक्ति को नहीं खरीदते हैं। माक्र्स का साम्यवादी घोषणापत्र छोटे बुर्जुआ को “छोटे पूंजीवादियों” से आगे परिभाषित करने में असफल हो जाता है।

इस प्रकार वर्ग का निर्धारण संपदा संबंधों के द्वारा किया जाता है, न कि आय या प्रतिष्ठा के द्वारा। इन अवयवों का निर्धारण वितरण एवं उपभोग द्वारा किया जाता है, जो वर्गों के उत्पादन एवं शक्ति संबंधों का प्रतिबिम्ब दिखाते हैं।

वर्ग संबंधों की प्रकृतिः संघर्ष

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“आज तक विद्यमान समाज का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास है... स्वतंत्र और गुलाम, अभिजात और साधारण, स्वामी और दास, संघ अध्यक्ष और मजदूर, एक शब्द में, उत्पीड़क और उत्पीडि़त निरन्तर एक-दूसरे के विरोध में खड़े रहे और कभी खुलकर और कभी छिपकर, अबाध रूप से लड़ते रहे जिसका परिणाम या तो वृहद् स्तर पर क्रान्तिकारी समाज के पुनर्निर्माण में हुआ या संघर्षरत वर्गों की तबाही में हुआ... सामंती समाज की तबाही से उगे आधुनिक बुर्जुआ समाज ने वर्ग शत्रुता को समाप्त नहीं किया है। इसकी बजाय उसने नए वर्गों, उत्पीड़न की नई दशाओं और संघर्ष के पुराने स्वरूपों की जगह नए स्वरूपों को स्थापित किया है। परन्तु, पूंजीपतियों के हमारे युग की एक विशेषता हैः इसने वर्ग शत्रुता को सरल कर दिया है। समाज वृहद् स्तर पर दो बड़ी शत्रु छावनियों में विभाजित हो रहा हैः पूंजीपतियों और श्रमजीवियों के दो बड़े वर्गों में, जो सीधे एक-दूसरे का सामना करते हैं।” - साम्यवादी घोषणापत्र

माक्र्स ने संघर्ष को इतिहास के मुख्य पे्ररक बल और सामाजिक प्रक्षेप पथों के मुख्य निर्धारक के रूप में स्थापित किया। (किंग्स्टन) परन्तु वर्ग संघर्ष की प्रकृति को समझने के लिए पहले हमें यह समझना आवश्यक है कि ऐसा संघर्ष एक एकीकृत वर्ग हित से उत्पन्न् होता है, जिसे वर्ग चेतना भी कहा जाता है। वर्ग चेतना माक्र्सवादी सिद्धान्त का एक पहलू है, जो सामाजिक वर्गों की आत्म-जागृति, अपनी स्वयं की तार्किक रूचियों में कार्य करने की क्षमता, या उस सीमा को मापने की ओर संकेत करता है जहाँ तक एक व्यक्ति को अपने वर्ग (या वर्ग गठबंधन) द्वारा उनके लिए निर्धारित ऐतिहासिक कार्यों की जानकारी होती है।

इसके अतिरिक्त, परिभाषा द्वारा, वर्गों के विषयपरक हित मूलभूत रूप से विरोधी होते हैं; और इसके परिणामस्वरूप, ये परस्पर विरोधी हित और चेतनाएँ अन्ततः वर्ग संघर्ष की ओर ले जाती हैं।

माक्र्स ने पहले देखा कि वर्ग संघर्ष का विकास व्यक्गित कारखानों और पूंजीवादियों तक सीमित था। परन्तु, पूंजीवाद की परिपक्वता पर, पूंजीपतियों और श्रमजीवियों के जीवन की दशाओं में अधिकाधिक अन्तर आता गया। वर्गों के अन्दर इस बढ़ते ध्रुवीकरण और एकरूपीकरण ने व्यक्तिगत संघर्षों के अधिक व्यापक होने के लिए माहौल तैयार किया। जब बढ़ता हुआ वर्ग संघर्ष सामाजिक स्तर पर दिखाई देता है तो वर्ग चेतना और समान हित भी बढ़ते हैं। इसके परिणामस्वरूप जब वर्ग चेतना में वृद्धि होती है तो शासकीय वर्ग के लिए ऐसे हित की अवधि को सुनिश्चित करने के लिए नीतियाँ बनाई जाती हैं। यहाँ राजनैतिक ताकत के लिए संघर्ष का प्रयोग शुरू होता है और वर्ग राजनैतिक ताकतें बन जाते हैं।

चूंकि राजनैतिक ताकत के वितरण का निर्धारण उत्पादन पर ताकत या पूंजी पर ताकत द्वारा किया जाता है, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पूंजीपति वर्ग अपनी संपत्ति का प्रयोग अपनी जायदाद एवं सामाजिक संबंधों की सुरक्षा तथा उन्हें वैध ठहराने के लिए करता है। इस प्रकार शासक वर्ग वह है जिसके पास आर्थिक ताकत है और जो निर्णय लेता है। (डेरेन्डोर्फ)

समाजवादी क्रान्ति की अपरिहार्यता

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माक्र्स अन्तिम असंतुष्टि के कारण पूंजीवादी समाज के साम्यवादी समाज में क्रान्ति की अपरिहार्यता की कल्पना करते हैं। वृहद् स्तरीय उत्पादन, पूंजीवादी हित समूहों एवं संगठनों के साथ-साथ पूंजी के आयामों एवं ताकत में अत्यधिक वृद्धि में श्रम का सामाजीकरण समाजवाद के अपरिहार्य आगमन के लिए मुख्य आधार उपलब्ध करवाता है। इस रूपान्तरण के भौतिक, बौद्धिक एवं नैतिक प्रणेता साधारण जन हैं। पूंजीपतियों के विरूद्ध आमजनों का संघर्ष अन्ततः राजनैतिक संघर्ष का रूप ले लेता है जिसका लक्ष्य आमजनों द्वारा राजनैतिक विजय हासिल करना होता है। साधारण लोगों की प्रमुखता के साथ, उत्पादन का सामाजीकरण उत्पादन के साधनों को समाज की संपत्ति बनने की ओर ले जाता है। इस रूपान्तरण के प्रत्यक्ष परिणाम श्रम उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि, एक छोटा कार्यदिवस, और लघु स्तरीय एकीकृत उत्पादन की जगह सामूहिक एवं बेहतर श्रम होते हैं। पूंजीवाद हमेशा के लिए उत्पादक और स्वामी के संबंध को तोड़ देता है, जो कभी वर्ग संघर्ष से जुड़ा था। अब विज्ञान के सचेतन प्रयोग एवं सामूहिक श्रम की सघनता के आधार पर एक नए संघ का निर्माण किया जाएगा।

उसने इस पुनर्वितरण का विस्तार परिवारों में ताकत संरचना के लिए भी किया। माक्र्स ने कल्पना की कि समाजवाद के साथ स्त्रियों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, जिससे पितृ-प्रधान परिवार टूटेगा...

“आधुनिक उद्योग, उत्पादन की सामाजिक रूप से संगठित प्रक्रिया में घरेलू क्षेत्र के बाहर स्त्रियों, युवाओं, और दोनों लिंगों के बच्चों को एक महत्वपूर्ण भाग सौंपने के द्वारा परिवार एवं स्त्री-पुरूष के बीच संबंधों के एक उच्चतर रूप के लिए एक नए आर्थिक आधार को तैयार करता है... इसके अतिरिक्त, यह स्पष्ट है कि सामूहिक कार्य समूह में दोनों लिंगों एवं हर आयु के व्यक्ति शामिल हैं, और इस तथ्य को उपयुक्त दशाओं में मानवीय विकास का एक स्रोत बनना चाहिए; हालांकि इसके स्व-विकसित, क्रूर, पूंजीवादी स्वरूप में श्रमिक का अस्तित्व उत्पादन की प्रक्रिया के लिए है, न कि उत्पादन की प्रक्रिया श्रमिक के लिए, यह तथ्य भ्रष्टाचार एवं गुलामी का घातक स्रोत है। (कैपिटल, संस्करण 1, अध्याय 13)